जेंडर, सेक्स एवं लैंगिकता का अर्थ | Gender, Sex and Sexuality in hindi

सामान्यः जेंडर (लिंग) एवं सेक्स को एक ही माना जाता है एवं एक के स्थान पर दूसरे का प्रयोग करना आम बात है परंतु इनमें बहुत अंतर व्याप्त है. खासकर

जेंडर और सेक्स (Gender and Sex)

सामान्यः जेंडर (लिंग) एवं सेक्स को एक ही माना जाता है एवं एक के स्थान पर दूसरे का प्रयोग करना आम बात है परंतु इनमें बहुत अंतर व्याप्त है. खासकर सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में इनका अंतर और भी व्यापक हो जाता है. सेक्स जैवकीय अवधारणा है वरन लिंग एक सामाजिक अवधारणा है.

Gender and Sex in hindi

सेक्स एक जैविक शब्दावली है जो स्त्री और पुरुष में जैविक भेद को प्रदर्शित करती है वही जेंडर शब्द स्त्री और पुरुष के बीच सामाजिक भेदभाव को प्रदर्शित करता है. जेंडर शब्द इस बात की ओर इशारा करता है कि जैविक भेद के अतिरिक्त जितने भी भेद दिखते हैं वे प्राकृतिक ना होकर समाज द्वारा निर्धारित किए गए हैं और इसी में यह बात भी सम्मिलित है कि अगर यह भेद बनाया हुआ है तो दूर भी किया जा सकता है.

जेंडर एक समय में एक विशेष आयाम पर महिला अथवा पुरुष से संबंधित आर्थिक सामाजिक व सांस्कृतिक विशिष्टताओं और अवसरों को प्रदर्शित करता है। कई देशों में यह माना जाता है कि लिंग द्वारा ही संस्कृति का निर्धारण होता है क्योंकि नियम और कानूनों का नियोजन महिला और पुरुष को संदर्भित करके किया जाता है। महिलाओं के लिए घरेलू काम और पुरुषों के लिए बाहरी काम जेंडर की सामाजिक अस्मिता से जुड़ा हुआ है परंतु सेक्स मनुष्य के शरीर मात्र से संबंधित होता है। जेंडर एक मानसिक संरचना है जबकि सेक्स एक जैविक अथवा शारीरिक संरचना है।

जेंडर का जुड़ाव सामाजिक पक्ष से है परंतु सेक्स शरीर के रूप और आकार का प्रतिनिधित्व करता है। जेंडर मनोवैज्ञानिक है और इसकी अभिव्यक्ति सामाजिक है, परंतु सेक्स संरचनात्मक प्रारूप को धारण किए हुए है। मासपेट मीड के अनुसार, "अनेक संस्कृतियों में नारीत्व और पुरुषत्व को विभिन्न ढंग से समझा जाता रहा है। जैसे जन्म से ही महिलाओं और पुरुषों के मध्य कुछ विशेष तरीके से विभेद करने का प्रयास आरंभ कर दिया जाता है और इस अंतर को जीवन भर बनाए रखा जाता है।"

जेंडर (Gender)

जेंडर (लिंग) शब्द अंग्रेजी के शब्द जेंडर (Gender) का हिंदी रूपांतरण है सामान्यतः लिंग शब्द का प्रयोग पुरुष एवं स्त्रियों के गुणों के कूलक तथा उनके समाज द्वारा उनसे अपेक्षित व्यवहारों के लिए किया जाता है. फेमिनिस्ट के अनुसार, सामाजिक लिंग को स्त्री-पुरुष भेद के सामाजिक संगठन अथवा स्त्री-पुरुष के मध्य असमान संबंधों की व्यवस्था के रूप में परिभाषित किया जा सकता है.

सेक्स (Sex)

सेक्स एक जैविकीय अवधारणा है. अन्न ओकले ने अपनी पुस्तक सेक्स, जेंडर एंड सोसाइटी 1972 में सेक्स को परिभाषित करते हुए कहा है कि, "सेक्स का तात्पर्य पुरुषों अथवा स्त्रियों के जैविक विभाजन से है." यहां तक कि संसार में सभी जीवों को उनके जैविकीय आधार पर दो वर्गों नर तथा मादा में बांटा गया है.

इस तरह हम देखते हैं और पाते हैं कि सेक्स शब्द का प्रयोग महिलाओं एवं पुरषों मैं जैविक भिन्नता दर्शाने के लिए प्रयुक्त होता है जबिक जेंडर शब्द का प्रयोग पुरुषों एवं महिलाओं के सामाजिक एवं सांस्कृतिक भेद को दर्शाने के लिए प्रयुक्त होता है। जेंडर विभाजन का आधार सेक्स ही है। सेक्स के आधार पर कुछ कार्यों में विभाजन अनिवार्य है जैसे कि स्त्री अपनी यौन संरचना के कारण बच्चे को जन्म देती है एवं उसे दूध पिला कर उसका पालन-पोषण करती है. पुरुषों की जैविक संरचना भिन्न होने के कारण किसी भी स्थिति में पुरुष यह कार्य नहीं कर सकता है. यह एक जैविक भेद है. इसमें समाज चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता परंतु सेक्स के आधार पर समाज द्वारा जो कार्यों का विभाजन किया गया है वह लैंगिक भेद के अंतर्गत आता है. जैसे स्त्रियों को सेना में कार्य नहीं करना चाहिए, रात्रि में अकेले नहीं घूमना चाहिए, स्त्रियाँ कमजोर होती हैं, स्त्रियाँ भावुक होती हैं, स्त्रियों को सत्ता ग्रहण करने का अधिकार नहीं है, आदि लैंगिक भेद को प्रदर्शित करने वाले तत्व हैं.

नारी के संदर्भ में हमेशा से माना गया है कि वह एक "ऑब्जेक्ट" है फिर वह चाहे पाश्चात्य में कीर्केगार्द हो "जिन्होंने नारी को जटिल रहस्यमई सृष्टि माना" या फिर नीत्से "जिसने माना कि नारी पुरुष का सबसे पसंदीदा या कहें की खतरनाक खेल है", वह दूसरी जगह रूसों ने "स्त्री की निर्मिती पुरुष को खुश करना स्वीकारा".

भारतीय संदर्भ में भी स्त्री को "सेक्स ऑब्जेक्ट" के रूप में देखा व स्वीकारा गया जहां उसकी उपयोगिता पुरुष को खुश करने तक ही सीमित थी. महादेवी वर्मा लिखती हैं "स्त्री न केवल घर का अलंकार मात्र बनकर जीवित रहना चाहती है वरन देवता की मूर्ति बनकर प्राण प्रतिष्ठा चाहती है."

समाज में स्त्रियों के साथ होने वाले भेदभाव के पीछे पूरी समाजीकरण की प्रक्रिया है जिसके तहत बचपन से ही बालक-बालिका का अलग-अलग ढंग से पालन पोषण किया जाता है और यह सामान्यता सभी जगह देखा जा सकता है.

सेक्स और जेण्डर में अन्तर (Difference between Sex and Gender)

S.No. सेक्स (प्रालिंग) जेण्डर (सालिंग)
1. सेक्स जैविकीय या शारीरिक है। इसे औरत और मर्द के जननांगों से स्पष्ट हो जाता है। स्त्रियाँ गर्भधारण करती हैं और बच्चों को दूध पिलाती हैं। जेण्डर सामाजिक, सांस्कृतिक है। इसका सम्बन्ध पुरुषोचित स्त्रियोचित गुणो, व्यवहार के तरीकों, भूमिकाओं आदि से है।
2. सेक्स प्रकृति की देन है। जेण्डर सामाजिक और सांस्कृतिक है, जिसे समाज बनाता है।
3. सेक्स स्थायी है। जेण्डर परिवर्तनशील है।
4. हर जगह व समय शारीरिक रूप से स्त्री व पुरुष के वहीं अंग होते हैं। यह समय के साथ, संस्कृति के साथ, परिवार और जाति के साथ बदल सकता है।
5. सेक्स को बदला नहीं जा सकता है। जेण्डर को बदला जा सकता है।

लैंगिकता (Sexuality)

लैंगिकता जैविक, शारीरिक, भावात्मक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक पहलुओं के रूप में प्रकट होती है. अत्यधिक सीमा तक लैंगिकता हमारी इंद्रियों पर निर्भर करती है तथा इसका असर सांस्कृतिक, नैतिक, धार्मिक इत्यादि समस्त पहलुओं पर प्रत्यक्ष होता है.

लैंगिकता मानव जाति में पुरुष व स्त्री के मध्य व्यापक अंतरों को स्पष्ट करती है. हालांकि लैंगिकता पुरुष व स्त्री के मध्य शारीरिक अंतर से कहीं व्यापक है. स्त्री-पुरुष संबंधों के दो प्राथमिक आयाम हैं.

  1. प्रथम है दूसरे की लैंगिकता के पहचान को समझना अर्थात स्त्री व पुरुष होना.
  2. दूसरा आयाम है लैंगिक पहचान से आगे ले जाकर विपरीत लिंगियों को सम्मिलित करना.

समाज द्वारा निर्धारित जीवन जीने के लिए पुरुष जैसी या महिला जैसी पहचान आवश्यक है. पुरुष व स्त्री केवल प्रजनन हेतु ही नहीं बल्कि संबंधों के मूल्यों को ध्यान रखकर निर्मित किए गए हैं. दोनों एक दूसरे का विकास करने हेतु एक दूसरे पर अंतरावलंबित होते हैं.

लैंगिकता शब्द सेक्स अर्थात काम का ही विस्तार है और यह सभी मनुष्यों में ही नहीं वरन जीव-जंतुओं में भी पाया जाता है. लैंगिकता की भावना और परस्पर लिंग के प्रति सहज आकर्षक को सर्वमान्यता है, भले ही वर्तमान में समलैंगिक संबंधों की ओर, सभ्य कहा जाने वाला समाज अग्रसर हो रहा है. लैंगिकता की भावना कि सहज प्रवृत्ति भारतीय शास्त्रों में वर्णित है चाहे वह वेदों में आया यम-यमी संवाद हो या फिर अग्नि और घृत के समान स्त्री-पुरुष को मानना. इसलिए युवावस्था में बालक और बालिकाओं के बीच समुचित दूरी रखी जाती है.

हालाँकि लैंगिकता व्यक्तिगत है परंतु यह केवल व्यक्तिगत नहीं हो सकती है. यह एक सामाजिक प्रक्रिया या घटना है. इसे अलग अलग करके नहीं समझा जा सकता है. वास्तव में लैंगिक भावनाओं, इच्छाओं, वरीयताओं अभिवृतियों तथा व्यवहारों को केवल किसी समूह के संदर्भ में ही नहीं समझा जा सकता है. यदि कोई व्यक्ति अलग-थलग या पृथक है तब लैंगिक अंतरों, रुझानों तथा वरीयताओं का कोई प्रश्न ही नहीं होगा.

लैंगिक नियंत्रण के स्रोत (Source of Control of Sexuality)

कई प्रकार की सामाजिक संस्थाएं लैंगिक व्यवहारों को नियंत्रित करती हैं. संस्थाएं एक विशिष्ट नजरियों तथा मानकों को उपलब्ध कराती हैं जो कि लैंगिक शक्तियों के लिए स्वनियंत्रण का आधार बनती है. संस्थागत भूमिकायें एक प्रकार से अनौपचारिक नियंत्रण का आधार बन जाती हैं. दंड का भय, व्यक्तियों में संस्थाओं के प्रति निष्ठा तथा आज्ञाकारिता उत्पन्न करता है तथा इस प्रकार संस्थाएं नियंत्रण भी रखती हैं. सामान्यतः लैंगिक व्यवहारों को नियंत्रित करने के दो मुख्य साधन धर्म तथा परिवार हैं-

धर्म (Religion)

सभी धर्म, लिंग की प्रजननकारी भूमिका को महत्व प्रदान करते हैं. सभी धर्म लिंग के प्रजननकारी कार्यों, वैराग्यपूर्ण तथा परिवार को प्रोत्साहन देने वाले कार्यों के नजरियों का समर्थन करते हैं. लोग धार्मिक सत्संगों, सभाओं तथा उद्देश्यों के लैंगिक व्यवहारों से जुड़े मानकों व मान्यताओं को सीखते हैं तथा समान्यतः उनका ही पालन करते हैं. धर्म समलैंगिकता (Homosexuality), सोडोमी (Sodomy), तथा बच्चों में लैंगिक संबंधों के कुमार्गी लैंगिक व्यवहार आदि का निषेध करते हैं. ऐसा किसी भी प्रकार का लैंगिक व्यवहार जो कि परिवार को हानि पहुंचाता हो उसका पूरी तरह से निषेध किया जाता है; जैसे विवाहेत्तर यौन संबंध या रक्त संबंधों के मध्य लैंगिक संबंध. विषमलैंगिकता को समान्यतः स्वीकार किया जाता है जबकि समलैंगिकता तथा लेस्बियनिज्म को शैतानों का कार्य कहकर खुले रूप से निषेध किया जाता है.

परिवार (Family)

लैंगिकता को नियंत्रित करने में परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका है. वास्तव में, अधिकतर समाजों में विवाह के भीतर ही लैंगिक क्रियाओं को मान्यता दी जाती है. ऐसा कहा जा सकता है कि विवाह की एक मुख्य भूमिका योनिक व्यवहारों को निर्धारित तथा नियंत्रित करने की है. यह एक समाज के मूल्य तंत्र तथा धार्मिक विश्वासों पर आधारित होता है.

इस प्रकार एक व्यक्ति के यौनिक तथा लैंगिक व्यवहार पर परिवार का पूरा प्रभाव होता है जब पारिवारिक बंधन मजबूत होते हैं तथा एक व्यक्ति जब परिवार के दूसरे सदस्यों के प्रति अधिक जिम्मेदारी दिखाता है तब लैंगिक व्यवहार ज्यादा नियंत्रित होते हैं. ऐसी स्थिति में लैंगिक मानको मैं ज्यादा रूढ़िवादिता तथा लैंगिक व्यवहारों पर ज्यादा नियंत्रण स्थापित होता है. पश्चात्य समाजों में जीवन साथियों के चयन पर नियंत्रण कम हुआ है तथा व्यक्तियों को अपना जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता प्राप्त है.

Read also

Post a Comment

© Samar Education All rights reserved. Distributed by SamarEducation