▶मानव अभिवृद्धि का अर्थ (Meaning of Human Growth)
मानव अभिवृद्धि से तात्पर्य मानव शरीर के अंगों के आकार, भार और कार्य शक्तियों में होने वाली वृद्धि से होता है. उसके शारीरिक अंगों में बाह्य और आंतरिक दोनों अंग आते हैं. बाह्य अंगों में हाथ, पैर, सिर और पेट आदि अंग आते हैं और आंतरिक अंगों में विभिन्न तंत्र (कंकाल, पाचन, रक्त, स्वसन आदि) और मस्तिष्क आते हैं. मनुष्य की यह अभिवृद्धि एक निश्चित आयु (18-20 वर्ष) तक होती है और इस आयु तक लगभग पूर्ण हो जाती है जिसे हम परिपक्वता (Maturity) कहते हैं. मानव शरीर में होने वाली इस अभिवृद्धि को यंत्रों से नापा-तोल जा सकता है.
▶मानव अभिवृद्धि की परिभाषा (Definition of Human Growth)
फ्रैंक के अनुसार- "अभिवृद्धि से तात्पर्य कोशिकाओं में होने वाली वृद्धि से होता है, जैसे- लंबाई और भार में वृद्धि.
सामान्य दृष्टि से मानव वृद्धि को निम्नलिखित रूप में परिभाषित करना चाहिए- "मानव अभिवृद्धि से तात्पर्य उसके शरीर के बाह्य एवं आंतरिक अंगों के आकार, भार एवं कार्य क्षमता में होने वाली वृद्धि से होता है, जो उसके गर्भ समय से परिपक्वता प्राप्त करने तक चलती है."
▶अभिवृद्धि की प्रकृति एवं विशेषताएं (Nature and Characteristics of Growth)
- मानव अभिवृद्धि एक प्राकृतिक प्रक्रिया है.
- मानव अभिवृद्धि की प्रक्रिया गर्भावस्था से एक निश्चित काल (18-20 वर्ष) तक चलती है.
- अभिवृद्धि में मनुष्य के शरीर के आकार, भार व कार्य-क्षमता में वृद्धि होती है.
- भिन्न-भिन्न आयु स्तर पर अभिवृद्धि की गति भिन्न-भिन्न होती है.
- मानव अभिवृद्धि मनुष्य के वंशानुक्रम एवं पर्यावरण पर निर्भर करती है.
- मानव अभिवृद्धि की एक सीमा होती है, जो (18-20 वर्ष) की आयु तक लगभग पूर्ण हो जाती है.
- मानव अभिवृद्धि मात्रात्मक होती है इसलिए इसका मापन गणितीय विधियों से किया जा सकता है.
▶मानव विकास का अर्थ (Meaning of Development)
सामान्यतः मानव अभिवृद्धि एवं मानव विकास को एक ही अर्थ में लिया जाता है परंतु इन दोनों में थोड़ा अंतर होता है. मानव अभिवृद्धि से तात्पर्य उसके शरीर के बाह्य एवं आंतरिक अंगों में होने वाली वृद्धि होता है; उनके आकार, भार और कार्य-क्षमता में होने वाली वृद्धि से होता है और मानव विकास से तात्पर्य उसकी वृद्धि के साथ-साथ उसके शारीरिक एवं मानसिक व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों से होता है. मनुष्य की अभिवृद्धि परिपक्वता प्राप्त करने के बाद रुक जाती है परंतु उसके शरीर एवं मानसिक व्यवहार में निरंतर परिवर्तन होता रहता है. अतः मानव विकास एक निरंतर और जन्म भर चलने वाली प्रक्रिया है.
▶मानव विकास की परिभाषा (Definition of Human Development)
फ्रैंक के अनुसार, "अभिवृद्धि से तात्पर्य कोशिकाओं में होने वाली वृद्धि से होता है, जैसे- लंबाई और भार में वृद्धि जबकि विकास से तात्पर्य प्राणी में होने वाले संपूर्ण परिवर्तनों से होता है."
हरलॉक के अनुसार, "विकास अभिवृद्धि तक सीमित नहीं है, अपितु उसमें परिवर्तनों का वह प्रगतिशील क्रम निहित है जो परिपक्वता के लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है. विकास के परिणामस्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएं और नवीन योग्यता प्रकट होती हैं."
सामान्य रूप में विकास की प्रक्रिया को निम्नलिखित रूप से परिभाषित करना चाहिए- "मानव विकास एक निरंतर चलने वाली प्रगतिशील प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति में मात्रात्मक वृद्धि एवं गुणात्मक उन्नयन होता है, नई-नई योग्यताएं और विशेषताएं प्रकट होती हैं और उसके व्यवहार में उर्ध्वगामी परिवर्तन होता है."
▶मानव विकास की प्रकृति एवं विशेषताएं (Nature and Characteristics of Human Development)
- मानव विकास एक प्राकृतिक एवं सामाजिक प्रक्रिया है.
- मानव विकास की प्रक्रिया जीवन भर चलती है.
- मानव विकास में मात्रात्मक वृद्धि एवं गुणात्मक उन्नयन दोनों होते हैं.
- मानव विकास एक विशेष क्रम में होता है और विभिन्न आयु स्तर पर विकास की गति भिन्न-भिन्न होती है.
- मानव विकास वंशानुक्रम एवं पर्यावरण पर निर्भर करता है.
- मानव विकास की कोई सीमा नहीं होती.
- मात्रात्मक अभिवृद्धि का मापन गणितीय विधियों से किया जा सकता है परंतु गुणात्मक विकास को गणितीय विधियों से नहीं नापा जा सकता.
▶मानव वृद्धि एवं विकास में अंतर (Difference Between Human Growth and Development)
S.No. | मानव अभिवृद्धि | S.No. | मानव विकास |
1. |
अभिवृद्धि से तात्पर्य मनुष्य के आकार और भार में होने वाली वृद्धि से होता है. | 1. |
विकास से तात्पर्य मनुष्य के आकार एवं भार में वृद्धि के साथ-साथ उसके ज्ञान, कला-कौशल मे होने वाले उर्ध्वगामी परिवर्तन से है. |
2. |
अभिवृद्धि केवल शारीरिक अंगों और उनकी कार्यक्षमता में होने वाली वृद्धि तक सीमित होती है. | 2. |
विकास का क्षेत्र अति व्यापक होता है उसमें शारीरिक वृद्धि के साथ मानसिक क्रियाओं में परिवर्तन, भाषा-ज्ञान में वृद्धि और सामाजिक एवं चारित्रिक विकास सम्मिलित होते हैं. |
3. |
अभिवृद्धि एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. | 3. |
विकास प्राकृतिक एवं सामाजिक प्रक्रिया है. |
4. |
अभिवृद्धि गर्भावस्था से एक निश्चितकाल (18-20 वर्ष) तक चलती है. | 4. |
विकास की प्रक्रिया मानव के जन्म भर चलती है. |
5. |
अभिवृद्धि की एक सीमा होती है, जिसे परिपक्वता कहते हैं. | 5. |
मानव विकास की कोई सीमा नहीं होती यह जीवन पर्यंत होता रहता है. |
6. |
मानव अभिवृद्धि केवल मात्रात्मक होती है, इसका मापन यंत्रों द्वारा किया जा सकता है. | 6. |
मानव विकास मात्रात्मक के साथ-साथ गुणात्मक भी होता है, यह सामान्य तौर पर मापा नहीं जा सकता. |
▶मानव विकास के सिद्धांत (Principles of Human Development)
मनोवैज्ञानिकों ने मानव विकास की प्रक्रिया को बड़ी बारीकी से अध्ययन किया है और उसके विकास क्रम के सामान्यीकरण से जो तथ्य उजागर हुए हैं उन्हें सिद्धांतों के रूप में प्रस्तुत किया है. मानव विकास के मुख्य सिद्धांत निम्नलिखित हैं-
(1). निरंतर विकास का सिद्धांत- मनोवैज्ञानिको ने यह तथ्य उजागर किया कि मानव विकास एक सतत प्रक्रिया है जो जन्म से मरण तक निरंतर चलती रहती है और उसमें कोई भी विकास आकस्मिक ढंग से नहीं होता है, बल्कि धीरे-धीरे होता है. स्किनर के अनुसार, "विकास प्रक्रियाओं के निरंतरता का सिद्धांत केवल इस तथ्य पर बल देता है कि व्यक्ति में कोई आकस्मिक परिवर्तन नहीं होता."
(2). सामान्य प्रतिमान का सिद्धांत- हरलोक ने इस सिद्धांत की व्याख्या इस प्रकार की है कि प्रत्येक जाती चाहे वह पशु जाती हो या मानव जाति अपनी जाति के अनुरूप विकास के प्रतिमान का अनुसरण करती है.
(3). विकास क्रम का सिद्धांत- शिरले (Shirley) और गैसेल (Gesell) आदि मनोवैज्ञानिकों ने प्रयोग द्वारा स्पष्ट किया कि मानव का विकास एक निश्चित क्रम में होता है. जैसे जन्म के समय मानव केवल रोने की ध्वनि निकालता है, उसके बाद अपने संपर्क में आने वालों की ध्वनि सुनता है और सुने जाने वाली ध्वनियों का अनुकरण कर वह बोलने का प्रयत्न करता है. जब भाषा को बोलना सीख जाता है तो उसे क्रमशः भाषा का पढ़ना और लिखना सिखाया जाता है.
(4). एकीकरण का सिद्धांत- मनोवैज्ञानिकों ने यह भी स्पष्ट किया कि मनुष्य का विकास पूर्ण से अंश और फिर अंश से पूर्ण की ओर होता है. इस तथ्य को उन्होंने एकीकरण के सिद्धांत के रूप में प्रतिपादित किया है.
(5). वंशानुक्रम व पर्यावरण की अंतः क्रिया का सिद्धांत- मानव विकास के 2 मूल कारक तत्व हैं- एक वंशानुक्रम (अनुवांशिकता, Heredity) और दूसरा पर्यावरण (वातावरण, Environment). वंशनुक्रम से तात्पर्य उन गुणों से है जो बच्चा अपने वंश एवं माता-पिता के पित्रैकों (Genes) से प्राप्त करता है और उसके पर्यावरण से तात्पर्य उसके उस प्राकृतिक एवं सामाजिक परिवेश से है जिसमें वह रहता है और अपना विकास करता है.
▶अभिवृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Growth and Development)
बालक के अभिवृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
1. वंशानुक्रम (Heredity):- वंशानुगत कारक वे जन्मजात विशेषताएं हैं, जो बालक में जन्म के समय से ही पाई जाती हैं. प्राणी के विकास में वंशानुगत शक्तियां प्रधान तत्व होने के कारण प्राणी के मौलिक स्वभाव और उनके जीवन चक्र की गति को नियंत्रित करती हैं. प्राणी का रंग, रूप, लंबाई अन्य शारीरिक विशेषताएं, बुद्धि, तर्क, स्मृति तथा अन्य मानसिक योग्यताओं का निर्धारण वंशानुक्रम द्वारा ही होता है. प्रतिगमन के नियम के अनुसार, प्रतिभाशाली माता-पिता की संताने दुर्बल-बुद्धि की भी हो सकती हैं.
2. वातावरण (Environment):- वातावरण में वे सभी वाह्य शक्तियां, प्रभाव, परिस्थितियां आदि सम्मिलित हैं, जो प्राणी के व्यवहार, शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित करती हैं. अन्य क्षेत्रों के वातावरण की अपेक्षा बालक के घर का वातावरण उसके विकास को सर्वाधिक महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करता है.
3. आहार (Nutrition):- मां का आहार गर्भकालीन अवस्था से लेकर जन्म के उपरांत तक शिशु के विकास को प्रभावित करता है. आहार की मात्रा की अपेक्षा आहार में विद्यमान तत्व बालक के विकास को अधिक महत्वपूर्ण अंग से प्रभावित करता है.
4. रोग (Disease):- शारीरिक बीमारियां भी बालक के शारीरिक और मानसिक विकास को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करती हैं. बाल्यावस्था में यदि कोई बालक अधिक दिनों तक बीमार रहता है, तो उसका शारीरिक और मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है.
5. लिंग (Sex):- लिंग-भेदों का भी शारीरिक और मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ता है. जन्म के समय लड़कियां लड़कों की अपेक्षा कम लंबी उत्पन्न होती हैं परंतु वयः संधि अवस्था के प्रारंभ होते ही लड़कियों में परिपक्वता के लक्षण लड़कों की अपेक्षा शीघ्र विकसित होने लगता हैं. लड़कों की अपेक्षा लड़कियों का मानसिक विकास भी कुछ पहले पूर्ण हो जाता है.
6. अंतः स्रावी ग्रंथियां (Endocrine Glands):- बालक के अंदर पाई जाने वाली अंतः स्रावी ग्रंथियों से जो स्राव निकलते हैं, वह बालक के शारीरिक और मानसिक विकास तथा व्यवहार को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हैं. जैसे पुरुषत्व के लक्षणों और स्त्रीत्व के लक्षणों का विकास जनन ग्रंथियों पर निर्भर करता है.
7. बुद्धि (Intelligence):- बालक का बुद्धि भी एक महत्वपूर्ण कारक है जो बालक के शारीरिक और मानसिक विकास को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है. तीव्र बुद्धि वाले बालकों का विकास मंदबुद्धि वाले बालकों की अपेक्षा तीव्र गति से होता है और मंदबुद्धि वाले बालकों में बुद्धि का विकास तीव्र बुद्धि वाले बालकों की अपेक्षा मंद गति से होता है. विभिन्न विकास प्रतिमान अपेक्षाकृत अधिक आयु-स्तरों पर पूर्ण होते हैं.