निर्देशन का अर्थ, महत्व, विशेषताएँ , क्षेत्र एवं कार्य | Meaning, Importance, Characteristics, Scope and Functions of Guidance in hindi

जब मानव विकास पथ पर अग्रसर होने के लिए दूसरे के अनुभव, बुद्धि और विवेक का सहारा लेता है तो दूसरे व्यक्ति के द्वारा इस प्रकार की गयी सहायता निर्देशन

निर्देशन का अर्थ (Meaning of Guidance)

सामान्य शब्दों में, निर्देशन का अर्थ है कर्मचारियों से काम लेना, दूसरे शब्दों में निर्देशन किसी कार्य को सम्पन्न कराने हेतु मार्गदर्शन या दिशा प्रदान करने को कहते हैं। यह तय हो जाने के पश्चात् कि क्या किया जाता है? दूसरी महत्त्वपूर्ण समस्या यह उपस्थित होती है कि, "कैसे किया जाए?" इस समस्या का समाधान 'निर्देशन' के द्वारा सम्भव है। निर्देशन को संचालन, मार्गदर्शन, दिग्दर्शन आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है।

Meaning, Importance, Characteristics, Scope and Functions of Guidance in hindi

मानव इस संसार में ईश्वर की श्रेष्ठतम् कृति है क्योंकि उसके पास भाषा, बुद्धि, विवेक आदि अनेक गुण हैं। लेकिन वह अपना विकास केवल अपनी बुद्धि और विवेक द्वारा ही नहीं कर सकता। इसके लिए उसे दूसरों की सहायता लेनी पड़ती है। जब मानव विकास पथ पर अग्रसर होने के लिए दूसरे के अनुभव, बुद्धि और विवेक का सहारा लेता है तो दूसरे व्यक्ति के द्वारा इस प्रकार की गयी सहायता निर्देशन कहलाती है। निर्देशन अमूर्त संकल्पना है। निर्देशन वस्तुतः पथ प्रदर्शन है। जैसे कोई व्यक्ति चौराहे पर खड़ा है; वह चलना जानता है तथा यह भी जानता है कि इन चारों रास्तों में से कोई एक रास्ता उसके गन्तव्य तक जाता है। लेकिन कौन-सा, वह यह नहीं जानता; तब किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उसे गन्तव्य का रास्ता बताना निर्देशन है।

निर्देशन की परिभाषाएं (Definitions of Guidance)

निर्देशन की कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

1. कुण्ट्ज एवं ओ'डोनेल के शब्दों में, "निर्देशन का घनिष्ठ सम्वन्ध कार्य सम्पादन कराने से है। एक व्यक्ति नियोजन, संगठन तथा कर्मचारियों को नियुक्ति तो कर सकता है, परन्तु उसे तब तक कोई सफलता नहीं मिल सकती है जब तक कि वह अधीन कर्मचारियों को यह न सिखाए कि उन्हें क्या करना है।"

2. मार्शल ई० डीमोक के शब्दों में, "संचालन प्रशासन का हृदय है, जिसके अन्तर्गत क्रियाओं का निर्धारण, आदेश तथा निर्देशों का पालन एवं परिवर्तनशील नेतृत्व प्रदान करना आता है।"

3. थियोहेमन के शब्दों में, "संचालन के अन्तर्गत उन प्रक्रियाओं एवं तकनीकों को सम्मिलित किया जाता है जिनका उपयोग निर्देशों को निर्गमित करने तथा यह देखने के लिए होता है कि क्रियाएं मूल योजना के अनुरूप हो रही है। संचालन ऐसी प्रक्रिया है जिसके चारों ओर समस्त निष्पादन घूमता है। यह क्रियाओं का तत्त्व है तथा समन्वय स्वस्थ प्रबन्धकीय संचालन का उप-उत्पाद है।"

निर्देशन की विशेषताएँ (Characteristics of Guidance)

निर्देशन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. निर्देशन प्रबन्ध का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है।
  2. निर्देशन की आवश्यकता प्रबन्ध के प्रत्येक स्तर पर होती है।
  3. निर्देशन कर्मचारियों को संस्था के उद्देश्य की पूर्ति हेतु प्रेरित करता है।
  4. निर्देशन के अन्तर्गत अधीनस्थों को मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है।
  5. अधीनस्थों के कार्यों का निरीक्षण तथा पर्यवेक्षण किया जाता है।
  6. निर्देशन एक सतत् प्रक्रिया है।
  7. निर्देशन के दो मुख्य उद्देश्य है— कर्मचारियों से कार्य कराना तथा प्रबन्धकों को ज्यादा जिम्मेदारी के लिए तैयार करना।

निर्देशन का विषय क्षेत्र (Scope of Guidance)

निर्देशन जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। अतः जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन निर्देशन का कार्य क्षेत्र कहा जा सकता है। यद्यपि निर्देशन के कार्यक्षेत्र को बताना सप्रयास निर्देशन प्रक्रिया का सीमांकन करना है; तथापि अध्ययन को सरल बनाने की दृष्टि से हम निर्देशन के कार्य क्षेत्र को कुछ बिन्दुओं के अन्तर्गत अभिव्यक्त करने का प्रयास करेंगे।

1. व्यक्ति का व्यक्तिगत जीवन (Personal Life of Individual):- प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत जीवन में अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक आदि। ये समस्याऐं व्यक्ति को तोड़कर रख देती हैं, किन्तु, एक कुशल निर्देशक व्यक्ति को इन समस्याओं से न केवल उबार लाता है बल्कि उसे जीवन में सफलता भी प्राप्त कराता है, अतः व्यक्ति का सम्पूर्ण वैयक्तिक जीवन निर्देशन का कार्य क्षेत्र कहा जा सकता है।

2. व्यक्ति का सामाजिक जीवन (Social Life of Individual):- व्यक्ति परिवार के सम्पर्क में आते ही अपना सामाजिक जीवन जिसे हम पारिवारिक जीवन कहते हैं जीना आरम्भ कर देता है। धीरे-धीरे वह समाज के सीधे सम्पर्क में आता है और अनेक सामाजिक समस्याओं का सामना करने लगता है। इन समस्याओं के समाधान के लिए उसे निर्देशन की आवश्यकता अनुभव होती है। हम कह सकते हैं कि व्यक्ति के समस्त सामाजिक सम्बन्ध निर्देशन के कार्य क्षेत्र में आते हैं।

3. व्यक्ति के शैक्षिक क्रियाकलाप (Educational Activity of Individual):- विद्यालय में प्रवेश के बाद विषय चयन से लेकर विषय को समझने, उसकी कठिनाईयाँ दूर करने, विद्यार्थियों के पारस्परिक सम्बन्ध, विद्यार्थी और अयापकों के कार्य सम्बन्ध, विद्यार्थी और कार्यालय, विद्यार्थी और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तथा विद्यार्थी की अध्ययन से सम्बन्धित अन्य समस्याऐं सभी निर्देशन के कार्यक्षेत्र के अन्तर्गत आती है, क्योंकि बिना निर्देशन के इन समस्याओं का समाधान सम्भव नहीं है।

4. व्यक्ति के व्यावसायिक क्रियाकलाप (Vocational Activity of Individual):- प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन यापन के लिए कोई न कोई कार्य अवश्य करता है। जीवन यापन के लिए किया जाने वाला कार्य व्यवसाय की श्रेणी में आता है। बिना उपयुक्त निर्देशन के उचित व्यवसाय का चयन नहीं किया जा सकता। व्यवसाय चयन के बाद भी उसके व्यावसायिक जीवन में अनेक समस्याऐं आती रहती हैं इन समस्त समस्याओं का निदान करने के लिए निर्देशन की आवश्यकता होती है। अतः व्यक्ति का सम्पूर्ण व्यावसायिक जीवन निर्देशन के कार्य क्षेत्र के अन्तर्गत आता है।

निर्देशन का महत्व (Importance of Guidance)

योजनाएँ चाहे कितनी ही अच्छी क्यों न हों, संगठन का आधार कितना ही सुदृढ़ क्यों न हो, कितने ही योग्य कर्मचारियों की नियुक्ति क्यो न की गई हो किन्तु संस्था का संचालन सुचारु रूप से तब तक सम्भव नहीं हो सकता जब तक कि कुशल निर्देशन कार्य न किया जाए। यही कारण है कि मार्शल ई० डिमोक ने निर्देशन को प्रशासन का हृदय कहा है। बनर्जी ने निर्देशन को प्रबन्ध का एक महत्त्वपूर्ण कार्य मानते हुए लिखा है- "जिस प्रकार फुटबाल के खेल में बिना रैफरी के सीटी बजाए खेल शुरू नहीं होता है, जिस प्रकार रेल बिना गार्ड द्वारा हरी झण्डी दिखाए स्टेशन नहीं छोड़ती, उसी प्रकार एक व्यवसाय का कार्य उस समय तक शुरू नहीं होता जब तक कि निर्देशन का कार्य प्रारम्भ न किया जाए।” चूँकि निर्देशन द्वारा अधीनस्थों को आदेश व निदेश जारी करके उन्हें अभिप्रेरित करके, उनके बीच सूचनाओं का प्रेषण करके तथा उनका नेतृत्व करके संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है। इसलिए प्रबन्ध का यह एक महत्त्वपूर्ण कार्य माना जाता है। निर्देशन के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा आँका जा सकता है-

1. संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति:- निर्देशन के अन्तर्गत अधीनस्थों को क्रियाओं के कुशल निष्पादन हेतु आदेश-निदेश जारी किए जाते हैं, उनकी त्रुटियों को ठीक किया जाता है तथा उनके कार्यों का पर्यवेक्षण किया जाता है जिसके फलस्वरूप संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति आसानी से की जा सकती है। वास्तव में देखा जाए तो बिना निर्देशन के कोई भी संस्था या संगठन अपने उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर पाता। इसके अतिरिक्त चूंकि निर्देशन द्वारा ही व्यक्तिगत उद्देश्यों व संगठनात्मक उद्देश्यों में सामंजस्य स्थापित किया जाता है। इसलिए भी संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति का मार्ग अधिक सरल बन जाता है।

2. प्रबन्धकीय कुशलता की जाँच का आधार:- केवल नियोजन एवं संगठन का कार्य कुशलतापूर्वक कर लेने से ही प्रबन्धकों को योग्य नहीं माना जा सकता, प्रबन्धकों की योगयता का वास्तविक कार्य तो निर्देशन से ही प्रारम्भ होता है। वास्तव में, एक प्रबन्धक की योग्यता या कुशलता इस बात से आँको जाती है कि वह अपनी अधीस्थों को कार्य करने केलिए कितना प्रेरित कर पाता है तथा पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु उनकी क्रियाओं को कितनी गति व दिशा दे पाता है।

3. कार्यों का निष्पादन:- चूँकि निर्देशन का प्रत्यक्ष सम्बन्ध कार्यों के निष्पादन से होता है। अतः अधीनस्थों से कुशलतापूर्वक कार्य का निष्पादन करवाने में निर्देशन बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वास्तव में देखा जाए तो आदेशों व निर्देशों को जारी करने के अभाव में, तथा मार्गदर्शन व पर्यवेक्षण के अभाव में, अधीनस्थों से कार्य के निष्पादन में कुछ भी नहीं या बहुत कम योगदान ही प्राप्त हो सकता है।

4. व्यक्तियों के अधिकतम सहयोग की प्राप्ति:- संगठन में व्यक्तियों के अधिकतम सहयोग की प्राप्ति तभी सम्भव होती है जबकि अच्छी सम्प्रेषण व्यवस्था हो, व्यक्ति अभिमुखी पर्यवेक्षण हो तथा उन्हें अभिप्रेरित किया जाता हो। चूँकि निर्देशन में ये सभी क्रियाएँ सम्मिलित की जाती हैं। अतः इससे उद्देश्यों को प्राप्ति में व्यक्तियों का अधिकतम सहयोग प्राप्त किया जा सकता है।

5. प्रवन्धकीय कार्यों की सफलता का आधार:- निर्देशन संगठन को गति एवं दिशा प्रदान करता है तथा नियोजन, संगठन व स्टाफिंग जैसे प्रवन्धकीय कार्यों को अर्थपूर्ण बनाता है। यहाँ तक कि प्रबन्धक नियोजन, संगठन एवं स्टाफिंग के कार्य कितनी ही कुशलतापूर्वक सम्पन्न क्यों न कर लेवे, किन्तु पर्याप्त व प्रभावी निर्देशन के अभाव में से कार्य निर्मूल सिद्ध हो जाते हैं। इस प्रकार निर्देशन कुछ महत्त्वपूर्ण प्रबन्धकीय कार्यों की सफलता के लिए आधार प्रस्तुत करता है।

6. संगठन की स्थिरता बनाए रखने में सहायक:- विभिन्न प्रकार के विचलनों व परिवर्तनों का संगठन की स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। चूंकि निर्देशन द्वारा विचलनों को समाप्त किया जा सकता है तथा परिवर्तनों को सुविधापूर्वक समायोजित किया जा सकता अत: निर्देशन संगठन में सन्तुलन एवं स्थिरता बनाए रखने में भी सहायक सिद्ध होता है।

निर्देशन के कार्य (Work of Guidance)

निर्देशन की प्रक्रिया के अन्तर्गत निम्नांकित कार्य किए जाते हैं-

  1. अधीनस्थों को आदेश देना।
  2. अधीनस्थों के कार्यों का निरीक्षण करना।
  3. अधीनस्थों को समय-समय पर मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण प्रदान करना।
  4. उपक्रम की विभिन्न क्रियाओं में समन्वय स्थापित करना।
  5. उपक्रम की नीतियों को कार्यान्वित करना।
  6. नियन्त्रण को प्रभावपूर्ण बनाना।
  7. अधीनस्थों को कुशल नेतृत्व प्रदान करना तथा अभिप्रेरणा देना।
  8. सन्देशवाहन को प्रभावी बनाना।
  9. अधीनस्थो के मनोबल को ऊंचा उठाना।
  10. अन्य कार्य, जैसे-कर्मचारियों का योग्यता अंकन करना।

निष्कर्ष (Conclusion)

ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति मानव के पास स्वयं की भाषा, बुद्धि एवं विवेक आदि होते हुए भी उपयुक्त विकास के लिए उसे किसी अन्य की सहायता लेनी पड़ती है। व्यक्ति की उत्तम क्षमताओं का विकास करने से सहायता करने का कार्य निर्देशन कहलाता है। निर्देशन की प्रक्रिया प्रारम्भ करने से पूर्व हमें निर्देशन के सिद्धान्तों से अवश्य परिचित होना चाहिए। हमें यह ज्ञात होना चाहिए कि निर्देशन एक सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक प्रक्रिया है। निरन्तर चलने वाली इस प्रक्रिया में निर्देशक को सामाजिकता एवं नैतिकता का ध्यान रखना चाहिए। निर्देशन कार्य करने से पूर्व उसे वैज्ञानिक आधारों पर परिस्थितियों का विश्लेषण कर लेना चाहिए। निर्देशक को चाहिए कि वह अपने उपबोध्य को सकारात्मक निर्देशन दे तथा उसे आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करे। उपबोध्य निर्देशक का निर्देशन मानने अथवा न मानने के लिए स्वतन्त्र हो निर्देशन की प्रक्रिया लचीली होनी चाहिए। व्यक्तिगत भिन्नता को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक व्यक्ति को समान महत्त्व दिया जाना चाहिए तथा उपबोध्य के सम्पूर्ण विकास का प्रयास करना चाहिए।

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