विज्ञान का अर्थ, परिभाषा, प्रकृति, मूल्य एवं पाठ्यक्रम में स्थान | Meaning, Definition, Nature, Values ​​and Place of Science in Curriculum in hindi

विज्ञान शब्द वि + ज्ञान से बना है, जिसका आशय विशिष्ट ज्ञान से है। वास्तव में, प्राकृतिक घटनाओं का अध्ययन करना तथा उनमें आपस में सम्बन्ध ज्ञान करना ही

विज्ञान का अर्थ (Meaning of Science)

विज्ञान शब्द वि + ज्ञान से बना है, जिसका आशय विशिष्ट ज्ञान से है। वास्तव में, प्राकृतिक घटनाओं का अध्ययन करना तथा उनमें आपस में सम्बन्ध ज्ञान करना ही विज्ञान कहलाता है। 'विज्ञान' अंग्रेजी भाषा के Science शब्द का पर्यायवाची है। Science शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के 'सांइशिया' (Scientia) शब्द तथा लैटिन क्रिया (Verb) 'Scire' से हुई है। यहाँ पर Scientia शब्द का अर्थ है ज्ञान (Knowledge) तथा क्रिया Scire का अर्थ है "To know" (जानना)। अतः यह स्पष्ट है कि ज्ञान का दूसरा नाम ही विज्ञान है (Science is another word for knowledge)।

Meaning, Definition, Nature, Values ​​and Place of Science in Curriculum in hindi

विज्ञान की परिभाषायें (Definitions of Science)

(1) आइंस्टीन के अनुसार- “हमारी ज्ञान अनुभूतियों की अस्त-व्यस्त विभिन्नता को एक तर्क पूर्ण विचार प्रणाली निर्मित करने के प्रयास को विज्ञान कहते हैं।"

(2) कोनान्ट के अनुसार—“विज्ञान अन्तः सम्बन्धित संप्रत्ययों एवं सम्प्रत्यात्मक योजनाओं की श्रृंखला है, जो प्रेक्षण और प्रयोग के फलतः विकसित हुई है।"

(3) डेम्पीयर के अनुसार- "विज्ञान प्राकृतिक विषय का व्यवस्थित ज्ञान एवं धारणाओं के मध्य सम्बन्धों का तार्किक अध्ययन है, जिनमें ये विषय व्यक्त होते हैं।"

विज्ञान की प्रकृति (Nature of Science)

विद्यालय पाठ्यक्रम में सम्मिलित किये जाने वाले प्रत्येक विषय में कुछ उद्देश्य तथा उसकी संरचना होती है जिसके आधार पर उस विषय की प्रकृति निश्चित होती है। गणित की भौतिक विज्ञान विषय की संरचना भी अन्य विद्यालयी विषयों की अपेक्षा अधिक मजबूत तथा शक्तिशाली है जिसके कारण विज्ञान अन्य विषयों की तुलना में अधिक स्थाई एवं महत्त्वपूर्ण है। विज्ञान की प्रकृति सदैव चर्चा का विषय रही है। विज्ञान की प्रकृति के संदर्भ में मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं-

  1. "विज्ञान संज्ञा कम क्रिया अधिक है।"
  2. "विज्ञान वह है, जो वैज्ञानिक करते हैं, और वैज्ञानिक क्या करते हैं? ये वैज्ञानिक विधि का अनुसरण है।"
  3. "विज्ञान पूरी तरह वस्तुनिष्ठ है।"
  4. विज्ञान के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेन्द्रिया (Sense organs) हैं।
  5. इसके ज्ञान का आधार निश्चित होता है जिससे उस पर विश्वास किया जा सकता है।
  6. विज्ञान का ज्ञान सुव्यवस्थित क्रमबद्ध तार्किक तथा अधिक स्पष्ट होता है।
  7. इसमें सम्पूर्ण वातावरण में पाई जाने वाली वस्तुओं के परस्पर सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है तथा निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
  8. विज्ञान के विभिन्न नियमों, सिद्धान्तों, सूत्रों आदि में सन्देह की संभावना नहीं रहती।
  9. इसके अध्ययन से आगमन (Inductive), निगमन (deductive), सामान्यीकरण (Generalization) तथा अवलोकन (observations) की योग्यता विकसित होती है।
  10. इसके अध्ययन से बालकों में आत्मविश्वास (Self confidence), अनुशासन (Discipline) तथा आत्म-निर्भरता (Self Reliance) का विकास होता है।
  11. इसके द्वारा बालकों में सकारात्मक (Positive), तार्किक (Logical) तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific attitude) का विकास होता है।

विज्ञान की शाखाएँ (Branches of Science)

सुविधा की दृष्टि से विज्ञान को निम्नलिखित शाखाओं में बाँटा जाता है—

  1. भौतिक विज्ञान (Physics)
  2. रसायन विज्ञान (Chemistry)
  3. जीव विज्ञान (Biology)
  4. गणित (Mathematics)
  5. खगोल विज्ञान (Astronomy)
  6. भूगर्भिकी या भूगर्भ विज्ञान (Geology)
  7. आयुर्विज्ञान (Medical Science)

वर्तमान में विज्ञान विषयों को जीव विज्ञान (Life Science) एवं भौतिक विज्ञान (Physical Science) के अन्तर्गत रखा गया है। ये दोनों क्षेत्र संयुक्त रूप से प्राकृतिक विज्ञान (Natural Science) कहलाते हैं।

1. भौतिक विज्ञान या भौतिकी (Physics)

भौतिकी विज्ञान, विज्ञान की यह शाखा है जिसमें द्रव्य और ऊर्जा उनमें सम्बन्ध तथा परस्पर आदान-प्रदान का अध्ययन किया जाता है। स्पष्टतः भौतिक विज्ञान से हमारा सम्बन्ध द्रव्य तथा ऊर्जा से ही होता है।

द्रव्य (Matter):— प्रत्येक वस्तु जो स्थान घेरती है, जिसमें द्रव्यमान होता है और जिसका अनुभव। हम अपनी ज्ञानेन्द्रियों (आँख, कान, नाक, मुँह, हाथ) द्वारा कर सकते हैं, द्रव्य कहलाती है। उदाहरण के लिए पत्थर, लोहा, सोना, रुई, जल, वायु आदि सभी द्रव्य हैं।

ऊर्जा (Energy):- ऊर्जा एक भौतिक राशि है जिसमें न द्रव्यमान होता है तथा न ही वह स्थान घेरती है। वास्तव में, ऊर्जा एक ऐसी राशि है जिससे हम कार्य ले सकते हैं। उदाहरण के लिए, ऊष्मा, प्रकाश, ध्वनि, विद्युत आदि ऊर्जा के ही विभिन्न रूप हैं।

2. रसायन विज्ञान या रासायनिकी (Chemistry)

रसायन विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जिसमें पदार्थ (Matter) की संरचना, इसके प्रकार, गुणों तथा उसकी अभिक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। केमिस्ट्री शब्द की उत्पत्ति मिस्र (Egypt) देश के प्राचीन नाम कीमिया (Chemia) से हुई क्योंकि कीमिया शब्द का अर्थ है: काला रंग तथा मिस्र देश की मिट्टी का रंग काला था। अतः सर्वप्रथम इसका नाम केमिटेक्ने (Chemitechne) रखा गया जो बाद में बदलकर केमिस्ट्री हो गया। हिन्दी भाषा के अनुसार रसायन = रस + आयन, जिसका अर्थ है: रस का आश्रय। प्राचीन काल में रस शब्द का उपयोग धातुओं की भस्म के लिए किया जाता था।

3. जीव-विज्ञान (Biology)

जीवविज्ञान शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सन् 1802 में लैमार्क (Lamark) एवं ट्रेविरेनस (Traviranus) नामक वैज्ञानिकों ने किया था। यूनान के महान दार्शनिक अरस्तू (Aristotle) को "जीवविज्ञान का जनक" (Father of Biology) माना जाता है। सर्वप्रथम अरस्तू ने ही प्राणियों एवं पादपों का वर्गीकरण किया था तथा अण्डे के अन्दर चूजे में होने वाले परिवर्तनों अवलोकन किया था।

अतः जीवों के विषय में वास्तविक अनुभव प्रेक्षणों या प्रयोगों द्वारा ज्ञात तथ्यों या सत्यों पर आधारित क्रमबद्ध ज्ञान, जीवविज्ञान है। दूसरे शब्दों में, जीवविज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत समस्त जीवधारियों (जन्तुओं एवं पादपों) का अध्ययन किया जाता है। जीव विज्ञान को दो मुख्य शाखाओं में विभाजित किया गया है।

(i) जन्तु विज्ञान (Zoology):– इसके अन्तर्गत समस्त जन्तुओं तथा उनके क्रिया-कलापों का अध्ययन किया जाता है।

(ii) वनस्पति विज्ञान (Botany):- इस शाखा के अन्तर्गत समस्त पेड़-पौधों तथा उनके क्रिया-कलापों का अध्ययन किया जाता है।

दैनिक जीवन में विज्ञान की उपयोगिता एवं महत्त्व (Utility and Importance of Science in Daily Life)

हमारे दैनिक जीवन में विज्ञान का बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान है। वास्तव में विज्ञान के बिना जीवन ही असंभव है। दैनिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञान ने हमारी दिनचर्या को सुगम बना दिया है। हमारी दिनचर्या को पूर्ण रूप से विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के अनुप्रयोग, युक्तियों एवं तकनीकी ने अपने प्रभाव में जकड़ लिया है। ऐसी अनेकानेक वस्तुएँ जिन पर हम निर्भर रहते हैं, सभी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विज्ञान पर ही निर्भर करती हैं। विभिन्न क्षेत्रों में विज्ञान की उपयोगिता एवं महत्त्व निम्न प्रकार हैं-

1. कृषि के क्षेत्र में (In Agriculture):- कृषि के क्षेत्र में अच्छी फसल उगाने के लिए मिट्टी में उचित उर्वरक मिलाये जाते हैं। आज रासायनिक क्रियाओं द्वारा कुछ महत्त्वपूर्ण उर्वरकों (जैसे सोडियम नाइट्रेट सुपर फास्फेट, अमोनियम सल्फेट, यूरिया, पोटाश, आदि) के उपयोग से ही यह संभव हो पाया है कि हम बढ़ती आबादी की खाद्यान्न आवश्यकता की पूर्ति कर सके हैं तथा खाद्यान्न में आत्म निर्भर हो पाये हैं।

2. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में (In Medical & Health):- वैज्ञानिक उपकरणों, यंत्रों, प्रक्रमों और औषधियों के आविष्कार से रोगों की पहचान, निराकरण बीमारियों के उन्मूलन आदि के लिये क्षेत्र में विज्ञान द्वारा अभूतपूर्व सफलता अर्जित की गई है। ऐलोपैथी, आयुर्वेद, होम्योपैथी पद्धतियों द्वारा विभिन्न रोगों का उपचार करने में उपलब्धि प्राप्त की है। निश्चेतक (Anaesthetics) तथा एण्टीसेप्टिक (Antiseptic) दवाइयों के उपयोग से आज कठिन से कठिन सर्जीकल आपरेशन संभव हो सका है।

3. औद्योगिक क्षेत्र में (In Industry):- विज्ञान के ज्ञान से औद्योगिक विकास तथा क्षमता में बहुत सहायता मिली है। रासायनिक शोध कार्यों के फलस्वरूप ही विभिन्न उद्योगों में एक क्रांतिकारी विकास संभव हुआ है। औषधि, साबुन, डिटर्जेण्ट, सौन्दर्य प्रसाधन, कपड़ा, रंग (Dyes), कागज, रबर, प्लास्टिक, पेट्रोलियम, सीमेन्ट, काँच, सिल्क, नाइलॉन, रसायन, इलेक्ट्रोनिक्स वस्तुएँ आदि का निर्माण व उपयोग विज्ञान के कारण ही संभव है।

4. संचार के क्षेत्र में (In Communication):- टेलीफोन, मोबाइल, उपग्रह, रॉकेट, इन्टरनेट, फैक्स मशीन आदि ने सूचना के क्षेत्र में क्रांति ला दी है। इन उपकरणों का उपयोग कर कम समय में अधिक सूचना आवश्यकतानुसार उपलब्ध हो जाती है। इनके उपयोग से मित्रों व परिवार के अन्य सदस्यों से सम्पर्क बना रहता है जिससे उनकी कमी महसूस नहीं होती।

5. यातायात के क्षेत्र में (In Transport):- विज्ञान की खोजों के द्वारा हजारों किलोमीटर दूर कम समय में पहुंचा जा सकता है। मोटर, वायुयान, कारें, साइकिल आदि यातायात के साधन विज्ञान की देन हैं, जिनका उपयोग कर कम समय में अधिकतम दूरी तय की जा सकती है।

6. मनोरंजन के क्षेत्र में (In Recreation):- मनोरंजन के विभिन्न साधन जैसे–सिनेमा, फिल्म, रेडियो, टेपरिकार्डर, T.V., सी०डी० एवं डी०बी०डी० प्लेयर, कम्प्यूटर, मल्टीमीडिया, इन्टरनेट, खेल सामग्री आदि सभी विज्ञान के ही चमत्कार हैं जिन्होंने हमारे दैनिक जीवन पर अपनी अमिट छाप लगा दी है।

7. पेट्रोलियम उत्पादों के क्षेत्र में (In Products of Petroleum):- जमीन या समुद्र के अन्दर गहरे कुओं से प्राप्त पेट्रोलियम (या कच्चा तेल) से आज रसायन विज्ञान के ज्ञान द्वारा ही विभिन्न उपयोगी उत्पाद प्राप्त करना संभव हो सका है। पेट्रोलियम से प्राप्त कुछ उपयोगी उत्पाद हैं मोम, सिन्थेटिक रबर, कोलतार, सिन्थेटिक ऊन, पेट्रोल, डी०डी०टी०, सिन्थेटिक ग्लिसरोल, प्लास्टिक, पेण्ट, ईंधन-गैस, उर्वरक, किरोसिन ऑयल, साबुन, नायलोन तथा अन्य रासायनिक पदार्थ।

8. खाद्य के क्षेत्र में (In Food Products):- विश्व की जनसंख्या लगभग 3½ वर्ष में दोगुनी हो जाती है। इतनी तेजी से बढ़ती आबादी के लिए हमें अधिक और अधिक खाद्यान्न की आवश्यकता है। यह विज्ञान विशेष रूप से रसायन विज्ञान द्वारा ही संभव हो सका है कि अधिक से अधिक खाद्यान्न उत्पादन तथा संरक्षण हेतु नवीन विधियाँ उपयोग में लाई जा रही हैं। विभिन्न रासायनिक क्रियाओं द्वारा दही, मक्खन, पनीर, घी, रिफाइन्ड तेल, बेबी फूड आदि का उत्पादन किया जाता है।

9. युद्ध के क्षेत्र में (In War):- विज्ञान के ज्ञान ने युद्ध में भी एक विशेष प्रकार की क्रांति लायी है। तीव्र विस्फोटक (जैसे- T.N.T.) जहरीली गैसें (जैसे–फॉस्जीन), धुएँ रहित विस्फोटक, बम आदि सभी रसायन की देन हैं। सबसे आधुनिक नाभिकीय अस्त्र जैसे- परमाणु बम तथा हाइड्रोजन बम भी रसायन तथा भौतिकशास्त्रियों के संयुक्त प्रयास के फलस्वरूप ही बनाये गये हैं।

10. अन्तरिक्ष के क्षेत्र में (In Space):— आज मनुष्य ने चन्द्रमा तथा अन्य ग्रहों में पहुंचने तथा अन्तरिक्ष में भ्रमण करने में सफलता हासिल कर ली है जो कि विज्ञान की देन है, बिना विज्ञान की प्रगति के इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। आज विभिन्न देशों के भौतिकशास्त्री, रसायनशास्त्री एवं जैवशास्त्री आदि सभी अन्तरिक्ष में जाकर विभिन्न अनुसंधानों में जुटे हुए हैं।

विज्ञान शिक्षण के मूल्य (Values of Science)

विज्ञान शिक्षण से निम्नलिखित मूल्यों की प्राप्ति होती है–

  1. बौद्धिक मूल्य (Internal Values )
  2. व्यावहारिक प्रयोगात्मक मूल्य (Utilitarian or practical values) नैतिक मूल्य (Moral Values)
  3. सांस्कृतिक मूल्य (Cultural Values)
  4. सौन्दर्यात्मक मूल्य (Aesthetic Values )
  5. जीविकोपार्जन सम्बन्धी मूल्य (Vocational Values)
  6. मनोवैज्ञानिक मूल्य (Psychological Values )
  7. अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य (International Values )
  8. अनुशासन सम्बन्धी मूल्य (Disciplinary Values )
  9. वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकास से सम्बन्धित मूल्य (Values related to scientific attitude development)

1. बौद्धिक मूल्य (Intellectual Value)

विज्ञान एक प्रकार का ऐसा ज्ञान है जो व्यक्ति के मस्तिष्क को क्रियाशील बनाता है। जैसा कि विभिन्न प्रकार से यह स्पष्टतया ज्ञात होता है कि विज्ञान एक क्रमबद्ध (Systematic), सुव्यवस्थित (orderly arranged) ज्ञान है जिसमें कि प्रक्रिया (process) भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण होती है जितना कि उसका उत्पाद (product)। विज्ञान की प्रत्येक समस्या एक ऐसे क्रम से गुजरती है जो कि एक रचनात्मक व सृजनात्मक प्रक्रिया (Constructive and creative process) के लिए आवश्यक है। इस प्रकार बच्चे की सम्पूर्ण मानसिक व कार्यात्मक शक्तियों के विकास के लिये विज्ञान आवश्यक है। किसी भी समस्या को उचित प्रकार से नियमित व क्रमबद्ध (Regular and systematic) तरीके से हल करने की क्षमता का विकास विज्ञान की सहायता से ही संभव है।

2. प्रयोगात्मक मूल्य (Utilitarian or Practical Values)

उन्नीसवीं शताब्दी का प्रारंभ एक ऐसे विषय को अपने साथ लेकर आया जिसने सदियों से स्थापित विभिन्न विषयों जैसे दर्शनशाख, इतिहास, मनोविज्ञान (Philosophy. History, Psychology) की जड़ों को, जो कि मजबूती से इस प्रकार से मानव के व्यावहारिक जीवन में धर्सी हुई थीं कि जिसे हिलाना मुश्किल ही नहीं वरन नामुमकिन था, हिला दिया, परन्तु विज्ञान ने ऐसा किया। प्रारंभ से ऐसा माना जाता था कि जो विषय दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान इत्यादि से सम्बन्धित होते हैं केवल वही महत्व रखते हैं किन्तु अचानक एक धमाका हुआ और सब कुछ तितर-बितर हो गया और एक नवीन विश्व का निर्माण होता है—"विज्ञान आधारित विश्व" (Science Based World), एक ऐसा विषय जिसने मानव के जीवन के प्रत्येक पहलू में गहरी पैठ बना ली है।

3. नैतिक मूल्य (Model Value)

नैतिकता एक ऐसा प्रत्यय है जो समय, व्यक्ति, परिस्थिति तथा स्थान से सबसे अधिक प्रभावित है। नैतिकता के प्रत्यय को भिन्न-भिन्न भारतीय तथा पाश्चात्य दार्शनिकों ने भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। प्रत्येक विषय की कुछ न कुछ ऐसी विशेषतायें होती हैं जो व्यक्ति के व्यवहार, आचार-विचार, कार्य करने के ढंग इत्यादि को प्रभावित करती हैं, इन्हें ही नैतिक मूल्य कहा जाता है।

4. सांस्कृतिक मूल्य (Cultural Value)

किसी राष्ट्र या समाज की संस्कृति की अपनी कुछ अलग ही विशेषतायें होती हैं। प्रत्येक समाज या राष्ट्र की संस्कृति का अनुमान उस राष्ट्र या समाज के निवासियों के रीति-रिवाज, खान-पान, रहन-सहन, कलात्मक उन्नति, राजनैतिक, सामाजिक आदि पहलुओं के द्वारा हो जाता है। विज्ञान का इतिहास विभिन्न राष्ट्रों की संस्कृति का चित्र प्रस्तुत करता है।

5. सौन्दर्यात्मक मूल्य (Aesthetic Values)

विज्ञान पढ़ने वाले तथा विज्ञान के प्रेमियों के लिए यह एक गीत है, सौन्दर्य है, कला है, संगीत है, तथा आनन्द प्राप्ति का प्रमुख साधन है। कभी-कभी व्यक्ति ऐसी धारणा बना लेते हैं कि विज्ञान एक नीरस विषय है। ऐसी धारणा केवल वे ही बनाते हैं जिन्हें कभी विज्ञान पढ़ने का अवसर नहीं मिला होता। विज्ञान की समस्यायें अपने आप में वैज्ञानिक अन्दाज में हल खोजने को व्यक्ति को मजबूर कर देती हैं।

6. जीविकोपार्जन सम्बन्धी मूल्य (Vocational Values)

अपनी बेसिक शिक्षा योजना (Basic Education Scheme) में गाँधीजी ने यह स्पष्ट किया है कि उपयुक्त शिक्षा एक प्रकार से बेरोजगारी के प्रति बीमे के रूप में होनी चाहिये। वही बात यहाँ पर खरी उतरती है क्योंकि पाठ्यक्रम के सम्पूर्ण विषयों में से केवल विज्ञान एक ऐसा विषय है जो कि सर्वाधिक रोजगारपरक पाठ्यक्रम के लिए जाना जाता है विज्ञान के जीविकोपार्जन सम्बन्धी मूल्यों का विवरण उसकी उपयोगिता से लगाया जा सकता है। जितनी अधिक विषय की उपयोगिता होती है उतना ही अधिक वह जीविकोपार्जन सम्बन्धी मूल्य रखता है।

7. मनोवैज्ञानिक मूल्य (Psychological Values)

विज्ञान की शिक्षा मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से उपयोगी है। विज्ञान के अध्ययन से छात्रों की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। विज्ञान में कियाओं तथा अभ्यास कार्य पर बल दिया जाता है जिससे विज्ञान का ज्ञान अधिक स्थायी हो जाता है। विज्ञान का शिक्षण मनोविज्ञान के विभिन्न नियमों व सिद्धान्तों का अनुसरण करता है, जैसे-करके सीखना (Learming by doing), अनुभवों द्वारा सीखन (learning through experiences), तथा समस्या समाधान (Problem Solving) आदि महत्वपूर्ण हैं। विज्ञान शिक्षण से बालकों की जिज्ञासा (Curiosity), रचनात्मक प्रवृत्तियाँ (Creative tendencies), आत्मतुष्टि (Self realization), आत्म प्रकाशन (Self-assertion) आदि मानसिक भावनाओं की तुष्टि व तृप्ति होती है।

8. अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य (International Values )

विज्ञान हमें केवल देश की पृष्ठभूमि से ही परिचित नहीं कराता बल्कि राष्ट्रीयता का संदेश भी देता है। विज्ञान के अध्ययन से पता चलता है कि आज का मानव जो भौतिक उन्नति प्राप्त करने में सफल हुआ है यह कभी इतना असक्षम व अनभिज्ञ था कि उसे कुछ भी कार्य ठीक ढंग से करना नहीं आता था। विज्ञान के क्षेत्र में जो प्रगति हुई है वह राष्ट्र, वर्ग, धर्म, जाति, भाषा, लिंग इत्यादि से परे है वह किसी राष्ट्र विशेष की सम्पत्ति नहीं है।

9. अनुशासन सम्बन्धी मूल्य (Disciplinary Values)

वह व्यक्ति या बालक जो विज्ञान का शिक्षक या शिक्षार्थी है या कभी रहा होगा उसमें स्वतः ही तर्क शक्ति, विवेक, धैर्य, अनुशासन, कठोर परिश्रम, एकाग्रता, सुव्यवस्थिता, स्पष्टता, विवेकशीलता जैसे मूल्य विकसित हो जाते हैं। अच्छे-बुरे का निर्णय, लाभ-हानि का ज्ञान आदि ऐसे मूल्य होते हैं जिन्हें एक विज्ञान का छात्र स्वतः ही सीख जाता है अगर वह वैज्ञानिक विधि (Scientific Method) में प्रशिक्षित हो जाता है।

10. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सम्बन्धित मूल्य (Values related to Scientific Development)

एक क्रमबद्ध, सुव्यवस्थित, विशिष्ट विषय होने के नाते विज्ञान अपनी समस्या समाधान की एक प्रक्रिया रखता है जिसे वैज्ञानिक प्रक्रिया (Scientific process) कहते हैं। वैज्ञानिक प्रक्रिया एक जटिल व कई चरणों से होकर गुजरती हुई समस्या का समाधान प्रस्तुत करती है। छात्रों को अगर इस प्रक्रिया में प्रशिक्षित कर दिया जाय तो उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific Attitude) का विकास हो जाता है। यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया होती है जो कि छात्रों के मस्तिष्क में निरंतर चलना प्रारंभ हो जाती है अगर उन्हें समुचित प्रशिक्षण प्रदान किया जाये।

विद्यालय पाठ्यक्रम में विज्ञान का स्थान (Place of Science in School Curriculum)

विज्ञान की उपयोगिता एवं महत्त्व को पहले समझाया जा चुका है। अब यह विचार करेंगे कि विज्ञान का विषय के रूप में क्या महत्त्व है तथा विद्यालय पाठ्यक्रम में उसका क्या स्थान होना चाहिये। विज्ञान को पाठ्यक्रम में स्थान देना निम्न प्रकार उपयोगी है-

(1) व्यावहारिक उपयोगिता का विषय:– अन्य विषयों की अपेक्षा विज्ञान सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण विषय है। जिस संसार में विद्यार्थी रहते हैं उस संसार का कुछ ज्ञान उनके लिये अनिवार्य है और उसी ज्ञान से वे अपने व्यावहारिक जीवन की समस्याओं को हल कर सकते हैं। हमारे कार्य करने तथा रहने-सहने के ढंग सभी वैज्ञानिक साधनों पर आधारित होने लगे हैं, जिनके सम्बन्ध में हमें ज्ञान होना आवश्यक है।" विज्ञान की सहायता से विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। अमेरिका, फ्रांस तथा रूस आदि राष्ट्रों की प्रगति के कारण विज्ञान को पाठ्यक्रम में प्रमुख स्थान देना है। रूस और अमेरिका में विज्ञान की शिक्षा के लिये समस्त आधुनिक सुविधाओं का प्रबन्ध किया गया है। हरबर्ट स्पेन्सर ने विज्ञान की उपयोगिता के विषय में लिखा है- "विज्ञान के अध्ययन से जो ज्ञान हमको मिलता है वह हमारे जीवन के मार्गदर्शन में अन्य बातों के ज्ञान से कहीं अधिक उपयोगी है।" आज हाईस्कूल की कक्षाओं तक विज्ञान एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाता है।

(2) ज्ञान का विकास:– विज्ञान के अध्ययन से ज्ञान का विस्तार होता है। प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञान विकसित करने की इच्छा होती है, जिसकी तृप्ति जितनी अच्छी तरह विज्ञान करता है, उतना और कोई विषय नहीं। सूर्य, चाँद, तारे, सागर तथा प्रकृति के अन्य रहस्य जितनी अच्छी तरह विज्ञान की सहायता से समझे जा सकते हैं, उतने और किसी अन्य विषय की सहायता से नहीं।

(3) निरीक्षण शक्ति का विकास:- विज्ञान बालकों की निरीक्षण शक्ति का विकास करता है। वे प्रयोगशाला में किसी वस्तु को ध्यान से देखना तथा परखना सीखते हैं। विज्ञान का विद्यार्थी किसी घटना या बात को बिना सोचे-समझे स्वीकार नहीं करता। वह तर्क की कसौटी पर तथा निरीक्षण एवं परीक्षण के द्वारा ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचता है।

(4) नैतिक विकास:– विज्ञान मनुष्य का नैतिक विकास करता है। कुछ लोग कहते हैं कि विज्ञान के अध्ययन से व्यक्ति नास्तिक हो जाता है और वह ईश्वर की सत्ता के प्रति अविश्वास प्रकट करता है, परन्तु विद्वान स्पेन्सर ने इस विचारधारा का खण्डन किया है, उनके अनुसार विज्ञान व्यक्ति को धार्मिक तथा आस्तिक बनाता है। विज्ञान की सहायता से वह ईश्वर तथा प्रकृति के रहस्य को समझने का प्रयास करता है, जिससे उसमें ईश्वर के प्रति श्रद्धा उत्पन्न होती है। विज्ञान ही व्यक्ति को संसार की एकता का ज्ञान कराता है।

(5) नागरिकता का विकास:- विज्ञान बालकों की नागरिकता का विकास करता है। उनके दृष्टिकोण को पक्षपातहीन बनाने में उसका विशेष योग रहता है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में एक विज्ञान का विद्यार्थी अनेक प्रकार से समाज की सेवा कर सकता है। एक डॉक्टर के रूप में वह देश की जनता के स्वास्थ्य की रक्षा कर सकता है तथा इंजीनियर के रूप में वह जनता के लिये अनेक सुविधा के साधन जुटा सकता है।

(6) मानसिक अनुशासन की वृद्धि:- विज्ञान बालकों में मानसिक अनुशासन का विकास करता है। श्री रावत और लाल का कथन है कि–“विज्ञान का अनुशासनात्मक (Disciplinary) महत्त्व भी कम नहीं है। विज्ञान के अध्ययन से हमारा दृष्टिकोण निश्चित हो जाता है तथा विचार-शृंखलाएँ क्रमबद्ध हो जाती हैं। विज्ञान न केवल वैज्ञानिक तथ्यों को बतलाता है, बल्कि यह वैज्ञानिक भावना, वैज्ञानिक तर्क एवं वैज्ञानिक प्रशिक्षण को जन्म देता है। विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करके व्यक्ति सभी कार्य नियमानुसार करने लग जाते हैं। जीवन के सभी कार्य-कलापों में विज्ञान की धारा सदा अपेक्षणीय है। विज्ञान के विभिन्न प्रयोग करते समय बालक को अपनी बुद्धि को सचेत रखना पड़ता है तथा वह अपने ज्ञान का क्रमबद्ध रूप में उपयोग करता है।

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