शिक्षा में ग्रेडिंग सिस्टम | Grading System in Education in hindi
ग्रेडिंग प्रणाली (Grading System)
ग्रेड प्रणाली माध्यमिक स्तर पर ड्राइंग, चित्रकला, मूर्तिकला, नृत्यकला, पाक कला, संगीत कला और सभी प्रकार की हस्तकलाओं में अंको द्वारा मूल्यांकन करना कठिन होता है, क्योंकि प्रयोगात्मक विषयों में प्रदर्शित कलाओं में एक-एक अंक का अंतर करना अध्यापक के लिए कठिन कार्य है। निःस्वार्थ, निष्पक्ष अंकों का मूल्यांकन करने पर भी विद्यार्थियों में असंतोष बना रहता है।
इसलिए एक-एक अंक का भेद दूर करने के लिए मूल्यांकन सुझाव समितियों ने ग्रेडिंग परीक्षा प्रणाली लागू करने पर बल दिया है, जिससे अध्यापकों को मूल्यांकन करने में सुविधा और पूर्ण रूप से संतुष्टि हो। अंक-प्रणाली के स्थान पर ग्रेड प्रणाली को अपनाने के प्रस्ताव में मूलभूत मान्यता है कि छात्रों को उनकी योग्यता के आधार पर 101 समूहों में विभाजित करना व्यावहारिक दृष्टि से सम्भव नहीं है। परीक्षक अधिक से अधिक छात्रों को कुछ सीमित संख्या वाली गुणात्मक श्रेणियों (5, 7 या 9) आदि में विभाजित कर सकते हैं। इसी को ग्रेड श्रेणी कहा जाता है। इसे संकेताक्षर A B C D F अथवा 0 1 2 3 4 5 आदि से प्रदर्शित करते है।
इस प्रणाली की आलोचना समय-समय पर की जाती रही हैं। इसकी आलोचना परीक्षको द्वारा अपनी विचारधारा और उस समय को उनकी मानसिक स्थिति के आधार पर की जाती रही है। इसके अतिरिक्त जहाँ 59.8% प्राप्तांक पाने वाला छात्र द्वितीय श्रेणी प्राप्त करता है वही 60% अंक प्राप्त करने वाला छात्र प्रथम श्रेणी प्राप्त करता है, जबकि वास्तव में दोनों छात्रों की योग्यता में कोई अन्तर नहीं होता। इस प्रकार के मूल्यांकन में विषय की प्रकृति द्वारा की अंकों का निर्धारण होता है, जैसे गणित में 100% अंक प्राप्त करना सम्भव है, पर इतिहास या भाषा में यह सम्भव नहीं है।
अंकन प्रणाली की इन कमियों के कारण माध्यमिक शिक्षा आयोग (1952-1953) तथा शिक्षा आयोग (1964-66) ने अंकों के स्थान पर ग्रेड प्रणाली का सुझाव दिया। सन् 1975 में NCERT के द्वारा जारी 'Frame work of curriculum for ten year school' में भी ग्रेड प्रणाली की सिफारिश की गई थी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की 'Plan of Action National Policy on Education में भी विश्वविद्यालय स्तर पर ग्रेड प्रणाली अपनाने की बात कही गयी है।
परीक्षा सुधार के क्षेत्र कार्यरत विषय विशेषज्ञों का ध्यान ग्रेड प्रणाली ने आकर्षित किया। उनके विचार में फलाको के वर्गों (Marking Categories) को कम करके आंकिक प्रक्रिया की त्रुटियों का कम किया जा सकता है। इस प्रकार ग्रेड प्रणाली के अपनाए जाने को सिद्धान्त रूप में स्वीकार करने के पश्चात् भी ग्रेडों की संख्या पर एक मत निर्णय नहीं पाया गया। कुछ छात्रों के मत में 5 बिन्दु ग्रेड, कुछ लोगों के मत में 7 और अन्य कुछ लोगों के मत मे 9 बिन्दु ग्रेड प्रणाली उचित थीं।
ग्रेडिंग विधियाँ
ग्रेडिंग प्रणाली में प्रायः दो प्रकार के अक्षर ग्रेड जैसे A, B, C, D, E तथा O, A, B, C, D देने का रिवाज़ है। इनके द्वारा क्रमशः उत्कृष्ट (Out-standing), बहुत अच्छा, अच्छा, कम या बहुत कम उपलब्धि स्तर का प्रतिनिधित्व किया जाता है। इन अक्षर ग्रेडों को प्रदान करने हेतु प्राय: निम्न दो विधियों का अनुसरण किया जाता है-
1. निरपेक्ष ग्रेडिंग प्रणाली
इस ग्रेडिंग प्रणाली में अक्षर ग्रेड को निर्धारित करने के लिए पूर्व निर्धारित स्तर या मानदण्ड तय होते हैं। इसे दो प्रकार से किया जा सकता है—
(i). एक दिए हुई ग्रेड के लिए जरूरी पूर्व स्थापित अंक तय होते हैं। दूसरे शब्दों में प्रतिशत अंकों की विभिन्न श्रेणियों के ग्रेड इस प्रकार तय किये जाते हैं-
ग्रेड | प्रतिशत अंक |
O | 80% और ऊपर |
A | 70-79% तक |
B | 60-69% तक |
C | 50-59% तक |
D | 50% से कम |
(ii). निरपेक्ष ग्रेडिंग प्रणाली को करने का दूसरा तरीका कसौटी संदर्भित ग्रेडिंग प्रणाली है। इस प्रणाली में प्रदर्शन स्तर की कसौटी को अध्यापक या प्राधिकारियों द्वारा तय किया जाता है। विद्यार्थियों के परीक्षण से पहले उनसे यह पूछा जाता है कि विभिन्न अक्षर ग्रेड (Letter grades ) को प्राप्त करने के लिए उन्हें किस प्रकार का प्रदर्शन करना होगा अर्थात् उन्हें अपने व्यवहार में क्या-क्या बदलाव करने पड़ेगे। उनके प्रदर्शन स्तर व प्राप्त अक्षर ग्रेड को इस प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है-
Grade | Performance Level |
O | Outstanding (Excellent) |
A | Above Average |
B | Average |
C | Below Average |
D | Very Poor (Inadequate) |
2. सापेक्ष ग्रेडिंग प्रणाली
ग्रेडिंग प्रणाली की इस प्रक्रिया में विद्यार्थियों को कक्षा में उनकी रैंक (स्थिति) की तुलना के आधार पर ग्रेड दिए जाते हैं। सामान्यतः सापेक्ष ग्रेडिंग प्रणाली में ग्रेडों का नियतन 'सामान्य वक्र' वितरण का अनुसरण करता है। अंकों का वितरण विद्यार्थियों की संख्या पर 'सामान्य वक्र' के वितरण प्रणाली का अनुसरण करता है। 'सामान्य वक्र' के नीचे का क्षेत्र सांख्यिकता से बराबर हिस्सों में बाँटा जा सकता है। जिनकी सहायता से हमें अंकों की प्रतिशतता का बोध होता है। इस ग्रेड प्रणाली को इस प्रकार से दर्शाया जा सकता है-
ग्रेड | दिए गए ग्रेड में विद्यार्थियों की प्रतिशतता |
O | कक्षा या समूह के ऊपरी 7% |
A | कक्षा या समूह के ऊपरी मध्य के 24% |
B | कक्षा या समूह के मध्य के 38% |
C | कक्षा या समूह के नीचले मध्य के 24% |
D | कक्षा या समूह के निम्नतम स्तर के 7% |
ग्रेड प्रणाली के लाभ
ग्रेड प्रणाली के मुख्य लाभ निम्नवत् हैं-
- भिन्न संस्थाओं या विश्वविद्यालयों का अंकन स्तर भिन्न-भिन्न होने पर प्राप्तांको के द्वारा परीक्षार्थियों की तुलना तर्कसंगत प्रतीत नहीं होती है। ग्रेड प्रणाली ऐसी स्थिति में एक उपयोगी साधन का कार्य कर सकेंगी।
- ग्रेड की सहायता से छात्रों का मूल्यांकन अधिक विश्वसनीय होता है, अतः ग्रेड प्रणाली का प्रयोग परीक्षा की विश्वसनीयता को बढ़ाता है।
- ग्रेड प्रणाली विभिन्न विषयों तथा संकायों में छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि की तुलना करने के लिए एक उभयनिष्ठ पैमाने का कार्य कर सकती है।
- छात्रों की अभिरुचि तथा योग्यता के आधार पर भावी पाठ्यक्रमों के चयन करने की दृष्टि से ग्रेड प्रणाली अधिक उपयुक्त तथा वैज्ञानिक है।
- ग्रेड प्रणाली को अपनाये जाने पर एक स्थान से दूसरे स्थान को स्थानान्तरण (Migration) करते समय होने वाली कठिनाइयाँ कम हो जायेंगी, जिससे अन्क्षेत्रीय स्थानान्तरण में सुविधा हो सकेगी।
परीक्षा सुधार कार्य में ग्रेडिंग प्रणाली की भूमिका
विभिन्न परीक्षा संस्थाओं या विश्वविद्यालयों में ग्रेड प्रणाली अधिक उपयोगी साबित हुई है। इसके द्वारा छात्रों का मूल्यांकन अति विश्वसनीय हो गया है। यह छात्रों की उपलब्धि की तुलना करने के लिए एक उभयनिष्ठ पैमाने का कार्य करती है और छात्रों की अभिरुचि तथा योग्यता के आधार पर भावी पाठ्यक्रम चयन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
मूल्यांकन प्रणाली में ग्रेड का महत्त्व
1925 से पहले परम्परागत परीक्षा प्रणाली व्यवस्था थी, जिसमें शैक्षिक प्रक्रियाओं का सही मूल्यांकन नहीं होता था। इसलिए बोर्ड तथा विश्वविद्यालयों ने पुनः मूल्यांकन विधि को लागू किया। विद्यार्थियों को पुनापरीक्षण से न्याय मिल सके। परन्तु परम्परागत परीक्षा प्रणाली में बहुत-सी खामियाँ थीं, इसलिए 1940 में मूल्यांकन प्रणाली लागू करने पर बल दिया गया। जिसमें सभी शैक्षिक प्रक्रियाओं और सहभागी क्रियाओं का मूल्यांकन करने के लिए दिशा-निर्देश दिए गए। धीरे-धीरे समयानुसार मूल्यांकन प्रणाली को सहर्ष राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया गया है।
संक्षिप्त उत्तर वाले प्रश्नों के साथ वस्तुनिष्ठ प्रश्नों और रिक्त प्रश्नों, बहुविकल्पीय प्रश्नों के माध्यम से प्रमाणिक मूल्यांकन प्रणाली का प्रचलन तथा महत्त्व अब बढ़ता जा रहा है।
प्रमाणिक मूल्यांकन प्रणाली के साथ-साथ अंक मूल्यांकन प्रणाली ग्रेडिंग प्रणाली को स्वीकार किया गया है, क्योंकि अंक मूल्यांकन में एक से सौ तक अंकों का मूल्यांकन किया जाता है। परीक्षक और विद्यार्थी दोनों को एक-एक अंक प्रमाणित करने में कठिनाई आती है। विद्यार्थी एक-एक अंक के अंतर के कारण टेन्शन ले लेते हैं। परीक्षक भी एक-एक अंक का स्पष्टीकरण देने में प्रमाणिक उत्तर देने में असमर्थ हो जाता है।
इसलिए विद्यार्थियों और परीक्षकों (अध्यापकों) की एक-एक अंक की चिंता को दूर करने के लिए अथवा विद्यार्थियों और अध्यापकों में प्राप्तांकों के कारण मतभेद की स्थिति उत्पन्न न हो इसलिए मूल्यांकन में ग्रेडिंग प्रणाली को अपनाया जा रहा है।
ग्रेडिंग प्रणाली की उपयोगिता
- शोध के क्षेत्र में आँकड़े एकत्रित करने के लिए इसका प्रशासन करना अत्यन्त आसान तथा रुचिकर है।
- यह शोध के क्षेत्र में आँकड़े एकत्रित करने की एक विश्वसनीय तथा वस्तुनिष्ठ विधि है।
- ग्रेडिंग प्रणाली द्वारा गुणों का मूल्यांकन करने से वस्तुनिष्ठता आती है।
- इस विधि से मूल्यांकन करने में कम समय व्यय होता है।
- स्कूलों में छात्रों को विभिन्न कक्षाओं में प्रवेश देते समय एवं सरकारी या गैर-सरकारी प्रतिष्ठानों, कारखानों, संस्थाओं में नौकरी हेतु अभ्यर्थियों का चुनाव करने के लिए यह अत्यन्त लाभकारी प्रविधि है।
- इस प्रविधि से मूल्यांकन करने से प्रयोज्य को स्वयं के विषय में उचित जानकारी प्राप्त हो जाती है। इससे प्रयोज्य उत्साहित होता है क्योंकि वह यह जान जाता है कि मूल्यांकन ठीक प्रकार से हो रहा है।
ग्रेडिंग प्रणाली की सीमाएँ
श्रेणी मापनी की निम्नलिखित सीमाएँ है—
1. परिवेश प्रभाव:- परिवेश का प्रभाव यह है कि कभी-कभी निर्धारक के मस्तिष्क में प्रयोज्य के प्रति पूर्णधारण बैठ जाती है, उससे प्रभावित होकर वह प्रयोज्य के सम्बन्ध में अच्छा या बुरा निर्णय लेता है। इससे मूल्यांकन प्रभावित हो जाता है।
2. केन्द्रीय प्रवृत्ति सम्बन्धी त्रुटि:- कुछ निर्णायक किसी गुण के सन्दर्भ में न्यादर्श के अधिकांश व्यक्तियों को मध्यमान के निकट रखना चाहते हैं। निर्णायक गुण एवं दोष के आधार पर लोगों के गुणों का मूल्यांकन नहीं करते हैं। इससे अनुसन्धान का परिणाम और निष्कर्ष दोनों ही प्रभावित होते हैं।
3. उदारता सम्बन्धी त्रुटि:- प्रायः निर्धारक उन व्यक्तियों के गुणों का निर्धारण करते समय उदारतापूर्ण दृष्टिकोण अपनाता है जो उसके पूर्व परिचित होते हैं या जिनका व्यक्तित्व आकर्षक होता है। कुछ ऐसे भी निर्धारक होते हैं जो सामान्य रूप से सभी व्यक्तियों को सामान्य से ऊपर की श्रेणी में रख देते हैं। ऐसे उदार निर्धारकों द्वारा 60 से 80 प्रतिशत व्यक्तियों को किसी गुण के सन्दर्भ में सामान्य से ऊपर की श्रेणी में रख दिया जाता है।
4. सामीप्य त्रुटि:- समीपी निर्णय का प्रभाव आगे आने वाले निर्णय पर पड़ता है।
5. निर्धारण में तार्किक त्रुटि:- इस प्रकार की त्रुटि के विषय में सर्वप्रथम न्यूकोम्ब ने बताया था। प्रायः निर्धारक उन तत्वों को एक जैसा निर्धारित करते हैं जो उन्हें तार्किक रूप से एक से लगते हैं, इससे मूल्यांकन में त्रुटि हो जाती है।
6. विपरीतता सम्बन्धी त्रुटि:- कुछ निर्णायकों में विपरीत निर्णय देने की प्रवृत्ति होती है। उनकी इस प्रवृत्ति के कारण भी मूल्यांकन में त्रुटि हो जाती है।