Discussion Method of Teaching in hindi

'वाद-विवाद प्रविधि' सामाजिक अध्ययन पढ़ाने की एक महत्वपूर्ण प्रविधि है। यह ऐसी प्रविधि है, जिसमें शिक्षक और छात्र परस्पर विचार-विमर्श तथा तर्क-वितर्क

वाद-विवाद प्रविधि (Discussion Method)

'वाद-विवाद प्रविधि' सामाजिक अध्ययन पढ़ाने की एक महत्वपूर्ण प्रविधि है। यह ऐसी प्रविधि है, जिसमें शिक्षक और छात्र परस्पर विचार-विमर्श तथा तर्क-वितर्क से सामाजिक अध्ययन के विभिन्न प्रकरणों, समस्याओं तथा प्रश्नों का स्पष्टीकरण प्राप्त करते हैं, शंकाओं का समाधान करते हैं और आवश्यक निर्णयों पर पहुंचते हैं। यह सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया है। सामाजिक अध्ययन-शिक्षण में नये कार्य की योजना बनानी हो, भावी कार्य के लिये कोई निर्णय लेने हों; सामूहिक रूप से कोई सूचना देनी हो; किसी विषय को स्पष्ट करना हो; किसी विषय से सम्बन्धित विभिन्न विचारों का विश्लेषण करना हो; विद्यार्थियों की रुचियों को विकसित करना हो— आदि विभिन्न कार्यों में वाद-विवाद प्रविधि का प्रयोग सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

Discussion Method of Teaching in hindi

वाद-विवाद की तैयारी (Preparation of Discussion Method)

किसी भी प्रविधि की सफलता के लिये योजना बना लेना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि बिना पूर्व तैयारी के यदि किसी कार्य को किया जाये तो सफलता प्राप्त नहीं हो सकती। इसलिये कक्षा में वाद-विवाद प्रविधि का प्रयोग करने से पूर्व सुनियोजित व्यवस्था कर लेनी चाहिये, जैसे-

  1. अध्यापक को कक्षा का वातावरण ऐसा बना लेना चाहिये, जिसमें सभी छात्र स्वतन्त्रतापूर्वक अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकें।
  2. छात्रों के बैठने की उचित व्यवस्था करनी चाहिये। उचित व्यवस्था वही है, जिसमें सभी छात्र एक-दूसरे को देख सकें और अध्यापक भी सभी छात्रों को देख सकें।
  3. वाद-विवाद की विषय-वस्तु छात्रों को स्पष्ट होनी चाहिये।
  4. वाद-विवाद की तैयारी करने के लिये छात्रों को पहले ही बता देना चाहिये।

वाद-विवाद के प्रमुख अंग (Key Parts of Discussion Method)

वाद-विवाद के पाच प्रमुख अंग निम्नलिखित रूप में दिये गये हैं-

(1) नेता, (2) समूह (3) समस्या (4) सामग्री (5) मूल्यांकन

(1) नेता:- कक्षा के किसी भी वाद-विवाद का नेता अध्यापक होता है। वाद-विवाद कराने से पहले नेता के रूप में अध्यापक को काफी तैयारी करके कक्षा में जाना चाहिये। उदाहरण के लिये, विषय का अध्ययन चयन करना है तथा उसकी योजना कैसे बनानी है, इस बात का उसे पहले निर्णय लेना होगा। प्रायः यह देखा गया है कि बहुत से अध्यापक वाद विवाद में आप ही लगे रहते हैं और सारे दृश्य-पटल पर छाने का प्रयत्न करते हैं। यह वाद-विवाद की प्रधानता के विरुद्ध है। उसे सभी छात्रों को वाद-विवाद में लगा लेने के लिये प्रोत्साहित करना होगा तथा जब भी कोई छात्र अपने विचार अभिव्यक्त करने में कठिनाई अनुभव करें तो उसका उचित मार्गदर्शन करना होगा।

(2) समूह:- विवाद में छात्रों का एक समूह होता है। समूह में विभिन्न स्वभाव तथा विचारों वाले छात्र होते हैं, जो बुद्धि, दिलचस्पी, स्वभाव तथा विचारों में एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। अध्यापक का कर्त्तव्य है कि प्रत्येक छात्र को वाद-विवाद में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करें। यह देखा गया है कि पहले तो शर्मीले या मन्द-बुद्धि छात्र बोलने से ही घबराते हैं और यदि अध्यापक के प्रोत्साहन देने पर वे बोलने का यत्न भी करते हैं तो तीव्रगामी उनका मजाक उड़ाते हैं। अध्यापक को ऐसी स्थिति नहीं आने देनी चाहिये। उसे मन्द-बुद्धि छात्रों के विचारों को भी ध्यान से सुनकर प्रशंसा करनी चाहिये।

(3) समस्या:- वाद-विवाद का विषय ऐसा होना चाहिये, जिसे छात्र अपना समझें। यह विषय उनकी आयु, बुद्धि और अवस्था के अनुरूप हो। अध्यापक को यह भी चाहिये कि समस्या का चुनाव करते समय छात्रों का सहयोग प्राप्त करें।

(4) सामग्री:- सामग्री का अर्थ है, अध्ययन के लिये आवश्यक विषय-वस्तु । इसके अन्तर्गत पुस्तक, पत्रिकाएँ, समाचार पत्र, चित्र, मानचित्र तथा अन्य प्रकार की सामग्री का प्रयोग भी अवश्य किया जाना चाहिये। अध्यापक को छात्रों तक इस सामग्री को जुटाने की जिम्मेदारी लेनी होगी।

(5) मूल्यांकन:- वाद-विवाद का मुख्य उद्देश्य छात्रों में वांछनीय परिवर्तन लाना है। यदि वाद-विवाद कोई परिवर्तन नहीं लाता है तो निरर्थक माना जायेगा और यदि परिवर्तन लाता है तो -प्रश्न उठता है कि छात्रों में कितना परिवर्तन हुआ। उस वांछित परिवर्तन का मूल्यांकन करना आवश्यक हो जाता है। वांछित परिवर्तनों का मूल्यांकन छात्र स्वयं तथा अध्यापक किसी के भी द्वारा किया जा सकता है। मूल्यांकन के लिये हम विभिन्न प्रकार की प्रश्नावलियाँ या साक्षात्कार का प्रयोग कर सकते हैं और ज्ञात कर सकते हैं कि विभिन्न क्षेत्रों में क्या परिवर्तन हुए। उदाहरण के लिये, कितना बौद्धिक विकास हुआ। विषय-वस्तु के ज्ञान में कितनी वृद्धि हुई है? कितनो बौद्धिक क्षमताए बढ़ी, अभियोग्यता तथा मूल्यों में क्या परिवर्तन हुए, रुचियों में क्या परिवर्तन हुए? आदि।

वाद-विवाद का संचालन (Conduction of Discussion Method)

वाद-विवाद का प्रारम्भ छात्र तथा अध्यापक दोनों में से कोई भी कर सकता है। वाद-विवाद का प्रारम्भ छात्र या अध्यापक कोई कहानी कहकर, कोई समस्या खड़ी करके, कोई वस्तु दिखाकर, कोई चित्र दिखाकर या किसी घटना का वर्णन करके कर सकते हैं। वाद-विवाद किस प्रकार प्रारम्भ किया जाये, यह वाद-विवाद के उद्देश्यों पर निर्भर करता है। वाद-विवाद प्रारम्भ हो जाने पर उसे अपने उद्देश्यों तक पहुंचने की आवश्यकता होती है। इसके लिये कुशल संचालन आवश्यक है। संचालन इस प्रकार किया जाये कि वाद-विवाद में भाग लेने वाले सभी छात्र अपने विचारों को सरलता, स्वतन्त्रता, इच्छानुसार एवं सफलतापूर्वक व्यक्त कर सकें।

संचालक को वाद-विवाद के द्वारा पूर्व निर्धारित उद्देश्यों का सदैव ध्यान रखना चाहिये। बाद विवाद को उद्देश्यो की ओर ले जाने के लिये बीच-बीच में प्रश्नों का सहारा लिया जा सकता है। किन्ही विशेष तथ्या की व्याख्या भी की जा सकती है, कुछ बिन्दुओं का विश्लेषण भी किया जा सकता है और अन्त में सम्पूर्ण वाद-विवाद का सारांश भी निकाला जा सकता है। इस प्रकार वाद-विवाद के संचालन में निम्नलिखित चार बिन्दु सम्मिलित किये जाते हैं—

(1) प्रारम्भ, (2) विश्लेषण, (3) व्याख्या, (4) सारांश

वाद-विवाद के संचालन की व्यवस्था का जहाँ तक प्रश्न है, वाद-विवाद हेतु कक्षा को या तो विभिन्न टुकड़ों में विभाजित किया जा सकता है या सम्पूर्ण कक्षा एक साथ ही वाद-विवाद कर सकती है। यदि कक्षा-टुकड़ियों में विभाजित की जाती है, तो प्रत्येक टुकड़ी में चार-पाँच से अधिक छात्र नहीं होने चाहिये। प्रत्येक टुकड़ी दी हुई समस्या के सम्बन्ध में परस्पर वाद-विवाद कर एक निष्कर्ष पर पहुंचेगी और अन्त में अपनी रिपोर्ट समस्त कक्षा के सम्मुख प्रस्तुत करेगी। इस प्रकार सभी टुकड़ियाँ अपनी-अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगी, फिर सम्पूर्ण कक्षा में इन समस्त रिपोर्टों पर वाद-विवाद किया जायेगा।

वाद-विवाद प्रविधि के गुण (Properties of Discussion Method)

(1) प्रजातन्त्र में वाद:- विवाद का बहुत महत्त्व है- आज के बच्चे कल के प्रौढ़ नागरिक चनेंगे, जिन्हें अपना वोट देकर सरकार का निर्माण करना है। विधान सभा और लोक सभा में अपने प्रतिनिधि भेजने हैं। जहा वे वाद-विवाद करके समस्याओं का हल ढूंढ़ेगे। कक्षा में वाद-विवाद पद्धति उनके लिये प्रशिक्षण का कार्य करेंगी।

(2) वाद-विवाद प्रविधि मनोवैज्ञानिक है क्योंकि इसमें छात्र सक्रिय होते हैं तथा पाठ के विकास में पूर्ण योगदान देते हैं।

(3) सही प्रकार के ज्ञान की प्राप्ति:- प्रायः देखा गया है कि छात्र या तो पाठ्य पुस्तक में अध्यापक के भाषण को रट लेते हैं, लेकिन वाद-विवाद पद्धति में रटने का कोई स्थान नहीं है। जो कुछ भी ज्ञान छात्रों को प्राप्त होता है, वह उसकी समझ और मानसिक क्रियाओं द्वारा प्राप्त होता है। बिना सोचे-समझे वाद-विवाद में भाग लेना असम्भव है, क्योंकि एक वाद-विवाद में दोनों पक्ष अनेक विचार देते हैं, जिनको सुनना पड़ता है और उनका उत्तर सोचना पड़ता है।

(4) वाद-विवाद पद्धति छात्रों को विषय-वस्तु का चयन एवं संगठित करना सिखाती है।

(5) सामूहिक निर्णय:- जब भी कक्षा-कक्ष में अध्यापक किसी वाद-विवाद का आयोजन करता है तो उसका सदा यही प्रयास होता है कि समस्या का एक सामूहिक निर्णय निकल आये। इससे सहमति का मार्ग सरल होता है।

(6) वाद-विवाद प्रविधि स्वतन्त्र अध्ययन पर जोर देती है- छात्र द्वारा पकी पकायी सामग्री रटने का इसमें कोई स्थान नहीं है।

(7) यह प्रविधि छात्रों में सहयोगपूर्ण प्रतियोगिता का विकास करती है। उनमें सहिष्णुता की भावना उत्पन्न करती है, क्योंकि जब किसी समस्या का वाद-विवाद के लिये प्रस्तुतीकरण किया जाता है तो विचारों में मतभेद होना स्वाभाविक हैं, किन्तु विचारों में मतभेद होने का ये अर्थ नहीं है कि छात्र एक-दूसरे के शत्रु बन जाए। उनमें घृणा की भावना उत्पन्न हो। वाद-विवाद में भाग लेने वाले को विरोधी मत के भी विचार धैर्यपूर्वक सुनने पड़ते हैं। कुछ विचार उनको बिल्कुल भी पसन्द नहीं, उनको भी सहन करना पड़ता है।

(8) यह प्रविधि छात्रों में तर्क शक्ति का विकास करती है।

वाद-विवाद प्रविधि के दोष (Defects of Discussion Method)

  1. सार्थक वाद-विवाद तो बहुत अच्छा है, परन्तु प्रायः यह देखा गया है कि वाद-विवाद निरर्थक बन जाता है और निरर्थक वाद-विवाद केवल समय को ही नष्ट करता है। कई बार तो वाद-विवाद में कुछ छात्र अपने महत्त्व को दिखाने के लिये निरर्थक विचार देना आरम्भ कर देते है।
  2. कुछ लोगों का विचार है कि केवल वाद-विवाद विधि से सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का शिक्षण प्रदान नहीं किया जा सकता। कुछ विषय-वस्तु ऐसी है, जिनमें वाद-विवाद करने का अधिक अवसर नहीं है। इसके अतिरिक्त भाषण विधि या पाठ्य पुस्तक विधि की तुलना में एक पाठ को पूरा करने में वाद-विवाद प्रविधि बहुत समय लेती है।
  3. ऐसा भी देखा गया है कि वाद-विवाद में सभी छात्र भाग नहीं लेते। कुछ ही छात्र ऐसे होते हैं, जो वाद-विवाद में प्रमुख रूप से भाग लेते हैं तथा अन्य छात्रों को अवसर प्राप्त नहीं होते देते। इसलिये कुछ छात्र जो शर्माले होते हैं, वे इस विधि से विशेष लाभ नहीं उठा पाते।
  4. वाद-विवाद का कुशलतापूर्वक संचालन करने के लिये दक्ष अध्यापकों की आवश्यकता है. परन्तु ऐसे अध्यापक बहुत कम मिलते हैं।

वाद-विवाद प्रविधि को प्रभावशाली बनाने के लिये कुछ सुझाव (Some Tips to Make the Discussion Method Effective)

  1. वाद-विवाद आरम्भ होने से पूर्व ही सभी आवश्यक तैयारियां पूरी कर लेनी चाहिये। अध्यापक को यह देख लेना चाहिये कि छात्रों ने विषय-वस्तु से सम्बन्धित पत्रिकाएँ तथा पुस्तिकाओं को पढ़ लिया है।
  2. समस्या की उचित सीमाएँ बाँध देनी चाहिए ताकि छात्र केन्द्रबिन्दु से इधर-उधर न भटके। अध्यापक को यह भी चाहिये कि निरर्थक एवं असम्बन्धित वाद-विवाद को कक्षा में न चलने दें।
  3. वाद-विवाद के लिये समस्या का चुनाव कुछ इस प्रकार से किया जाये कि एक तो ये समस्या उनकी आयु और अवस्था के अनुकूल हो और इसके महत्त्व को वे शीघ्रता से अनुभव करें।
  4. वाद-विवाद विधि तभी सफल हो सकती है, यदि सभी छात्र भाग लेंगे। इसलिये शिक्षक को शर्माले छात्रों को भी भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
  5. वाद-विवाद का मूल्यांकन भी बिना किसी पक्षपात के करना चाहिये।

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