बन्द परिपथ दूरदर्शन का अर्थ, विशेषताएँ, उपयोगिता एवं सीमाएँ | Closed Circuit Television (CCTV) in hindi

क्लोज सर्किट टेलीविजन के द्वारा प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रम केवल कक्षाओं आदि तक ही सीमित रहते हैं, इसीलिए इन्हें 'क्लोज सर्किट टेलीविजन' कहा जाता

बन्द परिपथ दूरदर्शन (क्लोज सर्किट टेलीविजन CCTV)

सामान्यतः टेलीविजन प्रसारण में केबिल के माध्यम से प्रसारित किए जाने वाले शैक्षिक कार्यक्रमों को पहले स्टूडियो में रिकॉर्ड किया जाता है। इसके पश्चात् टी० वी० रिसीवर एण्टीना के द्वारा उन कार्यक्रमों का सम्पूर्ण देश में दूरदर्शन पर प्रसारण किया जाता है। क्लोज सर्किट टेलीविजन के द्वारा प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रम केवल कक्षाओं आदि तक ही सीमित रहते हैं, इसीलिए इन्हें 'क्लोज सर्किट टेलीविजन' कहा जाता है। इसके माध्यम से हुआ प्रसारण को एक्सिल के द्वारा टी० वी० सेंट या मॉनीटर तक आता है। इनका उद्देश्य पूर्व-निर्धारित प्रकरणों पर कार्यक्रम का प्रसारण करना होता है। इस प्रकार के प्रसारण में माइक्रोवेव का सीमित प्रयोग किया जाता है। यही कारण है कि इसका प्रसारण भी किसी स्थान विशेष एवं दर्शकों तक ही सीमित रहता है।

Closed Circuit Television (CCTV) in hindi

शिक्षा के क्षेत्र में इस यन्त्र का प्रयोग शिक्षण व अनुदेशन को प्रभावी बनाने के उद्देश्य से किया जाता है। विशेष रूप से विद्यार्थी एवं अध्यापकों के शिक्षण में सुधार करने की दृष्टि से इसका प्रभावी उपयोग किया जा सकता है। भारत के कुछ विशिष्ट संस्थानों में इसका प्रयोग प्रारम्भ हो चुका है। इसे किसी भी शैक्षणिक संस्था के द्वारा प्रयुक्त किया जा सकता है, परन्तु महँगा यन्त्र होने के कारण अधिकांश संस्थाएँ इसके प्रयोग से आज भी वंचित हैं।

क्लोज सर्किट टेलीविजन की विशेषताएँ

क्लोज सर्किट टेलीविजन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. इसके प्रयोग से अनुदेशन के क्षेत्र का विस्तार हो जाता है।
  2. इसके माध्यम से अच्छे शिक्षको के शिक्षण से किसी एक विद्यालय की कई कक्षाओं, अथवा कई शैक्षिक संस्थाओं को एक साथ लाभान्वित किया जा सकता है।
  3. इसकी सहायता से शैक्षिक संस्थाएँ अपनी-अपनी सारणी के अनुसार शिक्षण प्रक्रिया का संचालन कर सकती हैं।
  4. किसी प्रकार के प्रायोजित प्रदर्शनों को सभी विद्यार्थियों को एक साथ दिखाया जा सकता है। साथ ही उनके बारे में सूक्ष्म अध्ययन भी कराया जा सकता है।
  5. शिक्षण में जिन तथ्यों को प्रस्तुत करना कठिन होता है, उन्हें इसके माध्यम से विस्तृत आकार प्रदान किया जा सकता है।
  6. इस योजना में वीडियो टेप का भी प्रयोग किया जा सकता है।
  7. शिक्षक अन्य शिक्षकों के साथ विचार-विमर्श कर सकता है।

क्लोज सर्किट टेलीविजन की उपयोगिता

उपग्रह दूरदर्शन की भाँति ही क्लोज्ड सर्किट दूरदर्शन कार्यक्रम भी शिक्षा के क्षेत्र में एक नवीन प्रवर्तन है। इस यन्त्र को शिक्षण एवं अनुदेशन को प्रभावपूर्ण बनाने के कारण प्रयोग में लाया जा सकता है। भारत के कुछ विशिष्ट संस्थानों में इसका प्रयोग किया जाने लगा है। कोई भी शिक्षा संस्था इसका प्रयोग कर सकती है। परन्तु यह एक महँगा यन्त्र होने के कारण छात्रों को केबिलों के माध्यम से शिक्षा प्रदान की जा सकती है। शिक्षण, अनुदेशन एवं प्रशिक्षण के क्षेत्र में क्लोज सर्किट टेलीविजन का उपयोग इस प्रकार किया जा सकता है-

  1. इस माध्यम की सहायता से विद्यार्थियों की आवश्यकता के अनुसार किसी भी प्रकार के अनुदेशन का प्रसारण किया जा सकता है।
  2. जिन तथ्यों का प्रस्तुतीकरण कक्षा में करना कठिन होता है, उन्हें इसके द्वारा बड़े रूप में प्रस्तुत करके तथ्यों के प्रस्तुतीकरण से सम्बन्धित समस्या का समाधान किया जा सकता है।
  3. इसके माध्यम से कई कक्षाओं अथवा कई विद्यालयों के विद्यार्थियों को एक साथ लाभान्वित किया जा सकता है।
  4. इसके माध्यम से विश्व की किसी भी घटना, दृश्य, वस्तु आदि को साकार रूप में दर्शाया जा सकता है।
  5. इसके माध्यम से सूक्ष्म शिक्षण आदि विभिन्न प्रविधियों का प्रयोग सभी विद्यार्थियों को एक साथ दिखाया जा सकता है।
  6. इसके माध्यम से शैक्षिक समस्याओं के सम्बन्ध में विचार-विमर्श करके उनका समाधान प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
  7. सम्पूर्ण विश्व की यथार्थताओं को इसके द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।
  8. यह अन्य संस्थाओं के साथ पारस्परिक सम्पर्क स्थापित करने में सहायता प्रदान है।
  9. इस यन्त्र की सहायता से अनुदेशन का विस्तार किया जा सकता है।

क्लोज सर्किट टेलीविजन की सीमाएँ

क्लोज सर्किट टेलीविजन की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. यह योजना अत्यधिक व्ययपूर्ण है। प्रत्येक शैक्षिक अथवा व्यावसायिक संस्था के द्वारा इसक प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
  2. इसके प्रयोग के समय विद्यार्थियों को केवल सुनने और देखने का अवसर ही प्राप्त होता है।
  3. इस योजना के द्वारा किया जाने वाला सम्प्रेषण एकाकी होता है, जिससे विद्यार्थियों को अपनी कठिनाइयों का समाधान प्राप्त करने का कोई अवसर प्राप्त नहीं होता है।
  4. इसके माध्यम से विद्यार्थियों के केवल ज्ञानात्मक पक्ष का ही विकास हो पाता है।

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