Cooperative Learning in hindi

सन् 1960 के मध्य तक सहकारी अधिगम अधिकतम उपेक्षित ही रहा। प्राथमिक से उच्च स्तर तक की शिक्षा व्यवस्था प्रतियोगात्मक (Competitive) एवं वैयक्तिकता

सहकारी अधिगम (Cooperative Learning)

मानव समाज यदि पुरातनकाल से स्वयं को सुरक्षित रख पाया है तो वह 'सहयोग पूर्ण' व्यवहार के कारण ही है। परन्तु आज की प्रचलित शिक्षा व्यवस्थाओं में हम छात्र-छात्राओं के मध्य सहयोगपूर्ण व्यवहार एवं सहकारी क्रियाओं को नजरअंदाज करते हुए शिक्षक छात्र अन्तक्रिया पर ही बल देते हैं। सन् 1960 के मध्य तक सहकारी अधिगम अधिकतम उपेक्षित ही रहा। प्राथमिक से उच्च स्तर तक की शिक्षा व्यवस्था प्रतियोगात्मक (Competitive) एवं वैयक्तिकता (Individuality) पर आधारित थी। डार्विन के सामाजिक दर्शन का शिक्षा पर भी प्रभाव पड़ा जिसके अनुसार Survival of fittest एवं Dog eat dog world ने शिक्षा को प्रतियोगात्मक बना दिया। वहीं दूसरी ओर बी०एफ० स्किनर (B.F. Skinner) के अभिक्रमित अनुदेशन (Programmed Instruction) पर किए गये कार्यो ने वैयक्तिक अधिगम को अधिक महत्वपूर्ण बना दिया।

Cooperative Learning in hindi

आज आवश्यकता इस बात की है कि शिक्षा न तो छात्रों को गलाकाट प्रतियोगिता के लिए तैयार करें और न ही अकेले अध्ययन कर स्वयं का ही लाभ करने वाला बनाये। मानव समाजों में बढ़ते अलगाव को समाप्त करने के लिए आज शिक्षा में सहकारी अधिगम को सभी स्तरों पर अपनाया जा रहा है, जिससे एक सुदृढ़ और सहिष्णु मानव समाज की स्थापना हो सके। सहकारिता का अर्थ है समान लक्ष्य की प्राप्ति हेतु एक साथ कार्य करना। अत: अधिगम का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य 'सहकारिता' ही होना चाहिए।

सहकारी अधिगम छात्रों को छोटे समूहों का अनुदेशन में प्रयोग है जिससे सभी छात्र एक साथ कार्य कर सकें एवं स्वयं के तथा एक दूसरे के अधिगम को अधिकतम बढ़ा सकें। सहकारी अधिगम न तो प्रतियोगात्मक होता है और न ही वैयक्तिक। इसमें समूह के हित के साथ स्वयं का हित जुड़ा होता है। यदि एक का हित समूह का अहित करता है तो वह उसे त्याग देता है।

1900 के आरम्भ में गेस्टाल्ट स्कूल ऑफ साइकोलॉजी के एक मनोवैज्ञानिक (Kurt Koffka) कर्ट कोफ्का ने कहा कि समूह में अन्तर्निभरता की सीमा भिन्न-भिन्न हो सकती है। उन्हीं के साथी कर्ट लिविन (Kurt Lewin) ने 1920 व 1930 में कर्ट कोका के विचार को स्पष्ट करते हुए कहा कि "किसी समूह की शक्ति उसके सदस्यों की आत्म-निर्भरता है, जो एक उभयनिष्ठ लक्ष्य के कारण होती है। इसी के परिणाम स्वरूप समूह एक गतिमान सम्पूर्ण की भांति कार्य करता है।"

सहकारी अधिगम के प्रकार (Types of Cooperative Learning)

1. औपचारिक सहकारी अधिगम (Formal Cooperative Learning)

जानसन, जानसन एवं होलबैक के अनुसार, "औपचारिक सहकारी अधिगम वह है जिसमें छात्र एक उभयनिष्ठ अधिगम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सप्ताह भर एक कालांश में मिलकर कार्य करते हैं व दत्तकार्य को सहयोग के साथ पूर्ण करते हैं।" निम्नलिखित कार्य करने की औपचारिक सहकारी अधिगम के क्रियान्वयन के लिए आवश्यकता होती है-

(1) छात्रों के मध्य सहयोग व अधिगम का निरीक्षण:- शिक्षक द्वारा छात्रों के मध्य सहयोग व अन्तःक्रिया पर विशेष ध्यान देता है। कार्य कौशल व दत्तकार्य के उद्देश्य की प्राप्ति में सहयोग करता है। छात्रों के परस्पर सम्बन्ध के आँकड़े एकत्र करता है जिसका प्रयोग प्रक्रियाओं में दिशा निर्देश देने में करता है।

(2) अनुदेशनपूर्व निर्देशों का निर्माण:- इसके अन्तर्गत शिक्षक शैक्षिक व सामाजिक लक्ष्य निर्धारित करता है, समूह का आकार निश्चित करता है, छात्रों को सहकारी अधिगम हेतु कार्य सौंपने की विधि का चयन करता है, समूह में छात्रों की भूमिकाएँ तय करता है, उचित सुविधायुक्त कक्ष की व्यवस्था करता है, व दत्तकार्य पूर्ण करने के लिए आवश्यक सामग्री छात्रों को उपलब्ध कराता है।

(3) छात्रों के अधिगम का आकलन एवं पृष्ठपोषण:- शिक्षक पाठ का समापन करता है, निष्पत्तियों का गुणात्मक एवं मात्रात्मक आकलन करता है, छात्रों को विचार विमर्श करने के लिए प्रेरित करता है व उनके विचारों पर ध्यान देता है, छात्रों को सुधार हेतु योजना बनाने में मदद करता है, सफलता की सामूहिक खुशी मनाने हेतु प्रेरित करता है।

(4) सहकारी कार्य की व्यवस्था:- शिक्षक छात्रों को दत्तकार्य समझाता है, उसकी सफलता की कसौटी की व्याख्या करता है, सकारात्मक आत्म निर्भरता की संरचना करता है, वैयक्तिक उत्तरदायित्व की संरचना करता है, आपेक्षित सामाजिक कौशलपूर्ण व्यवहार की व्याख्या करता है, प्रतियोगिता समाप्त कर सहयोग को बढ़ाता है एवं दत्तकार्य करने की विधियों को व्याख्या करता है।

2. अनौपचारिक सहकारी अधिगम (Informal Cooperative Learning)

जानसन, जानसन व हालनेक के अनुसार, "छात्रों के अस्थाई छोटे समूहों में कुछ मिनट या एक कालांश में एक समान उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु साथ-साथ करने की विधि अनौपचारिक सहकारी अधिगम कहलाता है।"

अधिगम की इस प्रक्रिया का प्रयोग व्याख्यान, प्रदर्शन या फिल्म के मध्य में कुछ मिनट के लिए किया जा सकता है। एक दत्तकार्य व उसके उत्पाद के रूप में कुछ विशिष्ट कार्य सम्पादन (जैसे लिखित उत्तर, रिपोर्ट आदि) इसके मुख्य पक्ष होते हैं। इसके क्रियान्वयन हेतु निम्नलिखित पद अपनाए जाते हैं-

(1) पाठ समापन केन्द्रित विचार-विमर्श:- पाठ समाप्त करने पर शिक्षक पुनः छात्रों को विचार विमर्श करने को कहता है जिसमें छात्र सम्पूर्ण पाठ का सारांश करते हुए अपने अधिगम को स्पष्ट करते हैं व गृहकार्य की विधि भी स्पष्ट करते हैं।

(2) उद्देश्य केन्द्रित विचार-विमर्श:- शिक्षक जो दत्तकार्य देते हैं उसके उद्देश्य पर विचार-विमर्श करके छात्र एक मत हो जाते हैं।

(3) मध्यवर्ती विचार विमर्श:- शिक्षक अपने व्याख्यान को 10-15 मिनट के भागों में विभक्त कर लेता है व प्रत्येक भाग के मध्य में छात्रों को साथ बैठे साथी के साथ 2-3 मिनट विचार-विमर्श का समय देता है, जिससे छात्र मिलकर दत्तकार्य में दिए गये प्रश्न के उत्तर पर विचार-विमर्श करते हैं व एकीकृत संश्लेषित उत्तर का सृजन करते हैं।

सहकारी अधिगम के आधारभूत तत्व

जानसन, एफ० जानसन के अनुसार सभी समूह सहकारी नहीं होते हैं। समूह में कार्य करने की पूर्ण क्षमता के विकास के लिए सहकारी समूह बनाते समय पाँच आधारभूत तत्वों का होना आवश्यक है। ये तत्व निम्नवत् हैं—

1. प्रोत्साहक अन्तःक्रिया:- एक दूसरे से अन्तः क्रिया हेतु समूह के सदस्य प्रोत्साहित करते हैं व एक दूसरे के अधिगम की सराहना करते हैं। इससे समूह गत्यात्मक बनता है।

2. सामूहिक प्रसंस्करण:- समूह के सदस्य जब यह विचार करते हैं कि उनके उद्देश्य कितने प्रभावी ढंग से प्राप्त हुए है तो समूह में एक कार्यात्मक सम्बन्ध स्थापित होता है जो साथ-साथ क्रिया करने की प्रेरणा देता है यही 'समूह प्रसंस्करण' है।

3. सकारात्मक आत्मनिर्भरता:- छात्र स्वयं के साथ समूह की सफलता के लिए प्रतिबद्ध रहे सकारात्मक आत्मनिर्भरता सहकारी अधिगम की सफलता को आत्मा व परम आवश्यक तत्व हैं।

4. वैयक्तिक व सामूहिक उत्तरदायित्व:- सभी अपने हिस्से के कार्य के लिए उत्तरदायी हो जिससे समूह सुदृढ़ बन सके।

5. सामूहिक कौशल:- समूह में टीम भावना का विकास करने पर बल देना चाहिए।

सहकारी अधिगम के लाभ (Advantages of Cooperative Learning)

  1. यह विधि छात्रों को गलाकाट प्रतियोगिता के जाल से दूर रखते हुए सीखने की उत्तम परिस्थितियाँ एवं अवसर प्रदान करती है।
  2. परम्परागत अधिगम की तुलना में यह अधिगम मात्रात्मक व गुणात्मक दोनो दृष्टि से उत्तम होता है।
  3. अकेले की तुलना में समूह की सामर्थ्य अधिक होती है। यह विधि सिनजी (Synergy) के विकास पर बल देती है।
  4. सुदढ़ मानव समाज की स्थापना में यह उपागम सहायक है।
  5. शिक्षक अपने सामान्य व्याख्यात के मध्य में भी इस विधि का प्रयोग कर सकते हैं।
  6. समूह में कार्य करना छात्रों को निरन्तर स्फूर्तिमय एवं अभिप्रेरित रखता है।

सहकारी अधिगम की सीमाएँ (Limitations of Cooperative Learning)

  1. शिक्षक यदि प्रशिक्षित, अनुभवी व निरन्तर जागरूक नहीं हो तो विधि की सफलता सम्भव नहीं है।
  2. समूह में आत्म-निर्भरता सदैव सकारात्मक प्रभाव रखे यह आवश्यक नहीं है।
  3. छात्रों के समूह बनाना आसान है, परन्तु उन्हें सहकारी व्यवहार सिखाना कठिन है।
  4. छात्रों के मध्य वैयक्तिक एवं प्रतियोगी भाव बना रहता है जो सहकारी अधिगम में बाधा पहुंचाता है।
  5. छात्रों के मध्य आपसी समझ बनाना कठिन कार्य है।

सहकारी अधिगम के लिए सुझाव (Suggestion for Cooperative Learning)

अपनी सीमाओं के बावजूद यह अत्यन्त सफल विधि है। आवश्यकता इस बात की है कि शिक्षक को प्रशिक्षित किया जाय एवं सहकारी अधिगम के पाँच आधारभूत तत्वों से अवगत कराया जाय। तभी वह समूह में परस्पर निर्भरता कायम रखते हुए उसे प्रगतिशील एवं गत्यात्मक रख सकता है।

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