कर्ण और दुःशासन का अंत | Karna aur Dushasana ka Ant | Mahabharat

दुःशासन को देखकर क्रोध में भरा भीम गदा लेकर दुःशासन पर टूट पड़ा—“धूर्त दुःशासन! आज मैं तुझे मारकर द्रोपदी के अपमान का बदला लूंगा।" भीम ने गदा के प्रहा

कर्ण और दुःशासन का अंत

द्रोण के मारे जाने पर युद्ध के पंद्रहवें दिन दुर्योधन ने कर्ण को कौरव सेना का सेनानायक बनाया। मद्रराज शल्य ने कर्ण का सारथि बनना स्वीकार कर लिया।

Karna aur Dushasana ka Ant | Mahabharat

प्रातः होते ही पाण्डवों और कौरव सेना के बीच घमासान युद्ध होने लगा। अर्जुन ने आगे बढ़कर कर्ण को ललकारा। भीम, अर्जुन के पीछे था, लेकिन तभी दुर्योधन के साथ आए दुःशासन ने भीम पर अपने बाणों से वर्षा कर दी।

दुःशासन को देखकर क्रोध में भरा भीम गदा लेकर दुःशासन पर टूट पड़ा—“धूर्त दुःशासन! आज मैं तुझे मारकर द्रोपदी के अपमान का बदला लूंगा।" भीम ने गदा के प्रहार से दुःशासन को नीचे गिरा दिया और उसकी छाती पर पैर रखकर उसके हाथों को झटका देकर उखाड़ डाला और चीखा– “नीच! तूने इन्हीं हाथों से द्रोपदी के केश पकड़कर खींचे थे। आज मैं तेरा लहू पीकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करूंगा।”

भीम के प्रहारों से दुःशासन के प्राण पखेरू उड़ गए। भीम खड़ा होकर जोर से चिल्लाया – “गया एक पापी इस संसार से। मेरी प्रतिज्ञा पूरी हुई। अब दुष्ट दुर्योधन की बारी है। नहीं छोडूंगा उसे।”

भीम के भयानक रूप को देखकर कर्ण का हृदय दहल गया। शल्य ने उसे दिलासा दी—“कर्ण! तुम तो वीर हो। इस तरह हताश होना तुम्हें शोभा नहीं देता। अर्जुन से युद्ध करके या तो विजयश्री प्राप्त करो या फिर वीरोचित स्वर्ग।”

अर्जुन और कर्ण के मध्य घोर संग्राम छिड़ गया। कर्ण ने क्रोध में भरकर अर्जुन पर काले नाग की तरह जहर उगलते बाण को चलाया। अर्जुन की ओर उस बाण को आता देख श्रीकृष्ण ने रथ को अपने पैर के अंगूठे से दबा दिया। इससे रथ जमीन में पांच उंगल नीचे धंस गया। कर्ण का छोड़ा गया बाण अर्जुन के मुकुट को ले उड़ा। इस पर अर्जुन ने क्रोध में भरकर गांडीव से भयानक बाण वर्षा कर दी।

ठीक उसी समय कर्ण के रथ का पहिया धरती में धंस गया। कर्ण घबरा गया। उसने पुकारकर अर्जुन को रोका– “अर्जुन! रुक जाओ। मेरे रथ का पहिया धरती में धंस गया है। मैं उसे ठीक कर लूं।"

कर्ण रथ से नीचे उतरकर धरती में धंसा अपने रथ का पहिया निकालने लगा, पर काफी जोर लगाने के बाद भी वह नहीं निकला।

यह स्थिति देखकर श्रीकृष्ण ने तत्काल अर्जुन से कहा- “अर्जुन! अब देरी मत करो। इस दुष्ट को खत्म कर दो। मारो इसे।"

“परंतु यह तो अधर्म है कृष्ण!” अर्जुन ने हैरानी से कृष्ण की ओर देखा।

“अर्जुन! धर्म-अधर्म की बात मत करो। तुम भूल गए इस पापी की वह बात, जब कौरवों की सभा में इसने द्रोपदी का परिहास उड़ाते हुए कहा था 'तेरे पति आज तेरे काम नहीं आए। चल, अब और किसी को अपना पति बना ले।' क्या तुम भूल गए कि इस पापी ने छः अन्य महारथियों के साथ मिलकर बालक अभिमन्यु को घेरकर मार डाला था?”

श्रीकृष्ण की बात सुनकर अर्जुन का क्रोध उबाल खा गया। उसने गांडीव पर चढ़ा तीर लक्ष्य करके कर्ण पर चला दिया। अगले ही पल कर्ण का सिर कटकर धरती पर जा गिरा।

पाण्डवों ने जयघोष किया। दुःशासन और कर्ण के मरते ही कौरव सेना में शोक छा गया। निहत्थे कर्ण पर बाण चलाने का अर्जुन को बड़ा क्षोभ हो रहा था। उसकी मनोदशा देखकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा– “पार्थ! हिंसात्मक युद्ध से अधर्म एवं अत्याचार को नष्ट करने की आशा करना व्यर्थ है। धार्मिक लक्ष्य की सिद्धि के लिए जो युद्ध किए जाते हैं। उनमें भी देश-काल और परिस्थिति के आधार पर अन्याय और अधर्म हो ही जाते हैं, उनकी तुम्हें चिंता नहीं करनी चाहिए।

कष्ट पड़ने पर सभी को धर्म का ध्यान आता है और कष्ट पाने वाला धर्म की दुहाई देने लगता है। वह अपने द्वारा किए गए अधर्म को तब भूल जाता है। ऐसे अधर्मी दुष्टों का विनाश करने में कोई अधर्म नहीं है।"

श्रीकृष्ण की बात सुनकर अर्जुन का मन शांत हो गया।

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