शिक्षा के सामाजिक आधार का अर्थ एवं पारिभाषा | Meaning and Definition of Sociological Basis of Education in hindi

शिक्षा के सामाजिक आधार का अर्थ, समाजशास्त्र का अर्थ एवं पारिभाषा, समाजशास्त्र का ऐतहासिक परिदृश्य, शिक्षा का समाज पर प्रभाव, समाज का शिक्षा पर प्रभाव

▶शिक्षा के सामाजिक आधार का अर्थ (Meaning of Sociological Basis of Education)

शिक्षा के सामाजिक आधार का अर्थ यह है कि शिक्षा की व्यवस्था समाज की आवश्यकताओं, आकांक्षाओं और आदर्शों के अधार पर की जानी चाहिए. शिक्षा के द्वारा बालकों में ऐसे सामाजिक गुणों का विकास किया जाना चाहिए जिससे वह अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें, अधिकारों का उपयोग कर सकें और समाज तथा प्रदेश के योग्य कुशल, जागरूक और समर्पित नागरिक बन सकें. शिक्षा के द्वारा उन्हें समाज के साथ अनुकूलन करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए.

शिक्षा के सामाजिक आधार (Sociological Basis of Education)

शिक्षा के उद्देश्यों के निर्धारण का आधार उस समाज का जीवन दर्शन समाज की संरचना और उसकी धार्मिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक व आर्थिक स्थिति होनी चाहिए. इस प्रकार शिक्षा का सामाजिक आधार इस बात पर बल देता है कि शिक्षा का आधार समाज हो. शिक्षा के द्वारा बालकों का सर्वतोमुखी विकास हो जिसे समाज का भी उत्तरोत्तर विकास हो सके.

▶समाजशास्त्र का अर्थ एवं पारिभाषा (Meaning and Definition of Sociology)

हिंदी का समाजशास्त्र शब्द अंग्रेजी के "सोशियोलॉजी" शब्द का रूपांतरण है. अंग्रेजी का सोशियोलॉजी शब्द दो शब्दों "सोशियो" (Socio) और "लॉजी" (logy) से मिलकर बना है. सोशियो का अर्थ है समाज से संबंधित और लोजी का अर्थ है ज्ञान अथवा विज्ञान. इस प्रकार सोशलॉजी का शाब्दिक अर्थ है समाज से संबंधित विज्ञान, जो समाज के विषय में अध्ययन करता है. समाज का अर्थ यहाँ मानव समाज से है. इस प्रकार समाजशास्त्र केवल मानव समाज का अध्ययन करता है. समाजशास्त्र के रूप में पूर्णतः परिचित होने के लिए विभिन्न विचारों द्वारा दी गई परिभाषाओं का अध्ययन करना आवश्यक है.

(1). अगस्त काम्टे (Auguste Comte) के अनुसार, "समाजशास्त्र सामाजिक व्यवस्था तथा सामाजिक प्रगति का विज्ञान है."

(2). मोरिस गिन्सबर्ग (Morris Ginsberg) के अनुसार, "समाजशास्त्र मनुष्यों की अंतः क्रिया और अंत: संबंधों, उनकी दशाओं और परिणामों का अध्ययन है."

(3). मेकाइवर और पेजे (MacIver & Page) के अनुसार, "समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों का व्यवस्थित अध्ययन है. सामाजिक संबंधों के जाल को हम समाज कहते हैं."

(4). सोरोकिन (Sorokin) के अनुसार, "समाजशास्त्र सामाजिक-सांस्कृतिक घटनाओं के सामान्य स्वरूपों, प्रारूपों और अनेक प्रकार के अंतर संबंधों का सामान्य विज्ञान है."

(5). क्यूबर (Cuber) के अनुसार, "समाजशास्त्र को मानव संबंधों के वैज्ञानिक ज्ञान की शाखा कहा जा सकता है."

▶समाजशास्त्र का ऐतहासिक परिदृश्य (Historical Aspect of Sociology)

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. व्यक्ति और समाज एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं. एक के बिना दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं है. व्यक्तियों के अभाव में समाज का कोई महत्व नहीं है और समाज के अभाव में व्यक्ति जिंदा नहीं रह सकता, अपना विकास नहीं कर सकता. समाज एक मूर्ति संकल्पना है जिसका भवन व्यक्ति की नींव पर निर्मित होता है. प्राचीन काल से ही व्यक्ति और समाज के संबंधों पर विचार किया जाता रहा है. प्लेटो (Plato) ने कहा था कि व्यक्ति ठीक उसी प्रकार से व्यवहार करता है, जिस प्रकार से समाज उसे व्यवहार करना सिखाता है. व्यक्ति का व्यवहार उस समाज के उपज है जिसमें वह जन्म लेता है और पलता है.

संसार के प्राचीनतम ग्रंथ भारतीय वेदों में पिता के पुत्र; पुत्र के पिता; राजा के प्रजा; प्रजा के राजा; पति के पत्नी; पत्नी के पति; और व्यक्ति के समाज तथा समाज के व्यक्ति के प्रति कर्तव्यों की विषद व्याख्या की गई है. परंतु समाज क्या है? समाज का निर्माण कैसे होता है? समाज में व्यक्ति किस प्रकार अंतर क्रिया करता है? इस सब का क्रमबद्ध अध्ययन संसार में सर्वप्रथम फ्रांसीसी दार्शनिक अगस्त काम्टे (August Comte) ने शुरू किया और उन्होंने इस अध्ययन को समाजशास्त्र (Sociology) की संज्ञा दी.

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि वर्तमान में किसी भी देश की शिक्षा के निर्माण में समाजशास्त्री आधार की अपनी भूमिका होती है यह बात दूसरी है कि देश के शिक्षा में इसका कितना प्रभाव है.

▶शिक्षा का समाज पर प्रभाव (Impact of Education on Society)

  • सामाजिक विरासत का संरक्षण
  • सामाजिक भावना को जाग्रत करना
  • समाज का राजनैतिक विकास
  • समाज का आर्थिक विकास
  • सामाजिक नियन्त्रण्
  • सामाजिक परिवर्तनों को बढ़ावा
  • सामाजिक सुधार
  • बालक का सामाजीकरण

▶समाज का शिक्षा पर प्रभाव (Impact of Society on Education)

  • शिक्षा के स्वरूप का निर्धारण
  • शिक्षा के उददेश्य का निर्धारण
  • शिक्षा की पाठयचर्या का निर्धारण
  • शिक्षण विधियों का निर्धारण
  • विद्यालय के स्वरूप का निर्धारण
  • प्रबन्धन के तरीकों का निर्धारण

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