सामाजिक परिवर्तन का अर्थ, परिभाषा एवं बाधक तत्व | Meaning, Definition and Constraints of Social Change in hindi

सामाजिक परिवर्तन का अर्थ एवं परिभाषा, सामाजिक परिवर्तन के घटक, शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक परिवर्तन में बाधक तत्व, रूढ़िवादी राज्य, संस्कृति

▶सामाजिक परिवर्तन का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Social Change)

मानव का जीवन एवं उसकी परिस्थितियां सदैव एक से नहीं रहती हैं. अपितु इसके विचार, आदर्श, मूल्य एवं भावना में किसी प्रकार का परिवर्तन अवश्य होता है. जब मानव अपने को परिवर्तित करता है तो वह समाज की एक इकाई होने के कारण समाज में भी परिवर्तन कर देता है. यद्यपि किसी समाज में परिवर्तन तीव्रता से होता है तो किसी में मंद गति से होता है. इस प्रक्रिया को समाजशास्त्रीय भाषा में सामाजिक परिवर्तन कहते हैं.

शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन (Education and Social Change)

परिवर्तन प्रकृति का नियम है. आज वैज्ञानिक आविष्कारों, नए-नए मशीनों के उपयोग यातायात और दूर संचार के साधनों के कारण प्राचीन एवं मध्यकालीन समाज के अपेक्षा आधुनिक समाज में प्रतिदिन क्रांतिकारी परिवर्तन हो रहे हैं. इन परिवर्तनों को ही सामाजिक परिवर्तन की संज्ञा दी जा रही है. आजकल संपूर्ण विश्व में सामाजिक परिवर्तन तीव्र गति से हो रहा है. इसकी कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

(1). गिलिन और गिलिन (Gillin and Gillin) के शब्दों में- "सामाजिक परिवर्तन को हम जीवन की स्वीकृत विधियों में होने वाले परिवर्तन के रूप में परिभाषित कर सकते हैं."

(2). एम0 डी0 जेनसन (M.D. jenson) के अनुसार- "सामाजिक परिवर्तन को व्यक्तियों की क्रियाओं और विचारों में होने वाले परिवर्तनों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है."

(3). मैकाइवर और पेज (MacIver and Page) के अनुसार, "समाजशास्त्र के रूप में हमारा प्रत्यक्ष संबंध केवल सामाजिक संबंधों से होता है. इस दृष्टि से हम केवल सामाजिक संबंधों में होने वाले परिवर्तन को ही सामाजिक परिवर्तन मानेंगे."

▶सामाजिक परिवर्तन के घटक (Factor Affecting Social Change)

प्रत्येक समाज में सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया सदैव चलती रहती है. किसी समाज में सामाजिक परिवर्तन किस गति और किस दिशा में होता है, यह अनेक तत्वों (कारकों, घटकों) पर निर्भर करता है. इन घटकों को समाजशास्त्रियों ने दो वर्गों में विभाजित किया है- प्राकृतिक घटक और सांस्कृतिक घटक. प्राकृतिक घटकों में इन्होंने भौगोलिक तथा जैविक घटकों को रखा है और सांस्कृतिक घटकों में अभौतिक एवं भौतिक संस्कृति को. वर्तमान में सामाजिक परिवर्तन में शासनतंत्र, अर्थतंत्र और विज्ञान की भी भूमिका होती है. यहाँ सामाजिक परिवर्तन के इन सब घटकों का वर्णन संक्षेप में प्रस्तुत है-

(1). भौगोलिक स्थिति- प्रत्येक समाज की अपनी एक भौगोलिक सीमा होती है इसमें स्थान विशेष की भूमि, जंगल, जल-वायु, जल के स्रोत खनिज पदार्थ आदि आते हैं. यह देखा गया है कि समाज की भौगोलिक स्थिति में परिवर्तन होने पर उसके सामाजिक संबंधों में भी परिवर्तन होता है.

(2). जैविक विशेषताएं- इसके अंतर्गत मनुष्य की प्रजाति, नस्ल, स्कंध, जनसंख्या, लिंग-भेद, आदि तत्व आते हैं. विभिन्न प्रजातियों और नस्लों के लोगों की शारीरिक रचना भिन्न-भिन्न होती है. इसके कारण इन लोगों के व्यवहारों में भिन्नता होती है. जब एक प्रजाति और नस्ल के लोग दूसरी प्रजातियों और नस्ल के लोगों से मिलते हैं तो उनके सामाजिक संबंधों में अंतर आता है. इसी प्रकार यदि किसी समाज की जनसंख्या तेजी से बढ़ती है तो उसमें भौतिक विकास होता है और लोगों में द्वेष और ईर्ष्या की भावना बढ़ती है.

(3). विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- इस युग में सामाजिक परिवर्तनों का सबसे मुख्य कारण विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होने वाले विकास हैं. कल तक हमारे परिवारों में जो अतिथि आता था हम उनकी कुशल-क्षेम पूछते थे. आज हम उसे आते ही टेलीविजन के सामने बैठा देते हैं और यदि समय मिलता है तो अपने-अपनी उपलब्धियों की चर्चा करते हैं. मशीनों के अविष्कार से कुटीर उद्योग धंधों के स्थान पर भारी उद्योगों का विकास हुआ है. परिणामतः बेरोजगारी बढ़ी है. इससे धनी और अधिक धनी हो रहा है और निर्धन और अधिक निर्धन हो रहा है. मिल-मालिकों और मजदूरों के बीच द्वेष और सहयोग की भावना बराबर बढ़ती जा रही है. यह एक बहुत बड़ा सामाजिक परिवर्तन है. कहां तक कहें, विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने तो हमारे समाज का स्वरूप ही बदल दिया है.

(4). अर्थतंत्र- अर्थतंत्र भी सामाजिक परिवर्तनों का एक प्रभावी कारक तत्व है. कभी हमारे समाज में कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था थी. उस समय हमारे देश में कृषि को उच्च व्यवसाय माना जाता था और तदानुकूल कृषकों का समाज में स्थान उच्च था. आज हमारे कदम औद्योगिकरण की ओर बढ़ रहे हैं. परिणाम यह है कि समाज में उद्योगपतियों को उचित स्थान प्राप्त है. यह सब सामाजिक परिवर्तन हैं.

(5). शिक्षा- इसमें कोई संदेह नहीं कि उपरोक्त सभी घटक सामाजिक परिवर्तन के मुख्य घटक है परंतु इस संदर्भ में हमारे कुछ प्रश्न है. पहला यह कि प्राकृतिक स्रोतों के साथ-साथ समाज में जो परिवर्तन होते हैं उन्हें निश्चित दिशा कौन देता है? दूसरा यह कि सांस्कृतिक परिवर्तनों का मूल आधार क्या है? और तीसरा यह कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास किस की सहायता से किया जाता है? यह कार्य शिक्षाशास्त्रियों ने किया है और यह बताया कि सब कार्य शिक्षा द्वारा किया जाता है. इससे स्पष्ट होता है कि शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का मूल साधन है.

▶सामाजिक परिवर्तन के लक्षण (Characteristics of Social Change)

सामाजिक परिवर्तन में निम्नलिखित लक्षण देखे जा सकते हैं-

  1. यह आवश्यक नहीं है कि समाज में हो रहे परिवर्तन उसे प्रगति की ओर ले जाएं।
  2. उनकी स्वाभाविक और सामान्य दर पर होने वाले परिवर्तन हमारी सोच और सामाजिक ताकत पर प्रभाव डालते हैं।
  3. सामाजिक परिवर्तन को नियोजित या अनियोजित किया जा सकता है।
  4. यह परिवर्तन संपूर्ण सामाजिक संरचना या इसके किसी संगठन में हो सकता है।
  5. पिछले समाजों की तुलना में आधुनिक समाजों में परिवर्तन अधिक बार होता है। हम परिवर्तनों को अधिक स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं।
  6. एक सामाजिक संगठन में परिवर्तन की दर सामाजिक गतिविधियों में होने वाले परिवर्तनों की तुलना में धीमी होती है।
  7. एक खुले समाज में परिवर्तन की दर तीव्र होती है और एक बंद समाज में यह बहुत धीमी होती है।
  8. जब सामाजिक परिवर्तन की दर धीमी हो जाती है, तो क्रांति की संभावना बढ़ जाती है और यह क्रांति व्यापक परिवर्तन का कारण बनती है।
  9. जब शिक्षा आदि के द्वारा मनुष्य की सोच की दुनिया में क्रांति होती है, तो उसके व्यवहार में भी बदलाव महसूस होता है।
  10. जब हमारी भौतिक या अभौतिक संस्कृति बदलती है तो सामाजिक परिवर्तन होता है।

▶शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन (Education and Social Change)

शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन का गहरा संबंध है. कोई समाज अपनी आवश्यकताओं और आकांक्षाओं की पूर्ति शिक्षा द्वारा ही करता है. सामाजिक दृष्टि से शिक्षा के समस्त कार्यों को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है- एक सामाजिक नियंत्रण और दूसरा सामाजिक परिवर्तन. सामाजिक नियंत्रण का अर्थ है समाज की संरचना, उसके व्यवहार प्रतिमानों और कार्यों की सुरक्षा और सामाजिक परिवर्तन का अर्थ है समाज की संरचना उसके व्यवहार प्रतिमानों और कार्य विधियों में परिवर्तन.

शिक्षा के संबंध में दूसरी बात यह है कि यह गतिशील प्रक्रिया है. यह समाज में होने वाले परिवर्तनों को स्वीकार करती हुई आगे बढ़ती है और बदलते हुए समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति में मनुष्य की सहायता करती है. इसे दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि सामाजिक परिवर्तन शिक्षा के स्वरूप और पाठयचर्या आदि सभी को बदल देते हैं. इस प्रकार शिक्षा सामाजिक परिवर्तन करती हैं और सामाजिक परिवर्तन शिक्षा को प्रभावित करते हैं और यह चक्र सदैव चलता रहता है.

▶सामाजिक परिवर्तन में बाधक तत्व (Factor Resisting Social Change)

किसी भी समाज में परिवर्तन तो अवश्य होता रहता है, यह बात दूसरी है कि कुछ समाज में अपेक्षाकृत तेजी के साथ होता है और कुछ में मंद गति से होता है. हमने देखा कि सामाजिक परिवर्तन में सबसे अधिक भूमिका राज्य और शिक्षा की होती है. तब साफ जाहिर है कि रूढ़िवादी राज्य और रूढ़िवादी शिक्षा सामाजिक परिवर्तन में बाधक होते हैं. इनके अतिरिक्त समाज की संस्कृति एवं धर्म, लोगों का स्वार्थ और उचित शिक्षा का अभाव भी सामाजिक परिवर्तन में बाधक होते हैं.

(1). रूढ़िवादी राज्य- रूढ़ीवादी राज्यों से तात्पर्य उन राज्यों से है जो मूल रुप से किसी संस्कृति अथवा धर्म पर आधारित होते हैं; जैसे इस्लामिक राज्य. ये जो भी नियम एवं कानून बनाते हैं उनकी संस्कृति अथवा धर्म पर आधारित होते हैं. यही कारण है कि ऐसे राज्यों में सामाजिक परिवर्तन बहुत मंद गति से होता है.

(2). रूढ़िवादी शिक्षा- रूढ़िवादी शिक्षा से तात्पर्य उस उदार शिक्षा से है जो मूल रुप से समाज की संस्कृति एवं धर्म पर आधारित होती है. इस शिक्षा द्वारा बच्चों में सांस्कृतिक एवं संकीर्णता का विकास होता है. ये बच्चे जब बड़े होते हैं तो अपनी संस्कृति एवं धर्म के प्रतिकूल किसी भी सामाजिक परिवर्तन को स्वीकार नहीं करते है. अतः ऐसे समाज में भी सामाजिक परिवर्तन बहुत मंद गति से होते हैं.

(3). संस्कृति- जो राज्य प्रगतिशील होते हैं और जिनकी शिक्षा भी प्रगतिशील होती है, उनमें भी संस्कृति सामाजिक परिवर्तन में बाधा डालती है. हम जानते हैं कि किसी भी समाज में लोग प्रायः उन सामाजिक परिवर्तनों को स्वीकार नहीं करते जो उनकी संस्कृति के प्रतिकूल होते हैं आज भी अधिकतर लोग अंतरजातिय विवाह का विरोध करते हैं और इस प्रकार सामाजिक परिवर्तन में बाधा डालते हैं.

(4). निहित स्वार्थ- लोग अपने स्वार्थवश भी सामाजिक परिवर्तन का विरोध करते हैं. अपने भारतीय समाज को ही लीजिए एक और महिलाएं पुरुष के समान अधिकार प्राप्त पाने के लिए प्रयत्नशील है तो दूसरी और पुरुष अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील है. महिला आरक्षण इसका जीता जागता उदाहरण हैं.

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