लैंगिक रूढ़िबद्धता का अर्थ, परिभाषाएं, विशेषताएं एवं प्रकार | Gender Stereotyping in hindi

रूढ़िबद्धता से अभिप्राय समाज में व्याप्त विभिन्न असामाजिक क्रियाएं एवं कुरीतियों से है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में अपने मूल रूप में स्थानांतरित होती

रूढ़िबद्धता का अर्थ एवं परिभाषाएं (Meaning and Definitions of Stereotyping)

रूढ़िबद्धता से अभिप्राय समाज में व्याप्त विभिन्न असामाजिक क्रियाएं एवं कुरीतियों से है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में अपने मूल रूप में स्थानांतरित होती रहती है. इसकी सामाजिक उपयोगिता ना होते हुए भी वर्ग एवं समुदाय इसको मान्यताएं प्रदान करता है. रूढ़िबद्धताएँ समाज, समुदाय एवं देश के विकास में बाधक है. रूढ़िबद्धता के अंतर्गत होने वाली क्रियाओं को व्यक्ति समाज, धर्म ईश्वर एवं अलौकिक शक्ति से जोड़कर संपादित करता है जबकि आज की आधुनिकता, विकासशील एवं मशीनीकरण के युग में इसकी न तो उपयोगिता है और ना ही सार्थकता. रूढ़िबद्धता एक सामाजिक मानदंड है अर्थात रूढ़िबद्धता के पीछे समाज की स्वीकृति होती है. रूढ़िबद्धताएं, जनरीतियों की तरह ही अनौपचारिक सामाजिक मानदंड होती हैं. जनरीतियों से ही रूढ़ियों का निर्माण होता है. जब कोई जनरीति बहुत अधिक व्यवहार में आने पर समूह के लिए अत्यावश्यक समझ ली जाती है तब वह रूढ़ियों का रूप धारण कर लेती है.

लैंगिक रूढ़िबद्धता | Gender Stereotyping in hindi

ग्रीन के अनुसार, "कार्य करने के वे सामान्य तरीके जो जनरीतियों की अपेक्षा अधिक निश्चित व उचित समझे जाते हैं तथा जिन का उल्लंघन करने पर गंभीर व निर्धारित दंड दिया जाता है, रूढ़ियां कहलाती हैं."

किम्बल यंग के अनुसार, "रूढ़िबद्धता वाह मिथ्या वर्गीकरण करने वाली धारणाएँ होती हैं जिसके साथ, नियमानुसार, कोई प्रबल संवेगात्मक, पसंद या नापसन्द की भावना, स्वीकृति या अस्वीकृति की भावना से जुड़ी होती है."

जहोदा के अनुसार, "रूढ़िबद्धता एक समूह के प्रति, पूर्व कल्पित मतों का संकेत करती है."

स्मिथ के अनुसार, "रूढ़िबद्धता अंधविश्वासों का एक ऐसा समुच्चय है जो गलत या अधूरी सूचना पर आधारित है तथा जिसे पूरे समूह के लिए प्रयुक्त किया जाता है."

ग्रीन ने रूढ़ियों को समझाते हुए उनके पालन न करने पर दंड दिए जाने की बात को अति महत्वपूर्ण माना है.

रूढ़िबद्धता की विशेषताएं (Characteristics of Stereotyping)

रूढ़िबद्धता की विशेषताएं निम्नलिखित होती हैं-

  • रूढ़ियां व्यक्ति के व्यवहार को विशेष एवं मान्य रूप से संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती हैं.

  • सामाजिक संरचना के स्थायित्व में रूढ़ियों की भूमिका अति महत्वपूर्ण होती है.

  • रूढ़ियां प्रायः गतिहीन होती हैं एवं समाजीकरण की प्रक्रिया में व्यक्ति उनको आत्मसात करते हुए उसके अनुरूप व्यवहार करते हैं.

  • रूढ़ियों में निरंतरता का गुण पाया जाता है जिसके कारण ये समाज में स्थायित्व प्राप्त कर लेती हैं जिसके फलस्वरुप समाज में परिवर्तन होने के बावजूद रूढ़ियां समाज में व्याप्त रहती हैं.

  • रूढ़ियों के पीछे कानून की सहमति नहीं होती फिर भी इनका प्रभाव व्यवहार में कानून से अधिक होता है.

  • रूढ़ियों में नैतिकता का अंत होता है इसलिए इनका पालन धार्मिक कर्तव्य के रूप में किया जाता है.

  • रूढ़ियां हमारे जीवन की महत्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं.

  • रूढ़िबद्धताएँ कल्पना आधारित प्रक्रिया है क्योंकि रूढ़ीवादी परंपराओं के अंतर्गत किसी भी परंपरा में मात्र कल्पनाओं का ही समावेश होता है.

  • रूढ़िबद्धता को अतार्किक प्रक्रिया के रूप में माना जाता है क्योंकि उन्हें अनेक सामाजिक परंपराओं के मूल में कोई तर्क नहीं होता है.

  • प्रायः जो देश रूढ़िवादी परंपराओं का अनुकरण करता है वह कभी भी विकसित नहीं हो सकता है.

  • रूढ़िबद्धता आधुनिक विकास में बाधक होती है. अनेक प्रकार की आधुनिकता संबंधी उपाय रूढ़िबद्धता के कारण असफल हो जाते हैं.

उपरोक्त विशेषताओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि रूढ़िबद्धता व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र की दृष्टि से अनुपयोगी तथा निरर्थक प्रक्रिया है जो कि समाज की चहुँमुखी विकास में बाधा उत्पन्न करती है. रूढ़िबद्धता के कारण ही सामाजिक विसंगतियों का जन्म होता है.

रूढ़िबद्धता के प्रकार (Types of Stereotyping)

समाजशास्त्रियों के अनुसार रूढ़ियां दो प्रकार के सामाजिक मानदण्ड प्रस्तुत करती हैं जो इस प्रकार हैं-

1. सकारात्मक रूढ़िबद्धता:- सकारात्मक रूढ़ियां, ऐसी रूढ़ियाँ होती हैं जो व्यक्ति से विशेष प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा रखती हैं. उदाहरण के लिए- जीवन में इमानदारी रखो, माता-पिता का आदर करो आज की सकारात्मक रूढ़ियां हैं.

2. नकारात्मक/निषेधात्मक रूढ़िबद्धता:- सकारात्मक रूढ़ियों के विपरीत निषेधात्मक रूढ़ियाँ वर्जना (Taboo) के रूप में हमें कुछ विशिष्ट व्यवहार करने से रोकती हैं. उदाहरण के लिए- चोरी नहीं करनी चाहिए, वेश्यावृत्ति से दूर रहना चाहिए एवं सट्टेबाजी नहीं करनी चाहिए आदि.

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि रूढ़ियों में नैतिकता का पर्याप्त प्रभाव रहता है एवं इनका पालन करना भी सामाजिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. अतः अतिथि का आदर करना, स्त्रियों से आदर पूर्वक व्यवहार करना इत्यादि रूढ़ियों के उदाहरण हैं जिनका पालन सांस्कृतिक मान्यताओं के अनुरूप व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है.

भारतीय समाज में व्याप्त रूढ़िबद्धता (Stereotyping Pervaded in Indian Society)

भारतीय समाज में व्याप्तमुख्य रूढ़िबद्धताएँ निम्न हैं-

(1). लिंगपरक रूढ़िबद्धता:- लड़की और लड़के के बारे में बनाई गई असमान तथा एक तरफा धारणा लड़कों एवं पुरुषों को लड़कियों एवं औरतों से अधिक महत्व देता है. यह सामाजिक धारणा एवं व्यक्तियों के विचार एवं लैंगिक रूढ़िबद्धता को प्रदर्शित करता है. लैंगिक रूढ़िबद्धता समाज को पुरुष प्रधान बनाने के साथ ही स्त्रियों की शिक्षा, सामाजिक सहभागिता एवं स्वतंत्रता को प्रभावित करता है. यह सामाजिक रूढ़िबद्धता प्राचीन काल से प्रारंभ होकर वर्तमान तक अपने उसी रूप में चली आ रही है. समाज एवं बुद्धिजीवी वर्ग कितना भी महिला सशक्तिकरण एवं लैंगिक समानता का गुणगान करते रहे परंतु इसके लिए आवश्यक है लोगों के विचारों एवं भावनाओं में परिवर्तन, उनकी सोच एवं दूरदर्शी विचारों का प्रवाह.

(2). बाल विवाह:- वर्तमान में भारत एक विकासशील देश है. अपने विकास के साथ ही उसके विभिन्न सामाजिक स्वरूपों में भी विकास हुआ है परंतु बहुत से सामाजिक रूढ़ियों में आज भी पिछड़ापन है. बाल-विवाह अपने बदले हुए स्वरूप में आज भी विद्यमान है. समाज के एक पक्ष ने शिक्षित एवं जागरूक होकर बाल-विवाह का भले ही त्याग किया है परंतु पूर्ण रूप से इस रूढ़िबद्धता का अंत नहीं माना जा सकता है.

(3). दहेज प्रथा:- समाज में व्याप्त विभिन्न रूढ़िवादियों में दहेज प्रथा एक प्रमुख रूढ़िबद्धता है. प्रारंभ में राजा एवं महाराजा इसे अपनी शान समझकर वर पक्ष को धन, भूमि, सैनिक आदि प्रदान करते थे परंतु समाज के सभी वर्गों ने इसे अनिवार्य रूप से अपना लिया तथा आज यह अनिवार्य बन गया है.

(4). पिंडदान हेतु पुत्र की महत्ता:- भारतीय समाज में विविध प्रकार की रूढ़िबद्धताएँ हैं जिनमें से एक रूढ़िबद्धता पिंड-दान हेतु पुत्र का होना आवश्यक है. सामान्यतया कहा जाता है कि पुत्री माता-पिता के लिए मुक्ति (मोक्ष) का द्वार खोलता है. अर्थात जब तक पुत्र द्वारा माता-पिता का पिंडदान नहीं किया जाता तब तक उन्हें मोक्ष प्राप्त नहीं होता है. भारतीय समाज मे यह रूढ़िबद्धता प्राचीन काल से चली आ रही है तथा वर्तमान समय में भी या व्याप्त है. यद्यपि वर्तमान में इस रूढ़िबद्धता का प्रभाव कम हो गया है किंतु पूर्ण रुप से अभी इसका अंत नहीं हुआ है.

(5). स्त्रियों से मात्र गृह कार्य की अपेक्षा:- भारतीय समाज में यह कहा जाता है कि गृहकार्य करने में मात्र स्त्रियों (लड़कियों एवं महिलाओं) की ही सहभागिता होनी चाहिए अर्थात केवल बालिकाओं, महिलाओं को ही गृहकार्य (घर का कामकाज) करना चाहिए. अपितु आधुनिक भारतीय समाज में इस रूढ़िबद्धता का भी कुछ अंश तक खंडन किया जा चुका है. अब पुरुष एवं बालक भी घर के कार्यों में अपनी भागीदारी का उचित निर्वहन कर रहे हैं.

(6). पुरुष ही घर का पालनहार:- प्राचीन भारतीय समाज में पुरुष को ही घर का पालनहार या पालनकर्ता माना जाता था. इसलिए पूरे परिवार को उनकी प्रत्येक उचित या अनुचित बात का समर्थन करना होता था परंतु धीरे-धीरे इस रूढ़िबद्धता में सुधार होता गया. वर्तमान में एक परिवार को अपनी-अपनी बातें कहने का पूर्ण अधिकार है एवं उसे यह भी अधिकार है कि वह घर के प्रत्येक सदस्य की अनुचित व्यवहार या बातों के प्रति आवाज बुलंद कर सकता है.

इस प्रकार समाज की ये रूढ़ियाँ आज भी हमारे भारतीय समाज में किसी ना किसी रूप में व्याप्त हैं जो इन रूढ़ियों का पालन करती हैं एवं जो इनका पालन नहींकरती हैं वे हीन या घृणा की दृष्टि से देखे जाते हैं. इस प्रकार रूढ़ियों के संदर्भ में हम यह कह सकते हैं कि रूढ़ियाँ जीवन की समस्याओं के लिए प्रश्न न रखकर उत्तर प्रस्तुत करती हैं अर्थात रूढ़ियाँ इतनी बलवती होती हैं कि वे किसी भी व्यवहार को उचित अथवा अनुचित घोषित कर देती हैं. उदाहरण के लिए- रूढ़ियों के कारण ही लालनाएँ पति के वीरगति करने पर स्वयं पति के साथ चिता में प्रवेश कर जाती थीं. कहने का तात्पर्य है कि उचित-अनुचित पर ध्यान दिए बिना ही सदैव व्यवहार के ऐसे मानदंड प्रस्तुत किये हैं जिनका समाज ने बिना किसी तर्क के समय-समय पालन किया है.

लैंगिक रूढ़िबद्धता का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Gender Stereotyping)

लैंगिक रूढ़िबद्धता से अभिप्रायः है" स्त्री या पुरुष, लड़का या लड़की के व्यवहार एवं भूमिका से संबंधित समाज का वह सामान्यीकारण जो प्रायः गलत चित्रण के कारण होता है."

स्त्री-पुरुष से संबंधित विशेष व्यवहारों व कार्यों को समाज द्वारा परिभाषित करना और इन्हीं विशेष कार्यों और भूमिकाओं की अपेक्षा करना, सुसंगत न होने की स्थिति में उनको टोकना, विचारों में सुधार करने को कहना, लैंगिक रूढ़िबद्धता है. इसी लैंगिक रूढ़िबद्धता को महिलाओं और पुरुषों के बीच लैंगिक समानता का मुख्य जिम्मेदार कारक माना जा सकता है. लैंगिक रूढ़िबद्धता निरंतर अपना अस्तित्व बनाए रखती है और इस प्रक्रिया में सामाजीकरण अपनी प्रमुख भूमिका निभाता है.

लैंगिक रूढ़िबद्धता के महत्वपूर्ण बिंदु (Important Points of Gender Stereotyping)

लैंगिक रूढ़िबद्धता से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदुओं को समझना आवश्यक है-

(1). लैंगिक रूढ़िबद्धता, लैंगिक असमानता के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार कारकों में से एक हैं.

(2). लैंगिक रूढ़िबद्धता, सामाजिक अपेक्षाओं से संबंधित होती है अर्थात समाज, जो स्त्री और पुरुष से उम्मीद करता है कि वो क्या करें और क्या ना करें.

(3). लड़के लड़कियों को यह जताना कि वो क्या कर सकते हैं और क्या नहीं कर सकते.

(4). लड़के-लड़कियों, महिलाओं एवं पुरषों की सीमाएं तय करना:-

समाज द्वारा स्त्री-पुरुष की सभी क्षेत्रों में परिसीमन करना भी लैंगिक रूढ़िबद्धता है. स्त्री और पुरुषों की क्षमताओं को भी मनोवैज्ञानिक रूप से सीमित करके उनकी अभिवृत्ति को निश्चित करना. जैसे- एक हाथी के बच्चे को बचपन में ही एक लोहे की जंजीर से बांध देने के बाद उसको खूंटे से बंधे रहने को तैयार कर दिया जाता है. उस समय वो लोहे की चेन इतनी मजबूत होती है कि हाथी का बच्चा उसे तोड़ नहीं सकता लेकिन समय परिवर्तन के साथ हाथी के बड़े जाने के बाद भी, शक्तिशाली हो जाने के बाद भी, वह हाथी उस जंजीर को नहीं तोड़ पाता क्योंकि वह कोशिश ही नहीं करता क्योंकि उसकी अभिवृत्ति का विकास बचपन से ही अनुकूलन के कारण यह हो जाता है कि मुझे तो खुँटे से ही बँधे रहना है, इसलिए वह कभी प्रयास ही नहीं करता जबकि शक्तिशाली हाथी के लिए उस कमजोर जंजीर को तोड़ना कोई मुश्किल कार्य नहीं होता है पर अभिवृत्ति विकसित हो जाने के कारण वो तोड़ने की सोचता ही नहीं.

लैंगिक रूढ़िबद्धता भी उसी जंजीर के समान होती है जो स्त्रियों के रूढ़िबद्धता से अनुकूलित करके उनमें ऐसी अभिवृत्ति का निर्माण कर दिया जाता है कि स्त्री अपनी क्षमता के विषय में अनभिज्ञ होकर प्रयास ही नहीं करती और उसी परंपरागत सोच के साथ जीती रहती है. इसी लैंगिक रूढ़िबद्धता के कारण आज स्त्रियां लैंगिक असमानता के शिकार हुई हैं.

(5). लैंगिक रूढ़िबद्धता का असर शिक्षा, व्यवसाय, स्वास्थ्य, रोजगार आदि प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है. अभी भी कई परिवारों में लड़कियों को शिक्षित करने का कार्य किया जा रहा है पर नौकरी के लिए बाहर नहीं जाने देना, उनको स्वतंत्रता ना देना, लैंगिक रूढ़िबद्धता का परिणाम है.

(6). लैंगिक रूढ़िबद्धता को निरंतर अस्तित्व में बनाएं रखने में सामाजिक नियंत्रण एक महत्व पूर्ण हथियार है. जिस घर कि लड़कियां ज्यादा स्वतन्त्र विचार कि होतो हैं, उनके परिवार वालों को समाज के विभिन्न वर्गों एवं व्यक्तियोंसे से कई प्रकार के ताने व बातें सुननी पड़ती हैं. लड़की यदि देर रात को आती है, मोहल्ले के लोग, उसके घर वालों को किसी न किसी रूप में ताने मारते हैं और कई बार उसके चरित्र को लेकर है एवं उसकी उसकी सुरक्षा को लेकर समाज में घट रही कई वारदातों को लेकर उनकों डराते रहते हैं, इससे भी लैंगिक रुढिबद्धता को कायम रखा जाता है.

(7). प्रत्यक्ष असामनता भी लैंगिक रूढ़िबद्धता का परिणाम है. परिवार में लड़कों को वरीयता देना, उनकी सुविधाओं का ज्यादा ध्यान रखना, उनको अपनी बहनों की तुलना में ज्यादा बोलने का अधिकार, स्वतंत्रता, अवसर आदि देना, प्रत्यक्ष असामनता है और यह प्रत्यक्ष असमानता, लैंगिक रूढ़िबद्धता का ही परिणाम है. प्रत्यक्ष असामनता का यहां तात्पर्य है कि, "साफ-साफ भेदभाव का प्रदर्शन होना, बिना किसी तर्क के भेदभाव होना फिर भी लड़कियों का कुछ ना बोल पाना." प्रत्यक्ष असमानता के विरुद्ध लड़कियां जाने की कोशिश भी करती हैं तो समाज की रूढ़िबद्धता इसको नकारात्मक व्यवहार की संज्ञा देकर हतोत्साहित कर देता है.

कन्या भ्रूण हत्या भी लैंगिक रूढ़िवादिता का ही परिणाम है. जब माता-पिता को लड़कियों को लेकर समाज की सोच, आर्थिक बोझ, इज्जत की रक्षा आदि को सोचता है तो वह जड़ को ही समाप्त करने की सोच लेता है. इसकी परिणति समाज में स्त्री-पुरुष अनुपात में कमी देखी जा सकती है. 2011 की जनगणना के अनुसार प्रति 1000 पुरुषों पर सिर्फ 940 महिलाएं हैं थीं.

लैंगिक रूढ़िबद्धता का प्रभाव (Effect of Gender Stereotypes)

लैंगिक रूढ़िबद्धता, परंपरागत रूप से प्रभुत्ववादी संस्कृति में सर्वाधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण होती है. लैंगिक रूढ़िबद्धता समाज में समान्य रूप से बहुत अधिक व्याप्त है. समाज ने इसे रूढ़िबद्धता के आधार पर ही पुरुष तथा स्त्रियोंचित व्यवहार आधारित विशेषताओं को निश्चित कर दिया है. बालिकाएं स्त्रियोंचित कार्य जैसे- खाना बनाना, गुड़िया के साथ खेलना आदि के प्रति प्रोत्साहित की जाती हैं जबकि दूसरी तरफ बालकों को खेलकूद में भाग लेने एवं पुरुषोंचित व्यवहार प्रदर्शित करना सिखाया जाता है. यद्यपि पुरुषों एवं महिलाओं को रूढ़िबद्धता भिन्न भिन्न प्रकार से प्रभावित करती हैं-

(1). मनोवैज्ञानिक तथा संवेगात्मक तनाव (Psychological and Emotional Stress):- लैंगिक रूढ़िबद्धता पुरुषों एवं महिलाओं को कई प्रकार से प्रभावित करती हैं. दोनों को सदैव परंपरागत रूढ़िबद्धता के अनुरूप कार्य करने के आधार पर परखा जाता है. पुरषों से सदैव पुरुषत्व के मानकों को पूरा करने एवं उनका पालन करने की अपेक्षा की जाती है किंतु जब वे उन मानको पूर्ण नहीं कर पाते तो प्रायः वे निम्न आत्म मूल्यों से पीड़ित हो जाते हैं. यहां तक कि पुरुषत्व का मानक सफलतापूर्वक पूरा न कर पाने के कारण कभी-कभी ये मानसिक एवं भावनात्मक रूप से पीड़ित हो जाते हैं. दूसरी तरफ सभी महिलाओं से विवाह के उपरांत सदैव बच्चे के जन्म की आशा की जाती है.इसके लिए सदैव उन पर दबाव डाला जाता है. ऐसे में यदि महिलाएं अपने करियर को अधिक महत्व देती हैं तो दूसरों के द्वारा उनकी आलोचना की जाती है जिससे महिलाएं मनोवैज्ञानिक तथा संवेगात्मक तनाव का शिकार हो जाती हैं.

(2). उपलब्धि पर प्रभाव (Effect on Performance):- महिलाओं एवं पुरुषों की उपलब्धियां भी लैंगिक रूढ़िबद्धता के कारण प्रभावित होती हैं. लैंगिक रूढ़िबद्धता एक अंतर्निहित भय उत्पन्न कर देती है. विभिन्न शोध अध्ययनों में यह पाया गया है कि 'रूढ़िवादी धमकी' नकारात्मक रूप से भय उत्पन्न कर उपलब्धि को प्रभावित करती है. उदाहरण के लिए- स्पेंसर, स्टील एवं क्विन ने यह साबित किया कि महिलाएं गणित के परीक्षण में निम्न स्तर का प्रदर्शन करतीं हैं क्योंकि उन्हें विश्वास दिलाया जाता है कि वह गणित में अच्छा कार्य नहीं कर सकती हैं. इसी प्रकार पुरुषों का भाषा संबंधी परिणाम बहुत बुरा आता है. ये नकारात्मक रूढ़िबद्धताएँ उपलब्धि को तब तक प्रभावित करती हैं जब तक व्यक्ति स्वयं के विचारों से निकाल कर इसके प्रति सकारात्मक विचारों का समाविष्ट नहीं कर लेता.

(3). निम्न वैवाहिक संतुष्टि (Lower Marital Satisfaction):- लैंगिक रूढ़िबद्धता के कारण पुरुषों और महिलाओं के मध्य उत्तरदायित्व का वितरण असमान रूप से किया जाता है. महिलाओं को अक्सर प्रत्यक्ष देखभाल तथा बच्चों के साथ अधिक समय व्यतीत करना जिससे शिशु देखभाल, शिशु के स्वास्थ्य तथा कल्याण के विषय में सोचना आदि कार्य प्रदान किए जाते हैं. गृहस्थ कार्यों एवं बाल-संरक्षण आधारित यह असमान वितरण निम्न वैवाहिक संतुष्टि का कारण बनता है.

(4). युगल एवं परिवार की अंतः क्रिया प्रभावित (Couple and Family Interaction are Affected):- लैंगिक रूढ़िबद्धता युगल एवं परिवारिक अंतः क्रिया को भी प्रभावित करती है. उदाहरण के लिए- गृहस्थ कार्य का विभाजन लिंग आधारित होता है. जिसमें पुरुष सदैव घर से बाहर जाने एवं परिवार के लिए रोजी-रोटी कमाने के लिए घर से बाहर रहकर कार्य करता है. यह पुरुषों में वर्चस्व की भावना उत्पन्न करता है एवं महिलाओं को अधीनस्थ के रूप में समझता है. जैसे-जैसे समय व्यतीत होता है ये सभी बातें उनकी अंतः क्रियाओं को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती हैं. इसी कारण वर्तमान समय में महिलाएं पुरुषों के समान स्तर की मांग करने लगी हैं.

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