उपचारात्मक शिक्षण का अर्थ, उद्देश्य, सिद्धांत, सोपान एवं महत्व | Remedial Teaching: Meaning, Objectives, Principles, Steps and Importance

उपचारात्मक शिक्षण का अर्थ (Meaning of Remedial Teaching)

शिक्षा में कमज़ोर शिक्षार्थियों के शिक्षण अधिगम दोष प्रभावों को दूर करने की प्रक्रिया उपचारात्मक शिक्षण कहलाती है। शिक्षण या अधिगम की कठिनाइयों या त्रुटियों के कारण बच्चे कक्षा में पिछड़ जाते हैं, उपचारात्मक शिक्षण द्वारा उपयुक्त शिक्षण विधि का चयन करके उनकी कठिनाईयों को दूर करने का प्रयास किया जाता है।

उपचारात्मक शिक्षण का अर्थ, उद्देश्य, सिद्धांत, सोपान एवं महत्व

उपचारात्मक शिक्षण एक ऐसा कार्य है जो विद्यार्थियों की सामान्य या विशिष्ट अधिगम कमजोरियों को खत्म करने के लिए किया जाता है। किसी विशेष विद्यार्थी की किसी विशेष विषय या प्रकरण में अनुभव होने वाले कठिनाई एवं कमजोरी के निदान से उनके निवारण के लिए किसी उपचारात्मक शिक्षण योजना का काम शुरू होता है। किसी समस्या विशेष के अनुसार ही उसका उपचार प्रारंभ किया जाता है।

उपचारात्मक शिक्षण का महत्त्व (Importance of Remedial Teaching)

उपचारात्मक शिक्षण का उद्देश्य हैं छात्रों की त्रुटियों का निवारण। त्रुटियाँ किन कारणों से हो रही हैं सर्वप्रथम विवेक द्वारा पता लगाना चाहिए। अगर छात्र गुणा एवं भाग में 'हासिल' की भूल करता है तो कारण क्या है? इसे स्पष्ट करने के बाद ही निवारण संभव है। ऐसे समय छात्रो के साथ प्रेम एवं सहानुभूति का भाव रखना चाहिए। उन्हें प्रेरित एवं प्रोत्साहित करते रहना चाहिए। प्रोत्साहन से छात्रों में प्रेरणा आती है और बल मिलता है, जिससे वे अपेक्षित सुधार करते हैं। उपचारात्मक शिक्षण से छात्रो की कठिनाईयों को दूर किया जाता है एवं उनके द्वारा प्रगति प्रारंभ हो जाती है।

उपचारात्मक शिक्षण छात्रों को हीन भावना से बचाता है। वह उन्हें कुसामंजस्यता की होन भावना से मुक्त कर देता है। जब तक हीन भावना बनी रहेगी, छात्र प्रगति नहीं कर सकते। इसलिए उपचारात्मक शिक्षण में इस भावना को समाप्त किया जा सकता है। कभी-कभी देखा जाता हैं कि बुरी संगति के कारण भी छात्र अध्ययन में मन नहीं लगाते और पिछड़ने लगते हैं। ऐसी स्थिति में अध्यापक को बुरी संगति से मुक्ति दिलाने के लिए उपचारात्मक शिक्षण का सहारा लेना चाहिए और छात्रों को आदर्श पुरुषों के उदाहरण से एवं अच्छे छात्रों के सहयोग से लाभान्वित करना चाहिए इससे बालकों का अपेक्षित विकास होता है।

उपचारात्मक शिक्षण के उद्देश्य (Objectives of Remedial Teaching)

'उपचार' का अर्थ है 'ईलाज'। जिस प्रकार डॉक्टर रोगी का ईलाज करता है, उसी तरह गणित शिक्षक विद्यार्थियों द्वारा गणित में प्रयोग होने वाले भिन्न-भिन्न पदों (Terms), प्रत्यय (Concepts), चिह्न (Symbols) एवं तथ्य (Facts) संबंधी अशुद्धियों का उपचार करके उन्हें सही ढंग से प्रयोग करने के योग्य बनाता है। गणित शिक्षण में उपचारात्मक शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

  1. छात्रों की दूषित मनोवृत्तियों एवं आदतों को समाप्त करना।
  2. छात्रों में गणित शिक्षण के प्रति रुचि पैदा करना।
  3. छात्रों में प्रगतिशील आदतों का विकास करना।
  4. छात्रों के चरित्र एवं मनोबल को विकसित करना।
  5. छात्रों के समक्ष सीखते समय आने वाली कठिनाईयों को दूर करना।
  6. छात्रों में आत्म-विश्वास पैदा करना।
  7. छात्रों की मानसिक उलझनों को सुलझाना।
  8. छात्रों में सच्चे ज्ञान की पूर्ति करना।

उपचारात्मक शिक्षण के सिद्धांत (Principles of Remedial Teaching)

उपचारात्मक शिक्षण को सफल बनाने के लिए अध्यापक को निम्न सिद्धांतों पर ध्यान देना चाहिए-

  1. अध्यापक एवं छात्र के निकट संबंध (Repport ) स्थापित किया जाए।
  2. उपचार की सम्पूर्ण व्यवस्था की योजना स्पष्ट रूप से बना लेनी चाहिए एवं उसके कार्यान्वयन (Execution) में सावधानी से काम लिया जाए।
  3. अध्यापक अपने अनुभवों के आधार पर विस्तृत दृष्टिकोण अपनाए ।
  4. उपचारात्मक शिक्षण का प्रत्येक पहलू बालकों की आयु, रुचि, योग्यता एवं अनुभवों के अनुकूल हो।
  5. उपचारात्मक शिक्षण के दौरान बालको की रुचि को बनाए रखने के लिए उन्हें पर्याप्त प्रोत्साहन
  6. उपचार विधि की यह विशेषता होनी चाहिए कि विद्यार्थी को उसकी सफलता के संबंध में शीघ्र परिणाम मिल सके।
  7. प्रक्रिया के दौरान विद्यार्थी को अधिक से अधिक सक्रिय रखा जाए।
  8. कार्यानुभव उपचारात्मक शिक्षण के अनिवार्य अंग होने चाहिए।
  9. अध्यापको को निदानात्मक परीक्षणों में दक्ष होना चाहिए।

उपचारात्मक शिक्षण के सोपान (Steps of Remedial Teaching)

सफल अध्यापकों के अनुभवों के आधार पर तथा अधिगम के सुदृढ़ मनोविज्ञान से संबंधित कार्यक्रम में निम्नलिखित सोपानों का प्रयोग किया जा सकता है-

  1. शिक्षण
  2. समीक्षा
  3. कमजोरियों के लिए परीक्षण जब भी वे प्रदर्शित हो
  4. परीक्षण के द्वारा दर्शाई गई विशिष्ट कमजोरियों पर उपचारात्मक अभ्यास कार्य का अनुगमन

उपचारात्मक शिक्षण में इस बात को ध्यान में रखना आवश्यक है कि उपचारात्मक उद्देश्यो के लिए प्रभावी ढंग से निर्मित की गई विषय सामग्री भी उतनी ही सुद्द होनी चाहिए जैसी विषय सामग्री का प्रयोग प्रारंभिक अनुदेशन में किया गया था। वास्तव में प्रारंभिक शिक्षण उद्देश्य के लिए तथा उपचारात्मक शिक्षण उद्देश्य के लिए अच्छी सामग्री के बीच प्रमुख विभिन्नता ही इस बात का साक्ष्य है कि उन्हें कब प्रयोग किया जाए। उचित ढंग से निर्मित की गई उपचारात्मक शिक्षक: सामग्री कौशलों पर, जिनके अभ्यास की कोई आवश्यकता नहीं होती, समय व्यर्थ न करके प्रत्यक्ष रूप से समस्या पर बल देती है और उसका समाधान ढूंढने का प्रयास करती है।

उपचारात्मक शिक्षण व आधुनिक रूप (Remedial Teaching and Modern Form)

निदान का अपना कोई महत्त्व नहीं यदि उसके अनुसार बच्चों का उपचार नहीं किया जाता है। निदान की क्रिया में केवल बच्चों की कठिनाइयों का पता लगाया जाता है और उपचारात्मक शिक्षण में इन कठिनाइयों को दूर करते हुए शिक्षण दिया जाता है। प्राचीन काल में निदान का रूप बड़ा सीमित एवं अपूर्ण था। इसलिए उपचारात्मक शिक्षण भी अपने में सीमित एवं अपूर्ण था।

आज निदान का रूप भी विस्तृत हो गया है और उपचारात्मक शिक्षण का भी आज यह उपचारात्मक शिक्षण अनेक प्रकार से किया जाता है। शैक्षिक निदान के बाद कमजोरियों और अशुद्धियों का सामूहिक रूप से निवारण करते हुए, व्यक्तिगत भेदो के आधार पर व्यक्तिगत रूप से निवारण करते हुए उपचार गृहों में ले जाकर सामूहिक अथवा व्यक्तिगत रूप से और अतिरिक्त समय में व्यक्तिगत रूप से उपचार किया जा सकता है।

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