आंकलन, मापन और मूल्यांकन में संबंध | Relationship between Assessment, Measurement and Evaluation in hindi
आंकलन, मापन एवं मूल्यांकन के मध्य सम्बन्ध (Relationship between Assessment, Measurement and Evaluation)
आंकलन, मापन तथा मूल्यांकन तीनों घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है। इन तीनों का प्रयोग छात्रों के सर्वागीण विकास के लिए किया जाता है। इन तीनों के ही माध्यम से छात्रों की विभिन्न योग्यताओं तथा क्षमताओं की जानकारी प्राप्त होती है। आंकलन सूचना एकत्रित करने की प्रक्रिया है जिससे छात्रों की प्रगति का अवलोकन किया जाता है। आंकलन के लिए विभिन्न परीक्षणों के माध्यम से सूचनाएं एकत्रित की जाती है। इन विधियों द्वारा प्राप्त सूचनाओं के आधार पर छात्रों का आकलन किया जाता है।
मूल्यांकन के माध्यम से छात्रो के मूल्यों का निर्धारण किया जाता है। मूल्यांकन के माध्यम से किसी मापित मूल्य का आंकलन कर उसकी उपयुक्तता तथा मूल्य का निर्माण किया जाता है। मूल्यांकन में आकलन द्वारा एकत्रित की गई सूचनाओं के आधार पर ज्ञात किया जाता है कि पूर्व में निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हुई है। मूल्यांकन व्यापक, क्रमबद्ध तथा उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है। इसके द्वारा छात्र की केवल बौद्धिक उपलब्धि का ही मूल्यांकन नहीं किया जाता बल्कि उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का भी मूल्यांकन किया जाता है।
मापन किन्ही निश्चित स्वीकृत नियमों के अनुसार वस्तुओं या व्यक्तियों को अंक प्रदान करने को प्रक्रिया है। छात्रों का शैक्षिक मूल्यांकन करते समय मापन के कुछ आधारभूत सिद्धान्तो जैसे- प्रतिशतांक पद, विचलन प्राप्तांक, प्रामाणिक प्राप्तांको का प्रयोग किया जाता है। जिस प्रकार किसी वस्तु का मापन करने के लिए विभिन्न यन्त्रों— पैमाना तथा दूरी नापने के लिए इंची टेप और ताप मापने के लिए धर्मामीटर का प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार किसी छात्र की योग्यता का मापन करने के लिए मापनियों का प्रयोग किया जाता है। अतः स्पष्ट है कि आंकलन, मापन एवं मूल्यांकन तीनों आपस मे घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है।
मापन एवं मूल्यांकन में सहसम्बन्ध
शिक्षा एवं मनोविज्ञान दोनों ही क्षेत्रों में मापन एवं मूल्यांकन का निरन्तर एवं व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। मूल्यांकन मापन के ऊपर निर्भर करता है क्योंकि मापन मूल्यांकन का एक उपकरण है। मापन जितना अधिक शुद्ध एवं सार्थक होगा, मूल्यांकन भी उतना ही अच्छा होगा। मापन में समय एवं धन दोनों का ही अपव्यय होता है जबकि मूल्यांकन में प्रक्रिया अधिक समय तक चलती है। अतः दोनों का अधिक होना स्वाभाविक है।
उदाहरणार्थ, एक बालक में गणितीय योग्यता है यह जानने के लिए किसी भी परीक्षण या उपलब्धि प्राप्तांक के आधार पर उसकी गणितीय योग्यता का मापन किया जा सकता है परन्तु इस योग्यता का मूल्यांकन करने के लिए उसकी रुवियों, अभिक्षमता, कौशल आदि के विषय में जानना होगा। मापन में व्यक्ति की योग्यताओं एवं व्यवहार का अंशों में अध्ययन किया जाता है।
उदाहरणार्थ, जब हम एक मेज खरीदते हैं तो उसकी लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई नापकर उसका मापन करते हैं किन्तु उसी मेज का मूल्यांकन करते समय हम उसका पूर्णरूपेण अवलोकन करते हैं। क्या यह हमारे लक्ष्य की पूर्ति करेगी क्या यह ठीक रहेगी, उसको लम्बाई ची ऊंचाई का अनुपात ठीक है आदि। गायन के द्वारा यह मालूम होता है कि अमुक वस्तु का शौल-गुण कितना है जबकि मूल्यांकन यह व्यक्त करता है कि कोई वस्तु या शील-गुण कितना अच्छा सन्तोषजनक है तथा उसे क्या मूल्य दिया जाना चाहिए। इस प्रकार मापन एवं मूल्याकन एक साथ चलने वाली प्रक्रिया है। दोनों सहसम्बन्धित हैं।