मूल्यांकन की प्रविधियाँ | Methods of Evaluation in hindi
मापन में किसी गुण को पूर्व निश्चित नियमों के आधार पर संख्या में व्यक्त किया जाता है। मूल्यांकन में छात्रों के विषय में निर्णय देने के लिए विभिन्न स्रोतों से सूचनाओ को एकत्रित किया जाता है। मापन और मूल्यांकन के लिए सूचनाओं की प्राप्ति के लिए कुछ प्रविधियों का प्रयोग करना पड़ता है। इन प्रविधियों के माध्यम से ही एकत्र किये गये तथ्यों तथा आंकड़ों के आधार पर उपयोगी निर्णय लिये जाते हैं। इन उपकरणों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए लिखा गया है कि, “उचित निश्चय उचित निर्णयों पर निर्भर करते हैं और ये पर्याप्त मात्रा में सूचनाओं को एकत्र करने वाले उपकरणों से प्राप्त किये जाते हैं।"
मूल्यांकन की प्रविधियाँ
जिस प्रकार शिक्षण करते समय छात्रों को सीखने हेतु तैयार करने, विषय सामग्री को स्पष्ट करने तथा छात्रों को हृदयगम करने के लिए शिक्षण की प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार शिक्षण के पश्चात् प्राप्त छात्रों के व्यवहार में ज्ञान, कौशल, अभिवृत्ति, उपलब्धि, रूचि रूझान में जो परिवर्तन आते हैं उनका मूल्यांकन करने के लिए कुछ प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है।
इन प्रविधियों को आंकड़ों एवं तथ्यों को एकत्र करने का स्रोत भी कहा जा सकता है। इस प्रकार मूल्यांकन की प्रविधियों या युक्तियों का अभिप्राय उन साधनों से है, जिनकी सहायता से छात्रों के व्यवहार (ज्ञान, रूचि, कौशल, एवं अभिवृति) में होने वाले परिवर्तनों का मूल्यांकन किया जाता है। विभिन्न प्रकार के परिवर्तनों की जाँच हेतु भिन्न-भिन्न प्रकार की प्रविधियों का विकास किया गया है। मुख्य रूप से मूल्यांकन की प्रविधियों को निम्न दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
1. परिमाणात्मक प्रविधियाँ:- मूल्यांकन की परिमाणात्मक प्रविधियों का तात्पर्य उन प्रविधियों से ही जिनके द्वारा छात्रों की शैक्षिक निष्पत्तियों का मापन किया जाता है। वर्तमान परीक्षा प्रणाली इसी प्रकार के मापन पर आधारित है। इस विधि में परीक्षण तथा परीक्षण विधि-मुख्य रूप से निम्नलिखित हैं-
(i) मौखिक परीक्षाएँ:- इस प्रविधि का प्रयोग पढने की भोग्यता, उच्चारण, सुचनाओं की जांच करने तथा लिखित परीक्षाओं की पूर्ति के लिए वास्तविक ज्ञान परीक्षण के लिए किया जाता है। इस में सामूहिक विचार-विमर्श, मौखिक प्रश्न, वाद-विवाद आदि सम्मिलित किया जाता है। इससे छात्रों के व्यक्तिगत गुणों एवं अवगुणों की भी जानकारी होती है। इस तरह की परीक्षाएँ परास्नातक उपाधि परीक्षाओं में, प्रवेश के समय या साक्षात्कार के समय ली जाती है।
(ii) कौशल प्रदर्शन परीक्षाएँ:— इन परीक्षाओं में लिखित उत्तर नहीं देना होता है। बल्कि वे अपनी योग्यता प्रदर्शन के लिए कोई परियोजना तैयार करते हैं। अपने विषय के ज्ञान को मॉडल आदि बनाकर प्रस्तुत करते हैं। संगीत, विज्ञान में परीक्षा के समय ही कौशल परीक्षण होता है। जिसे प्रयोगात्मक परीक्षा भी कहा जाता है। चित्रकला, मूर्तिकला आदि में छात्र पहले से ही तैयार होता है।
(iii) प्रयोगात्मक परीक्षा:— इन परीक्षाओं में छात्रों को निश्चित समय और परिस्थितियो में कोई प्रयोग करना होता है या निर्धारित कार्य पूरा करना होता है। प्रयोगों के आधार पर उनकी कुशलता की जांच की जाती है। ये परीक्षाएँ विशिष्ट रूप से विज्ञान के लिये प्रयुक्त की जाती है।
(iv) लिखित परीक्षाएँ:- इस प्रविधि का प्रयोग शिक्षा के क्षेत्र में आरम्भ से ही किया जाता है। इसमें छात्रो को कागज में लिखकर या निशान लगाकर उत्तर देना होता है। निश्चित समय में प्रश्नपत्र हल करना होता है। ये परीक्षाएँ छात्र को गहन ज्ञान, समस्यात्मक विचारों को समझाने के लिए ली जाती है। लिखित परीक्षाएँ निम्न रूपों में प्राप्त होती हैं-
1. निबन्धात्मक 2. लघु उत्तरीय 3. वस्तुनिष्ठ।
2. गुणात्मक प्रविधियाँ:- मूल्यांकन की गुणात्मक प्रविधियों का तात्पर्य उन प्रविधियों से है, जिनके द्वारा छात्रों में शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक व चारित्रिक गुणों आदि के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की जाती है। इन प्रविधियों के अन्तर्गत निम्नलिखित विधियाँ आती हैं-
(i) निरीक्षण विधि:- निरीक्षण विधि में छात्रों के विभिन्न व्यवहारों, क्रियाओं, संवेगात्मक एवं बौद्धिक परिपक्कता, सामाजिक व्यवस्थापन आदि का क्रमबद्ध रूप से निरीक्षण किया जाता है। इसके अतिरिक्त छात्रों की आदतों एवं कुशलताओं के विकास की जांच करने में भी यह प्रविधि बहुल लाभदायक सिद्ध होती है।(ii) अवलोकन विधि:- व्यक्तित्व अध्ययन के सन्दर्भ में अवलोकन का अत्यधिक महत्व है। इसका प्रयोग बालकों के विशेष रूप से कम उम्र के बालकों के व्यवहारों के अध्ययन के लिए किया जाता है। इस विधि को अविकसित मस्तिष्क वाले बच्चों के लिए शिक्षण प्रविधियों को निश्चित करने के लिए भी किया जाता है।
(iii) प्रश्नावली:- प्रश्नावली के द्वारा छात्रों के विषय में विभिन्न सूचनायें एकत्र करके अध्ययन हेतु आंकड़ों का संकलन किया जाता है। यह विधि बहुत उपयोगी सिद्ध होती है। इस विधि में प्रश्नावली में ऐसे प्रश्नों को ही रखा जाता है, जिनसे वांछित विषय में सभी पक्षों की जानकारी प्राप्त हो सके। प्रश्नावली, शिक्षकों, अभिभावकों एवं छात्रों को स्वयं भरने को कहा जाता है।
(iv) छात्र डायरियाँ:- वर्तमान समय में छात्रों के पास अपनी-अपनी दिनचर्या, रुचि एवं अरुचि, घटनाओं को लेखबद्ध करने के लिए अपनी-अपनी व्यक्तिगत डायरी होती है। इनमें वे अपनी रुचि के अनुसार गीत, कविता, उद्धरण आदि लिखने के लिए स्वतन्त्र होते हैं। इन डायरियों के अध्ययन से उनकी रुचि एवं अरुचि व्यक्तिगत एवं सामाजिक समस्याओं को ज्ञात किया जा सकता है। शिक्षक, अभिभावक विद्यालय आदि के प्रभाव को भी ज्ञात किया जा सकता है।
(v) साक्षात्कार:- इस प्रविधि के द्वारा छात्रों को सामने बुलाकर प्रश्नों के उत्तर या जिज्ञासाओं को शान्त किया जाता है। इसमें उनसे जिस विषय या गुण के विषय में जानकारी लेनी होती है। उससे सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। यह प्रविधि छात्रों के विभिन्न व्यक्तिगत गुणों की जांच करने में भी सहायक सिद्ध होती है।
(vi) छात्रों की कृतियाँ:- छात्र विद्यालय में जो चित्रकला की कृतियाँ, कागज, लकड़ी या मिट्टी की कला कृतियाँ आदि बनाते है। उनसे उनके व्यवहार, विचार, रूचि के विषय में स्पष्ट ज्ञान प्राप्त होता है।
(vii) आत्मकथा:- किसी व्यक्ति विशेष के विषय में अध्ययन करने के लिए विशेष रूप से शोध कार्य में आत्मकथा एक महत्वपूर्ण प्रविधि है। वे सभी पक्ष जो निष्पक्षतापूर्वक लेखक प्रस्तुत करता है। वह एक मुलाकात या साक्षात्कार में ज्ञात नहीं किया जा सकता है।
(viii) घटनावृत्त:– घटनावृत्त का तात्पर्य उन अभिलेखों से होता है, जो शिक्षक छात्रों के सम्बन्ध में तैयार करते हैं। इस प्रकार के अभिलेखों में छात्रों से सम्बन्धित विशेष घटनाओं को अंकित किया जाता है। इससे उनके सामान्य व्यवहार के साथ संवेगात्मक व्यवहार की भी जानकारी प्राप्त होती है। इससे व्यक्ति के विभिन्न पक्षों का ज्ञान होता है।
(ix) जीवन गाथा अध्ययन:- इस अध्ययन विधि के द्वारा किसी व्यक्ति, संस्था, दल या समुदाय के समस्त आवश्यक पक्षों का समावेश होता है। इसमें किसी घटना से सम्बन्धित अतीत या वर्तमान दोनों प्रकार के तथ्यों को आधार मानकर उसका अध्ययन किया जाता है। (ञ) अभिलेख - छात्रों के व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों के मूल्यांकन की जानकारी के लिए अभिलेखों का भी सहारा लिया जाता है। विद्यालयों के छात्रों की प्रगति का यह अभिलेख विभिन्न रूपों में रखा जाता है।
(x) चैक लिस्ट:- चैक लिस्ट या मतपत्र का प्रयोग छात्रों के ज्ञान, अभिवृत्ति एवं रूचि सम्बन्धी निष्पत्तियों की जांच हेतु किया जाता है। इसके द्वारा आत्म-मूल्यांकन भी किया जा सकता है और व्यक्तिगत महत्व को भी ज्ञात किया जा सकता है। चैक लिस्ट में दो भाग होते हैं। प्रथम भाग में कुछ प्रश्न व विशिष्ट कथन होते हैं और द्वितीय भाग में प्रश्नो या कथनों के सम्बन्ध में हाँ या नहीं के रूप में प्रतिक्रिया करनी होती है।
(xi) रेटिंग स्केल:- रेटिंग स्केल में कुछ मानदण्ड दिये रहते हैं तथा एक ही स्केल होती है। यह स्केल 5.7.9 बिन्दुओं वाली होती है। मानदण्डों का इसी स्केल पर मूल्यांकन किया जाता है और उसी के अनुरूप निर्णय लिया जाता है। इस प्रविधि का प्रयोग किसी योग्यता या गुण विशेष की विकास गति को जानने के लिए किया जाता है।