मिड डे मील योजना के उद्देश्य, गुण एवं दोष (MDM) | Objectives, Merits and Demerits of Mid Day Meal Yojana in hindi

15 अगस्त, 1995 को सरकार ने छात्रों को स्कूलों की तरफ आकर्षित करने तथा उन्हें रोके रखने के लिए "मिड-डे मील योजना' शुरू की जिसे 'पौष्टिक आहार सहायता

मिड डे मील योजना (Mid Day Meal Scheme)

मिड-डे मील योजना केन्द्र सरकार के द्वारा शुरू की गई एक योजना है जिसके अन्तर्गत पूरे देश के प्राथमिक और लघु माध्यमिक विद्यालयों के छात्रों को दोपहर का भोजन निःशुल्क प्रदान किया जाता है। इस योजना में केन्द्र और राज्य सरकारें 75:25 के अनुपात में व्यय करती हैं। सरकार भोजन के लिए खाद्य सामग्री (गेहूं, चावल व अन्य पदार्थ) उपलब्ध कराती है। भोजन कराने के लिए 25 बालकों पर एक रसोइया तथा एक सहायक, 25 से अधिक बालकों पर 2 रसोइये तथा दो सहायकों की व्यवस्था है जो भोजन पकाने का कार्य करते हैं।

मिड डे मील योजना के उद्देश्य, गुण एवं दोष (MDM)

भारत में प्राथमिक शिक्षा की उत्तम व्यवस्था हेतु भारत के स्वतन्त्रोपरांत ही बहुत सी नीतयाँ बनाई गई। चूँकि हमारा उद्देश्य निश्चित आयु वर्ग के सभी बालकों के लिए प्राथमिक शिक्षा निःशुल्क व अनिवार्य के लक्ष्य को पाना था। प्राथमिक शिक्षा के प्रसार तथा उन्नयन के लिए सुझाव देने के सम्बन्ध में 1957 में सरकार ने 'अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षा परिषद्' का गठन किया। इस परिषद् ने प्राथमिक शिक्षा के प्रसार व उन्नयन के सम्बन्ध में ठोस सुझाव दिए जिससे प्राथमिक शिक्षा के प्रसार में तेजी आई। 1966 में 'राष्ट्रीय शिक्षा आयोग' ने अपना प्रतिवेदन सरकार के समक्ष पेश किया। इस आयोग ने बिना किसी भेदभाव के हर धर्म, जाति व लिंग के छात्रों के लिए शैक्षिक अवसरों की समानता पर बल दिया।

इस आयोग के सुझावों के आधार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968' घोषित हुई। इसमें भी प्राथमिक शिक्षा को निःशुल्क व अनिवार्य करने के सम्बन्ध में ठोस नीतियां दी गई। उसके बाद कांग्रेस के कार्यकाल में राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986' आई। इस शिक्षा नीति में शिक्षा का सार्वभौमीकरण करना प्रमुख लक्ष्य निर्धारित किया गया। इसके लिए 1986 में सरकार ने 'ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना' का प्रारम्भ किया और प्राथमिक शिक्षा के लिए आधारभूत सुविधाएं मिलना शुरू हो गई। 1990 में विश्व कॉन्फ्रेस में 'सबके लिए शिक्षा' को घोषणा की गई जिससे सभी देशों में प्राथमिक शिक्षा के प्रसार में तेजी आई। 1994 में सरकार ने शैक्षिक रूप से पिछड़े जिलों के लिए जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया। 15 अगस्त, 1995 को सरकार ने छात्रों को स्कूलों की तरफ आकर्षित करने तथा उन्हें रोके रखने के लिए "मिड-डे मील योजना' शुरू की जिसे 'पौष्टिक आहार सहायता का राष्ट्रीय कार्यक्रम' भी कहा जाता है।

मिड-डे मील योजना के उद्देश्य (Objectives of Mid-Day Meal Scheme)

  1. प्राथमिक स्कूलों में छात्रों को प्रवेश संख्या में वृद्धि करना।
  2. प्राथमिक स्तर पर अपव्यय को रोककर बालकों को प्राथमिक स्कूलों में रोके रखना।
  3. छात्रों की नियमित उपस्थिति में वृद्धि करना।
  4. छात्रों को पौष्टिक भोजन के द्वारा स्वास्थ्य लाभ देना।
  5. बिना किसी भेदभाव के एक साथ भोजन करने से भ्रातृत्व का भाव उत्पन्न करना, जातिभेद खत्म करना।

मिड-डे मील योजना का क्षेत्र (Scope of Mid-Day Meal Scheme)

प्रारम्भ में यह योजना केवल सरकारी प्राथमिक स्कूलों में लागू की 1997-98 तक इसे देश के सभी प्रान्तों के स्कूलों में लागू किया जा चुका था। 2002 में इस योजना में मुस्लिमों द्वारा चलाए जा रहे मदरसों को भी शामिल कर लिया गया। 2007 में उच्च प्राथमिक स्कूलों को भी इस योजना का लाभ मिलना शुरू हो गया। वर्तमान में कुछ सरकारी आर्थिक सहायता, मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों को इस योजना में भी शामिल कर लिया गया है। 2014-15 में यह योजना लगभग साढ़े ग्यारह लाख प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों में चल रही थी। इससे साढ़े दस करोड़ बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं।

मिड-डे मील की आवश्यकता (Mid-Day Meal Requirement)

विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) वर्तमान में कुपोषण और खाद्य असुरक्षा के स्तर को सुधारने के लिए खाद्य आधारित सुरक्षा तन्त्र को सशक्त करने में सहयोग करता है। भारत में इसके सहयोग में मिड-डे मील कार्यक्रम चलाया जिसकी आवश्यकता को निम्न प्रकार से स्पष्ट कर सकते है-

1. फोर्टिफिकेशन:- फोर्टिफिकेशन एक प्रयास और परीक्षण प्रक्रिया है जिसके माध्यम से खाद्य पदार्थों में सूक्ष्म पोषक तत्वों को जोड़ा जाता है। चावल और गेहूं जैसे स्टेपल की फोर्टिफाई लोहे और विटामिन 'ए' के साथ सफलतापूर्वक सफल हुआ है। पकाए हुए भोजन को भी प्री-मिक्स सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ मजबूत किया जा सकता है। एक उचित लागत मूल्य पर मूक्ष्म पोषक तत्वों की स्थिति में सुधार किया जा सकता है। डब्ल्यूएफपी, ओडिशा की सरकार के साथ मिलकर एक जिले में एमडीएम चावल में लौह तत्त्व का चालन कया। एक साल के भीतर एनेमिया के मामलों में 5% की गिरावट आ गई।

2. एकीकृत सुरक्षित तथा स्वच्छ आदतें:- एमडीएम में सुरक्षित और स्वच्छ आदतों को एकीकृत करना सुनिश्चित करना आवश्यक है। यह खाद्य आपूर्ति श्रृंखला के द्वारा तैयारी एवं उपयोग के समय निर्धारित किया जा सकता है। पाक और भण्डारण सुविधाओं में स्वच्छता होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त हाथ धोने के तथा वस्तुओं को साफ करने के लिए सतत जल आपूर्ति, एप्रेन के साथ उपयुक्त किट, रसोइए के लिए दस्ताने और कैप्स, सुरक्षित खाद्य अपशिष्ट निपटान की आवश्यकता है। प्रत्येक विद्यालय में शौचालय बनाने के लिए सरकार की ओर से पहल की आवश्यकता है।

3. विद्यालय प्रबन्धन में सुधार:- विद्यालय प्रबन्धन में रसोई कर्मचारी तथा छात्र स्वयं योजना के में आवश्यक सहयोग के लिए प्रबन्धन करता है। रसोई में कार्य करने वाले कर्मचारियों के स्वास्थ्य को नियमित जाँच होना आवश्यक है तथा उन्हें अच्छी स्वास्थ्य आदतों को अपनाना चाहिए जैसे खाना बनाने से पहले हाथ धोना आदि। स्वच्छ हाथ, स्वच्छ बर्तन, स्वच्छ खाना पकाना तथा स्वच्छ रसोई तीन महत्त्वपूर्ण सन्देश है जो विद्यालय प्रबन्धन में सम्मिलित होने चाहिए। पोषण को सफलतापूर्वक सुधारने के लिए खाद्य, स्वास्थ्य स्वच्छ पेय जल के साथ किया जा सकता है। एमडीएम भारत के पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं के लिए सहयोग करते हैं। लेकिन इनमे स्वच्छता और पोषण सम्बन्धी मूल्य के बारे में कुछ खामियाँ हैं जिनको दूर करने की आवश्यकता है।

मध्याह्न भोजन योजना के लाभ एवं महत्त्व (Benefits and Importance of Mid Day Meal Scheme)

  1. मध्याह्न भोजन बढ़ती उम्र के बच्चों के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मददगार साबित होता है।
  2. यह छात्रों में अच्छी आदतें बढ़ाता है।
  3. यह सन्तुलित भोजन उपलब्ध करवाता है।
  4. यह कुपोषण से होने वाली बीमारियों को नियन्त्रित करने में भी मदद करता है।
  5. यह बच्चों में अतिरिक्त ऊर्जा पैदा करता है।
  6. यह घर तथा विद्यालय के बीच एक मजबूत बन्धन को बनाता है।
  7. यह बच्चों में सहयोगी भावना को जगाता है।
  8. यह बच्चों में जिम्मेदारी की भावना तथा स्वस्थ नेतृत्व को बढ़ाता है।
  9. यह बच्चों में सामाजिक भावना लाता है।
  10. यह विद्यालय में स्वच्छता की स्थिति को सुधारता है।

मिड-डे मील योजना की कार्यप्रणाली (Working of Mid Day Meal Scheme)

इस योजना को राज्य सरकारों की सर्व शिक्षा अभियान समितियों के द्वारा संचालित कराया जाता है। ये समितियाँ अपने-अपने क्षेत्र में इस योजना का संचालन तथा निगरानी करती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों में ही भोजन तैयार कराया जाता है। शहरी क्षेत्रों में ठेकेदारों के द्वारा। भोजन उपलब्ध कराया जाता है। सरकारी दावे के अनुसार कक्षा 1 से 5 तक प्रत्येक बच्चे को प्रतिदिन 100 ग्राम अनाज, दाल, सब्जी दिए जा रहे हैं और कक्षा 6 से कक्षा 8 तक प्रत्येक छात्रों को प्रतिदिन 150 ग्राम अनाज, दाल, सब्जी दिए जा रहे हैं।

शैक्षिक परिणामों पर मध्याह्न भोजन का प्रभाव (Effect of Midday Meal on Educational Outcomes)

भारत सरकार ने 1995 में राष्ट्रीय स्कूल भोजन कार्यक्रम मिड-डे मील स्कीम (एमडीएम) का शुभारम्भ किया। इसका उद्देश्य सरकारी एवं सरकारी अनुदानित विद्यालयों में कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों को पोषण में सुधार करना है। यह विद्यालय उपस्थिति और स्कूल में बच्चों की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए भी डिजाइन किया गया है। एमडीएम का उद्देश्य प्राथमिक विद्यालय के बच्चों को 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय के बच्चों को 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध कराना है। इसके अतिरिक्त पर्याप्त मात्रा में लौह और फोलिक एसिड जैसे सूक्ष्म पोषक तत्त्वों को भी प्रदान करना है।

किसी भी कार्यक्रम के प्रभाव का आंकलन करने के लिए एक पूर्व और पोस्ट आदर्श डिजाइन होता है जो नियन्त्रण समूह के साथ हस्तक्षेप करते हैं। चूंकि इस कार्यक्रम में आधारभूत जानकारी उपलब्ध नहीं थी, इसीलिए 30 स्कूलों का एक सेट नियन्त्रण समूह के रूप में एमडीएम कार्यक्रम के बिना तुलनीय सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि के लिए प्रयोग किया गया था। दोनों स्कूलों के सेट उसी भौगोलिक क्षेत्र के थे, जो अनिवार्य रूप से समान सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि के थे। प्रत्येक विद्यालय में नैदानिक परीक्षा और शैक्षिक प्रदर्शन के लिए 5 लड़के तथा 5 लड़कियों का चयन प्रत्येक विद्यालय से किया गया। यदि किसी कक्षा में लड़कों या लड़कियों की संख्या दस से कम थी, तो सभी उपस्थिति छात्रों को चयन में सम्मिलित किया गया। इन चयनित विद्यालयों में निम्नलिखित का आंकलन किया गया-

  1. विद्यालय नामांकन (प्रत्येक गाँव में 6-11 साल के बच्चों की कुल संख्या या विद्यालय मे दाखिला प्रतिशत), उपस्थिति (बच्चों ने पिछले वर्ष 80% कार्य दिवसों में उपस्थित हुए) प्रतिधारण (एक ही रोल नम्बर पर 5 वर्ष के लिए जारी रखने वाले छात्रों की संख्या) तथा विद्यालय छोड़ने की दर (पिछले 5 वर्षों में छात्रों की संख्या में कमी/गिरावट)।
  2. मानवमिति (लम्बाई और वजन) तथा नैदानिक परीक्षा (बच्चों के उप नमूने) के द्वारा बच्चों को पोषण सम्बन्धी स्थिति।
  3. पिछले साल वार्षिक परीक्षा में बच्चों द्वारा प्राप्त अंकों के आधार पर शैक्षिक प्रदर्शन।
  4. पोषक तत्त्व तथा उनके उपयोग के परिणाम।

प्रत्येक कक्षा 1 से 5 (6-11 वर्ष) के दस छात्रों (जिसमें एक लड़का और एक लड़की अनिवार्य) को एमडीएम के अन्तर्गत अवलोकित किया गया, जब वे सप्लीमेन्ट का उपभेग कर रहे थे। भोजन की जितनी मात्रा प्राप्त हुई उसे परोसने के समय मापा गया। इसके अतिरिक्त प्रतिदिन जिस अनुपात में राशन निकाला गया, किस प्रकार भोजन बनाया गया तथा उसके भण्डारण का बारोकी से अवलोकन किया गया था। प्रति छात्र पोषक भोजन से प्राप्त ऊर्जा एवं प्रोटीन की गणना भी की गई थी। पोषण सम्बन्धी स्थिति का मूल्यांकन एमडीएम स्कूलों में 1361 बच्चों और गैर एमडीएम स्कूलों में 1333 बच्चों पर किया गया था। ये वे बच्चे थे जिन्हें मानवमिति एवं नैदानिक परीक्षा के लिए चयनित किया गया था। इस प्रकार मिड-डे मील कार्यक्रम के प्रभावशीलता को निम्नलिखित प्रकार से समझा सकते हैं-

1. नामांकन स्थिति:- छात्रों की कुल संख्या (6-11 वर्ष) जो स्कूल नामांकन के योग्य थे। उनकी कुल जनसंख्या की 14% थी। अतः एमडीएम कार्यक्रम के साथ स्कूलों में दाखिला संख्या 68% तक हो गई।

2. उपस्थिति:– मिड-डे मील के प्रभाव से छात्रों की उपस्थिति में बढ़ोतरी हो गई।

3. प्रतिधारण दर:– एमडीएम स्कूलों में कक्षा एक में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या (80.2%) किया जो गैर एमडीएम स्कूलों से बेहतर थी। इन छात्रों को अगले 4 वर्षों के लिए दाखिला एवं पदोन्नति दी गई। मिड-डे मील कार्यक्रम से लड़कियों की प्रतिधारण को कम किया है। मिड-डे मील ने प्रतिधारण दर को उचित तरीके से कम किया है।

4. ड्रॉप आउट:- मिड-डे मील ने विद्यालय में छात्रों की संख्या को बढ़ाने में सहयोग किया जो छात्र बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं। उनके लिए ये कार्यक्रम आकर्षण का केन्द्र है जिससे वे विद्यालय में रुकने के लिए बाध्य हो गए।

5. शैक्षिक प्रदर्शन:- पूर्ववर्ती वार्षिक परीक्षा में प्रत्येक बच्चे द्वारा प्राप्त अंक स्कूल के रिकॉर्ड से एकत्र किए गए थे जो सामान्य तौर पर विश्लेषण के उद्देश्य के लिए स्कूलों में अपनाए गए ग्रेड के अनुसार वितरित किए गए थे। मिड-डे मील स्कूलों में ग्रेड A वाले छात्रों का अनुपात बढ़ गया है।

मिड-डे मील के प्रभाव से छात्रों की स्कूल गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी देखी जा रही है। कुल दाखिला दर को प्रोत्साहन मिला है। शैक्षिक सुविधाओं के साथ-साथ अच्छे स्वास्थ्य के अवसर भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। विद्यालय में बालिकाओं की संख्या में वृद्धि तथा छात्रों के पोषण स्तर को बढ़ाने के लिए मिड-डे मील उत्तरदायी है। मिड-डे मील में उपलब्ध पोषक भोजन की गुणवत्ता में भी सुधार किया जा रहा है। प्रत्येक राज्य के मिड-डे मील मानक वहाँ की आवश्यकता के अनुसार ही निर्धारित किए गए हैं।

मिड-डे मील योजना का मूल्यांकन (Evaluation of Mid-Day Meal Scheme)

1. मध्याह्न भोजन योजना के गुण (Merits of Mid Day Meal Scheme)

  1. इस योजना के लागू करने के बाद से प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों में प्रवेश लेने वाले छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई है।
  2. पिछड़ी जाति, अनुसूचित जाति एवं जनजाति व मुस्लिम छात्रों का नामांकन बढ़ा है।
  3. इस योजना के बाद से हो बीच में स्कूल छोड़ जाने वाले छात्रों की संख्या में कमी आई है अर्थात् अपव्यय की समस्या का समाधान हुआ है।
  4. इस योजना के कारण गरीब परिवारों के बच्चे जिन्हें पौष्टिक आहार नहीं मिलता था उन्हें पौष्टिक आहार मिलने लगा है जिससे उनका पोषण हुआ है। छात्रों के एक साथ बैठकर खाने से जातिगत भेदभाव में कमी आई है।

इस योजना को शिक्षा सत्र 2014-15 तक देश के साढ़े ग्यारह लाख प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों में लागू किया जा चुका है और इसमें साढ़े दस करोड़ बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं।

2. मध्याह्न भोजन योजना के दोष (Demerits of Mid Day Meal Scheme)

  1. सरकार द्वारा इस योजना को लागू करने के लिए उचित ढंग से कदम नहीं उठाए गए।
  2. जो धनराशि सरकार से इस योजना के लिए स्कूलों को प्रदान की जा रही है उसका सही प्रयोग नहीं किया जा रहा है।
  3. विद्यालय में अध्यापकों पर भोजन की देख-रेख की जिम्मेदारी होने के कारण उनका शिक्षा के विषय से भ्रमित हो जाना।
  4. इस योजना के प्रति स्कूल गम्भीर नहीं है जिससे यह योजना ठीक प्रकार से चल नहीं पा रही है।
  5. भोजन सामग्री में आवश्यक पोषक तत्त्व वाला भोजन न होना।
  6. समय पर विद्यालयों में भोजन सामग्री का न पहुँचना।
  7. कोई भी योजना छात्रों के जीवन से खिलवाड़ करने की इजाजत नहीं देती है, इस योजना के प्रति गम्भीरता न होने से यह बालकों के लिए लाभ से ज्यादा कष्टदायी सिद्ध हो रही है।

इस योजना में अच्छाइयाँ तो है परन्तु साथ में कुछ बुराइयाँ भी है। इस योजना को लागू हुए बहुत समय हो गया है परन्तु इससे जो लाभ होने चाहिए थे, उनका प्रतिशत कम है। यदि इस योजना से जुड़े व्यक्ति अपना कार्य निष्ठा व ईमानदारी से करे तो इस योजना से बहुत से लाभ हो सकते हैं। अपव्यय की समस्या का समाधान तथा सार्वभौमीकरण के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। इस योजना में हो रही लापरवाही की जाँच कराकर दोषी व्यक्तियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए तब ही यह योजना अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर पाएगी।

Read also

Post a Comment

© Samar Education All rights reserved. Distributed by SamarEducation