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पांडवों के परिजनो का अंतिम संस्कार | Pnadavon ke Parijano ka Antim Sanskaar | Mahbharat

श्रीकृष्ण के साथ गांधारी और कुंती से आशीर्वाद लेकर कुरुक्षेत्र में मारे गए अपने बंधु-बांधवों की आत्मा की शांति के लिए जलांजलि देने गांगा किनारे पहुंचे

अंतिम संस्कार

महाराज धृतराष्ट्र के दुख की सीमा अनंत थी। उनके सौ-के-सौ पुत्र इस महायुद्ध में मारे गए थे। महात्मा विदुर ने धृतराष्ट्र को सांत्वना देने की कोशिश की, परंतु वे उनके दुख को कम नहीं कर सके।

Pnadavon ke Parijano ka Antim Sanskaar | Mahbharat

धर्मराज युधिष्ठिर अपने भाइयों और सखा कृष्ण के साथ रोती-बिलखती स्त्रियों के समूह को पार करते हुए शोक में डूबे हुए धृतराष्ट्र के पास आए। युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र के चरण स्पर्श किए। धृतराष्ट्र ने भीम को गले लगाने के लिए अपने पास बुलाया। पुत्र-शोक में धृतराष्ट्र का क्रोध अभी कम नहीं हुआ था। श्रीकृष्ण इसे समझ रहे थे। उन्होंने भीम को न भेजकर उसके स्थान पर लोहे की उसकी एक प्रतिमूर्ति धृतराष्ट्र के आगे लाकर रखवा दी।

धृतराष्ट्र ने मूर्ति को आलिंगनबद्ध करके इतने जोर से दबाया कि मूर्ति खण्ड-खण्ड हो गई।

मूर्ति के खंडित होने पर धृतराष्ट्र को ख्याल आया कि उन्होंने यह क्या कर डाला। वे दुखी होकर विलाप करने लगे— “हाय! क्रोध में आकर मैंने मूर्खतावश यह क्या कर डाला। भीम की हत्या कर दी।"

“राजन! विलाप न करें।" श्रीकृष्ण ने कहा– “मैं जानता था कि क्रोध में आकर आप ऐसा कर सकते हैं, इसलिए इस अनर्थ को टालने के लिए मैंने पहले से ही प्रबंध कर रखा था। आपने भीम को नहीं, बल्कि लोहे की उसकी प्रतिमूर्ति को नष्ट किया है।”

यह सुनकर धृतराष्ट्र ने रोना बंद कर दिया और सभी पाण्डु पुत्रों को आशीर्वाद देकर विदा किया। पांचों भाई, श्रीकृष्ण के साथ गांधारी और कुंती से आशीर्वाद लेकर कुरुक्षेत्र में मारे गए अपने बंधु-बांधवों की आत्मा की शांति के लिए जलांजलि देने गांगा किनारे पहुंचे और सभी का विधिवत् अंतिम संस्कार किया।

युधिष्ठिर के मन में यह बात घर कर गई थी कि उन्होंने अपने बंधु-बांधवों को मारकर राज्य पाया है। इससे उनको भारी व्यथा हो रही थी, परंतु सभी के समझाने-बुझाने पर उनका हृदय शांत हुआ। उन्हें हस्तिनापुर का राज्य शासन संभालने के लिए तैयार कर लिया गया। युधिष्ठिर भारी मन से तैयार हो गए।

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