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व्यक्तित्व का अर्थ, परिभाषा एवं मापन | Meaning, Definition and Measurement of Personality in hindi

शाब्दिक दृष्टि से 'व्यक्तित्व' अंग्रेजी भाषा के 'पर्सनेल्टी' शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है। यह शब्द लैटिन भाषा के परसोना से विकसित हुआ है।

व्यक्तित्व का अर्थ

शाब्दिक दृष्टि से 'व्यक्तित्व' अंग्रेजी भाषा के 'पर्सनेल्टी' शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है। यह शब्द लैटिन भाषा के परसोना से विकसित हुआ है। जिसका अभिप्राय नकली चेहरा है। प्राचीन समयावधि में व्यक्तित्व का अर्थ शारीरिक रचना, रंग-रूप, वेशभूषा आदि से लगाया जाता था। जो व्यक्ति बाहरी गुणों से जितना अधिक प्रभावित कर सकता था, वह उतना ही अधिक प्रभावशाली माना जाता था। लेकिन सच तो यह है कि व्यक्तित्व का निर्धारण अनेक प्रतिकारको से होता है।

Meaning, Definition and Measurement of Personality

मनोवैज्ञानिक भाषा में कहा जाता है कि व्यक्ति में आन्तरिक और बाह्य जितनी भी विशेषताएँ, योग्यताएँ और विलक्षणताएँ होती हैं, उन सबका समन्वित रूप ही व्यक्तित्व है।

व्यक्तित्व की परिभाषा

व्यक्तित्व के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है-

1. रेक्स रॉक के अनुसार, "व्यक्तित्व समाज द्वारा मान्य सामान्य गुणों का सन्तुलन है।"

2. गिलफोर्ड के अनुसार, "व्यक्तित्व गुणों का समन्वित रूप है।"

3. ऑलपोर्ट के अनुसार, “व्यक्तित्व व्यक्ति के अन्दर उस मनोशारीरिक संस्थानों का गत्यात्मक संगठन हैं जो वातावरण के साथ उसका अनूठा समायोजन स्थापित करता है।"

व्यक्तित्व का मापन

मापन का दृष्टिकोण कोई भी हो, व्यक्तित्व मापन विधियों को तीन वर्गों के अन्तर्गत रखा जा सकता है, जो निम्नलिखित हैं-

  1. व्यक्तित्व मापन की व्यक्तिनिष्ठ विधियाँ,
  2. व्यक्तित्व मापन की वस्तुनिष्ठ विधियों,
  3. प्रक्षेपी विधियाँ।

इनका वर्णन निम्नलिखित हैं-

1. व्यक्तित्व मापन की व्यक्तिनिष्ठ विधियां:- इस विधि का अभिप्राय उन विधियो से है जिनके भापन परीक्षण परिणाम मापनकर्त्ता की अपनी मान्यताओं, अपनी पसन्द-नापसन्द और स्वयं के व्यक्तिगत मानदण्डों के द्वारा प्रभावित होते हैं। इनमें निम्नलिखित विधियाँ प्रयुक्त होती हैं-

(i) साक्षात्कार विधि:- साक्षात्कार विधि में परीक्षक और परीक्षार्थी आमने-सामने बैठते हैं। परीक्षक परीक्षार्थी से व्यक्तित्व लक्षण सम्बन्धी प्रश्न पूछता है और परीक्षार्थी उनके जवाब देता है। परीक्षार्थी द्वारा दिये गये जवाबों में उसके हाव-भाव, तौर-तरीके, वाणी की स्पष्टता आदि गुणों के बारे में जानकारी मिलती है। यह विधि अधिकतर सरकारी सेवाओं के चयन में प्रयुक्त होती है। इस विधि में कुशल एवं अनुभवी परीक्षक की जरूरत होती है तथा परीक्षार्थी पर भी इसकी सफलता निर्भर होती है, क्योंकि अगर वह सही तथ्यों को बताता है तभी मूल कारणों का पता चलता है, अन्यथा नहीं। इसके परिणाम पूरी तरह विश्वसनीय नहीं होते हैं।

(ii) अवलोकन विधि:- अवलोकन विधि में परीक्षक द्वारा परीक्षार्थी के व्यवहार का अवलोकन किया जाता है और यह जानने का प्रयास किया जाता है। कि उसमें व्यक्तित्व के कौन-कौन से लक्षण कितनी कितनी मात्रा में हैं—अधिक, सामान्य अथवा न्यून मात्रा में। इस विधि का सबसे बड़ा गुण यह है कि इसमें परीक्षक परीक्षार्थी की विशेषताओं को स्वयं अपनी आँखों से देखता है और दिमाग से समझता है, उसे किसी तरह के उपकरण की जरूरत नहीं होती है।

(iii) आत्मकथा-विधि:- आत्मकथा विधि में परीक्षक छात्र की परीक्षा लेने के लिए एक शीर्षक का चुनाव करता है तथा छात्र इस शीर्षक को ध्यान से देखते हुए स्वयं के जीवन से सम्बन्धित निबन्ध लिखता है। निबन्ध पूर्ण हो जाने के उपरान्त परीक्षक उसे पढ़कर छात्र के विषय में विचार प्रकट करता है जिससे उसके व्यक्तित्व के विषय में पता चलता है।

(iv) प्रश्नावली विधि:- प्रश्नावली विधि में छात्र के विभिन्न गुणों से सम्बन्धित प्रश्नों की एक सूची निर्मित की जाती है, जिसमें छात्र को लिखित 'हाँ' या 'नहीं' में उत्तर देना होता है। इन प्रश्नावलियों के सहयोग से छात्र की विशेषताओं और गुण; जैसे- रूचि, अरूचि, आत्मविश्वास, सामाजिकता, अन्तर्मुखी प्रवृत्ति आदि को परीक्षा की जाती है।

2. व्यक्तित्व मापन की वस्तुनिष्ठ विधियाँ:- इस विधि का अभिप्राय उन विधियों से है जिनके मापन परिणाम परीक्षक की अपनी पसन्द-नापसन्द और अपने व्यक्तिगत मानदण्डों से अप्रभावित होते हैं। इनमें निम्नलिखित विधियाँ प्रयुक्त होती हैं-

(i) शारीरिक परीक्षण विधि:- शारीरिक परीक्षण विधि में विभिन्न यन्त्रों के सहयोग से छात्र के शारीरिक लक्षणों का ज्ञान एवं अध्ययन किया जाता है; जैसे—

  • (क) प्लेन्खीसोमोग्राफ:— यह रक्त दाब देखने का यन्त्र है जिससे 'रक्तदाब' (B.P.) जात किया जाता है।
  • (ख) इलेक्ट्रो-कार्डियोग्राफ:- यह हृदय गति देखने का यन्त्र है। इसके द्वारा हृदय गति मापी जाती है।
  • (ग) स्फीग्मोग्राफ:— यह नाड़ी देखने का यन्त्र है। इसके द्वारा नाड़ी की गति का पता लगाया जाता है।
  • (घ) न्यूमोग्राफ:— यह साँस देखने का यन्त्र है। इसके द्वारा सांस की गति का पता लगाया जाता है।

(ii) नियन्त्रित निरीक्षण विधि:- नियन्त्रित निरीक्षण विधि में किसी छात्र के व्यक्तित्व का मापन नियन्त्रित परिस्थितियों में उसके बौद्धिक कार्यों, संवेगात्मक विकास, रूचियो, अभिवृत्तियों एवं आदतों आदि का निरीक्षण करके किया जाता है। इसमें थोड़े ही आँकडों से निष्कर्ष नहीं निकलते जाते हैं, अपितु छात्र को विभिन्न नियन्त्रित परिस्थितियों में रखकर उसका लगातार निरीक्षण किया जाता है और वस्तुनिष्ठ विधि से अध्ययन किया जाता है। तदोपरान्त निष्कर्ष प्राप्त किया जाता है।

इस विधि की खास बात यह है कि इसमें छात्र की अनुक्रियाओं का अध्ययन विभिन्न प्रकार की नियन्त्रित परिस्थितियों में किया जाता है। इसलिए उसके व्यक्तित्व के यथार्थ तथ्य जानकारी अर्जित हो जाती है।

(iii) मापन रेखा विधि:- मापन रेखा विधि में व्यक्तित्व सम्बन्धी गुणों का मूल्यांकन स्वयं छात्र से उसके समीप रहने वाले किसी दूसरे छात्र से कराया जाता है कि वे अमुक छात्र के गुणों पर अपने विचार प्रकट करें। जिस गुण की परीक्षा करनी होती है। उस गुण का श्रेणी या वर्ग विभाजन करने के लिए एक रेखा की 3, 5 या 7 बराबर भागों में विभक्त कर दिया जाता है। जिस वर्ग या श्रेणी को सर्वाधिक अंक अर्जित होते हैं। छात्र उसी रूप में पहचाना या जाना जाता है।

(iv) परिस्थिति परीक्षण विधि:- परिस्थिति परीक्षण विधि में छात्र अथवा परीक्षार्थी के सामने उसके जीवन की वास्तविक परिस्थिति या वास्तविक परिस्थिति से साम्य रखती हुई कोई बनावटों परिस्थिति पैदा की जाती है। परीक्षार्थी इन परिस्थितियों में प्रतिक्रियाएँ करते हैं और परीक्षक परीक्षार्थी को इन प्रतिक्रियाओं के आधार पर उनके व्यक्तित्व का मापन करता है।

3. प्रक्षेपी विधियां:- प्रक्षेपण विधि का आशय उस विधि से है जिसमें छात्र के समक्ष ऐसी उत्तेजक परिस्थिति पैदा की जाती है जिसमें वह स्वयं के विचारी, भावनाओ और मनोवृत्तियों, अनुभूतियों और संवेगों को दूसरों में देखता है और अपने अचेतन में इकट्ठी हुई बातों को बताता है। मनोविश्लेषण प्रक्षेपी को एक रक्षा युक्ति कहते हैं। जिसमें छात्र स्वयं की दबी हुई इच्छाओं को जो किसी कारण अचेतन मन में संकलित हो जाती हैं, परिवर्तित करके नवीन वस्तु की ओर प्रकट करता है; जैसे- अचेतन मन की झुंझलाहट को दूसरों को डाँटने या झगड़ने के द्वारा व्यक्त करना। प्रमुख प्रक्षेपी विधियों निम्नलिखित हैं-

(i) साहचर्य प्रविधि:- साहचर्य विधि में परीक्षार्थी के समक्ष कुछ उद्दीपक प्रस्तुत किये. जाते हैं और उससे उनसे सम्बन्धित प्रतिक्रियात्मक विचार व्यक्त करने को कहा जाता है। यह उद्दीपक चित्र, वाक्य अथवा शब्द के रूप में ही सकते हैं। इनमें सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाली विधि साहचर्य विधि है जिसमें परीक्षार्थी के समक्ष चुनिन्दा शब्द उद्दीपक के रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं और परीक्षार्थी को इन शब्दों से सम्बन्धित उसमें से उत्पन्न होने वाले शब्दों को व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया जाता है। परीक्षक के शब्द एक-एक करके बोलता है और सभी शब्दो की प्रतिक्रिया स्वरूप बोले गये शब्दों को नोट करता है और साथ ही इस प्रतिक्रिया में लगे समय भी नोट करता है और अन्त में प्रतिक्रियास्वरूप बोले गये शब्दों के आधार पर उसके व्यक्तित्व का पता लगाता है।

(ii) रचना प्रविधि:– रचना प्रविधि में परीक्षार्थी के समक्ष कुछ उद्दीपक प्रस्तुत किया जाता है और उससे उसके आधार पर रचना करने के लिए कहा जाता है। यह उद्दीपक की प्रकृति के अनुसार वाक्य, कहानी आदि किसी रूप में कराया जा सकता है। इसमें परीक्षार्थी द्वारा किये गये रचना का विश्लेषण करके उसके व्यक्तित्व का आकलन किया जाता है।

(iii) पूर्ति प्रविधि:- पूर्ति प्रविधि में परीक्षार्थी के समक्ष अपूर्ण रचना उद्दीपक के रूप में प्रस्तुत की जाती है और उससे उसे पूर्ण करने के लिए कहा जाता है। ये अपूर्ण रचनाएँ अपूर्ण अथवा अपूर्ण कहानी आदि के रूप में दी जा सकती है। अन्त में परीक्षार्थी द्वारा किये कृत्यों के आधार पर उसके व्यक्तित्व का आंकलन किया जाता है।

(iv) क्रम प्रविधि:- क्रम प्रविधि में परीक्षक परीक्षार्थी के समक्ष कुछ वस्तुओं, चित्रों, शब्दों, कथनों एवं सिद्धान्तों आदि को प्रस्तुत करता है और उससे उन्हें अपने द्वारा दिये गये महत्व के अनुसार क्रमबद्ध करने को कहा जाता है। परीक्षार्थी सबसे अधिक महत्व वाले को प्रथम स्थान पर रखते हुए अन्य सभी को क्रमशः स्थान बताता है। अन्त में परीक्षक परीक्षार्थी द्वारा किये गये क्रम के आधार पर उसके व्यक्तित्व का आकलन करता है।

(v) अभिव्यक्ति प्रविधि:— अभिव्यक्ति प्रविधि में परीक्षार्थी के समक्ष जिन उद्दीपको को प्रस्तुत किया जाता है उनके प्रति वह स्वयं के विचार व्यक्त करने के लिए पूरी तरह स्वतन्त्र होता है। प्रस्तुत उददीपक में स्पष्टता एवं एकार्थता का अभाव होता है। इसलिए एक उद्दीपक के लिए भिन्न-भिन्न परीक्षार्थियों की भिन्न-भिन्न अनुक्रिया होती है जिनके आधार पर परीक्षार्थी का व्यक्तित्व मापा जाता है।