सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ, सिद्धान्त, उद्देश्य, विशेषताएँ, प्रकृति, आवश्यकता एवं महत्व | Micro Teaching in hindi

सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ, परिभाषा, सूक्ष्म शिक्षण की प्रक्रिया, सूक्ष्म शिक्षण चक्र, सिद्धान्त, उद्देश्य, विशेषताएँ, आवश्यकता एवं महत्व, अवस्थाएँ

सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ (Meaning of Micro Teaching)

सूक्ष्म-शिक्षण दो शब्दों से मिलकर बना है – सूक्ष्म तथा शिक्षण। सूक्ष्म से तात्पर्य छोटे (गहन) तथा शिक्षण से तात्पर्य प्रशिक्षण के दौरान कक्षा में दिया जाने वाला शिक्षण से है। सूक्ष्म शिक्षण एक शिक्षक प्रशिक्षण तकनीक है, जिसके द्वारा शिक्षक एक शिक्षण सत्र की रिकॉर्डिंग की समीक्षा करता है, ताकि छात्रों से रचनात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त की जा सके कि छात्रों ने शिक्षण के दौरान क्या काम किया है? और उनकी शिक्षण तकनीक में क्या सुधार किए जा सकते हैं?

सूक्ष्म-शिक्षण का आविष्कार 1963 में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में ड्वाइट डब्ल्यू एलन द्वारा किया गया था, और बाद में इसका उपयोग शिक्षा के सभी रूपों में शिक्षकों को विकसित करने के लिए किया गया।

सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषा (Definition of Micro Teaching)

डी० डब्ल्यू० एलन के अनुसार, "सूक्ष्म शिक्षण समस्त शिक्षण को लघु क्रियाओं में बाँटना है।"

बी० एम० शोर के अनुसार, "सूक्ष्म शिक्षण कम अवधि, कम शिक्षण क्रियाओं वाली प्रविधि है।"

बुश (Bush) के अनुसार, "सूक्ष्म शिक्षण शिक्षक प्रशिक्षण की प्रविधि है, जिसमें शिक्षक स्पष्ट रूप से परिभाषित शिक्षण कौशलों का प्रयोग करते हुए, ध्यानपूर्वक नियोजित पाठों के आधार पर 5 से 10 मिनट तक वास्तविक छात्रों के छोटे समूह के साथ अंतः क्रिया करता है जिसके परिणामस्वरुप वीडियो टेप पर प्रेक्षण प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है।"

सूक्ष्म शिक्षण की प्रक्रिया (Process of Micro Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण एक ऐसी तकनीक है, जिसका उद्देश्य शिक्षक उम्मीदवारों को वास्तविक कक्षा व्यवस्था के लिए तैयार करना है। इस तकनीक की मदद से, शिक्षक उम्मीदवार प्रत्येक शिक्षण कौशल को छोटे भागों में तोड़कर और भीड़-भाड़ वाली कक्षाओं के अराजक वातावरण का सामना किए बिना, सीखने का प्रयास करता है। सूक्ष्म शिक्षण के दौरान, छात्रों में शिक्षण कौशल पैदा करते हुए, छात्रों की पारस्परिक बातचीत को सक्रिय रूप से प्रस्तुत करने और प्रदर्शनों के कौशल को विकसित किया जाता है।

विल्किंसन, इस बात पर जोर देते हैं कि शिक्षक उम्मीदवार इस पद्धति की मदद से वास्तविक शिक्षण और शिक्षण नियमों का अनुभव करता है। यह विधि शिक्षकों को अपनी और दूसरों की शिक्षण शैलियों को खोजने और प्रतिबिंबित करने के अवसर प्रदान करती है और उन्हें नई शिक्षण तकनीकों के बारे में सीखने में सक्षम बनाती है।

(i). पाठ्ययोजना निर्माण (curriculum formulation)

छात्राध्यापक को शिक्षण कौशल (वर्णन करना, व्याख्या करना, प्रश्न पूंछना आदि) किसी एक कौशल जिसे प्रशिक्षण के दौरान सीखना होता है कि सूक्ष्म शिक्षण पाठ्ययोजना तैयार की जाती है। कक्षा-शिक्षण-छात्राध्यापक छोटे पाठ को सहयोगी छात्रों को 5 से 10 मिनट तक पढ़ाता है, जिसे शिक्षण सत्र कहते हैं।

(ii). शिक्षण (Teaching)

अगला कदम शिक्षण है। प्रशिक्षु योजना के अनुसार कक्षा को पढ़ाता है और बताता है कि उन्होंने क्या तैयारी की थी। इसकी निगरानी प्रशिक्षक करते हैं।

(iii). प्रतिपुष्टि (Feedback)

छात्राध्यापक द्वारा पढ़ाये गए पाठ का प्रवेक्षक द्वारा विकसित मूल्यांकन प्रपत्र में दी गई जानकारी जिसमें छात्राध्यापक द्वारा शिक्षण में छोड़ी गई कमियों का उल्लेख होता है। इस प्रतिपुष्टि से छात्राध्यापक अपने कमियों को सुधारता है।

(iv). पुनः पाठ्यनिर्माण (re-curricular)

प्रतिपुष्टि के तुरंत बाद छात्राध्यापक अपने पाठ्य को पुनः नियोजित करता है इस क्रिया को पुनर्योजन सत्र कहते हैं।

(v). पुनः योजना (re-plan)

पुनः योजना के पश्चात पुनः योजित पाठ दूसरे समूह पर पुनः शिक्षण द्वारा कराया जाता है। इस सोपान को पुनः शिक्षण सत्र कहते हैं।

(vi). पुनः प्रतिपुष्टि (re-feedback)

पुनः शिक्षण के उपरांत प्रवेक्षक द्वारा छात्राध्यापक को प्रतिपुष्टि प्रदान की जाती है इस प्रक्रिया द्वारा छात्राध्यापक निरन्तर अपनी कमियों में सुधार लाता है।

सूक्ष्म शिक्षण चक्र (Circle of Micro Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण के सिद्धान्त (Principle of Micro Teaching)

  • यह वास्तविक कौशल है।
  • इसमें एक समय में एक ही कौशल के प्रशिक्षण पर बल दिया जाता है।
  • अभ्यास की प्रक्रिया पर नियंत्रित रखा जा सकता है।
  • पृष्ठपोषण के प्रभाव की परिधि विकसित होती है।

सूक्ष्म शिक्षण के उद्देश्य (Aims of Micro Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं जो नीचे दिये गए हैं –

  • छात्राध्यापक में आत्मविश्वास की भावना में बृद्धि होती है।
  • छात्राध्यापक को एक – एक करके विभिन्न कौशल शिक्षण में निपुणता प्राप्त होती है।
  • छात्राध्यापक द्वारा जो त्रुटियाँ शिक्षण में की गई हैं उनको दूर करने का पूर्ण अवसर मिलता है।
  • छात्राध्यापक को तुरंत ही पृष्ठपोषण प्राप्त हो जाता है।

सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Micro Teaching)

  • सूक्ष्म शिक्षण के द्वारा कम समय में अधिक दक्षता प्रदान किया जाता है।
  • सूक्ष्म शिक्षण में शिक्षण के तत्व को सूक्ष्म स्वरूप दिया जाता है।
  • सूक्ष्म शिक्षण के द्वारा शिक्षकों में व्यावसायिक परिपक्वता का विकास होता है।
  • सूक्ष्म शिक्षण के द्वारा छात्रों को तत्काल प्रतिपुष्टि प्राप्त हो जाती है।

सूक्ष्म शिक्षण की प्रकृति (Nature of Micro Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण की प्रकृति को निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया जा सकता है-

  1. सूक्ष्म शिक्षण एक अंतः प्रक्रिया है.
  2. सूक्ष्म शिक्षण शिक्षक एवं छात्रों के मध्य पारस्परिक संबंध को स्थापित करने की प्रक्रिया है.
  3. सूक्ष्म शिक्षण छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया है.
  4. सूक्ष्म शिक्षण एक उद्देश्य पूर्ण प्रक्रिया है.
  5. सूक्ष्म शिक्षण एक विकासात्मक प्रक्रिया है.
  6. सूक्ष्म शिक्षण एक औपचारिक एवं अनौपचारिक प्रक्रिया है.
  7. सूक्ष्म शिक्षण एक तार्किक प्रक्रिया है.
  8. सूक्ष्म शिक्षण एक त्रिध्रुवीय प्रक्रिया है.

सूक्ष्म शिक्षण के आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Micro Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण के निम्नलिखित आवश्यकता एवं महत्व हैं जो नीचे दिये गए हैं–

  • सूक्ष्म शिक्षण अत्यन्त लचीली प्रविधि है जो विषय एवं परिस्थितियों के आधार पर व्यवस्थित होती है।
  • पाठ्य अवधि तथा विषयों की जटिलताओं को दूर करने के लिए सूक्ष्म शिक्षण अति आवश्यक है।
  • सूक्ष्म शिक्षण के द्वारा छात्रों में आए परिवर्तन के आधार पर तुरंत ही पृष्ठपोषण प्रदान हो जाता है।
  • सूक्ष्म शिक्षण विशिष्ट परीक्षाओं के मूल्यांकन के लिए आवश्यक है।

सूक्ष्म शिक्षण की अवस्थाएँ (Phases of Micro Teaching)

  • ज्ञान प्राप्ति अवस्था
  • कौशल प्राप्ति अवस्था
  • स्थानांतरण अवस्था

ज्ञान प्राप्ति अवस्था (Knowledge Acquisition Phase)

ज्ञान प्राप्ति अवस्था में छात्राध्यापक विभिन्न शिक्षण कौशलों का ज्ञान प्राप्त करता है, जिसका उसे प्रशिक्षण प्राप्त करना है।

कौशल प्राप्ति अवस्था (Skill Acquisition Phase)

कौशल प्राप्ति अवस्था में छात्राध्यापक प्रदर्शन पाठ को देखने के बाद सूक्ष्म शिक्षण हेतु पाठ्य योजना का निर्माण करता है। तथा तब तक उस कौशल का अभ्यास करता है जब तक वह उस कौशल में दक्षता प्राप्त न कर ले। इस अवस्था के दो घटक महत्वपूर्ण हैं –

  • प्रतिपुष्टि अवस्था
  • सूक्ष्म शिक्षण नियोजन अवस्था

स्थानान्तरण अवस्था (Transfer Phase)

स्थानान्तरण अवस्था में छात्राध्यापक सूक्ष्म शिक्षण द्वारा सीखें गए कौशलों का वास्तविक कक्षा की परिस्थितियों में स्थानान्तरण करता है। तथा शिक्षण क्रिया को पूर्ण करता है।

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