यथार्थवाद का अर्थ, परिभाषा, सिद्धांत एवं विशेषताएं | Meaning, Definition, Principles and Characteristics of Realism in hindi
▶यथार्थवाद का अर्थ (Meaning of Realism)
यथार्थवाद अंग्रेजी शब्द 'Realism' का हिंदी रूपांतरण है. Realism दो शब्दों से मिलकर बना है Real+ism. Real शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द से मानी जाती है जिसका अर्थ 'वस्तु' तथा ism का अर्थ- वाद। इस प्रकार Realism का शाब्दिक अर्थ है वस्तुवाद अथवा वस्तु के अस्तित्व के संबंध में विचारधारा। अतः यथार्थवाद वस्तु के अस्तित्व को स्वीकार करता है और वस्तु की वास्तविकता पर बल देता है यह विचारधारा भौतिकवाद पर आधारित है भौतिकवाद के अनुसार केवल भौतिक जगत ही सत्य है। इस प्रकार यथार्थवाद का सिद्धांत है जो जगत को उसी रूप में स्वीकार करता है जिस रूप में वह दिखाई पड़ता है या अनुभूति किया जाता है।
▶यथार्थवाद की परिभाषा (Definition of Realism)
यथार्थवाद की परिभाषाएं विभिन्न विद्वानों ने दी है। कुछ प्रमुख परिभाषाएं इस प्रकार हैं -
जेम्स एस. रॉस के अनुसार– यथार्थवाद का सिद्धांत स्वीकार करता है कि हमारे प्रत्यक्षीकरण के उद्देश्य के पीछे और उनसे मिलता-जुलता वस्तुओं का एक वास्तविक संसार है।
ब्राउन के अनुसार– यथार्थवाद का मुख्य विचार यह है कि सब भौतिक वस्तुएं या बाह्य जगत के पदार्थ वास्तविक हैं और उनका अस्तित्व देखने वाले से पृथक है यदि उनको देखने वाले व्यक्ति न हो, तो भी उसका उनका अस्तित्व होगा और वे वास्तविक होंगे।
बटलर के अनुसार– यथार्थवाद विश्व की अपनी सामान्य स्वीकृति का पुनर्बलन है जिस रूप में वह हमें हमारे समक्ष होता है।
स्वामी रामतीर्थ के अनुसार– यथार्थवाद का अर्थ वह विश्वास या सिद्धांत है जो जगत को वैसे ही स्वीकार करता है जैसा कि हमें दिखाई देता है।
▶यथार्थवाद के दार्शनिक आधार (Philosophical Basis of Realism)
• तत्व मीमांसा में यथार्थवाद :- यर्थाथवाद यह मानते हैं कि ब्रह्माण्ड गतिणील पदार्थ का बना है। हम अपने अनुभवों के आधार पर जगत के नियमित क्रियाकलापों को पहचान सकते हैं। पदार्थ गतिशील हैं और वह अस्तित्व में हैं इसलिए सत्य है।
• ज्ञान मीमांसा मे यथार्थवाद :- यथार्थवादियों का विचार है कि वास्तविक जगत का अस्तित्व है। हम वास्तविक वस्तु को जानते हैं क्योंकि इसका अस्तित्व है। हम यह कह सकते हैं कि वस्तु का वास्तविक जगत में अस्तित्व है तो वह सत्य है। कोई भी कथन विश्लेषण के पश्चात ही स्वीकार्य है। ज्ञान का अस्तित्व मस्तिष्क ही स्वीकार करता है।
• मूल्य मीमांसा मे यथार्थवाद :- यथार्थवादी प्राकृतिक नियमों में विश्वास करते हैं। उनका कहना है कि मनुष्य इन नियमों का पालन करके सद्जीवन व्यतीत कर सकता है। प्रकृति सौन्दर्य से परिपूर्ण है। सौन्दर्य पूर्ण कला-कार्य, ब्रह्माण या प्रकृति की व्यवस्था तथा तर्क की प्रतिछाया है। कला की सराहना की जानी चाहिए।
▶यथार्थवाद के मूल सिद्धांत (Fundamental Principles of Realism)
1. आंगिक सिद्धांत (Theory of Organism)– यथार्थवाद व्यवस्था है जो सदैव आंगिक है इसका प्रत्येक भाग स्वयं एक सक्रिय व्यवस्था है एक समन्वित प्रक्रिया है यह केवल परिणाम नहीं है वरन स्वयं कारण भी है संसार विकास की प्रक्रिया में एक तरंगित अवयव है परिवर्तन इस तरंगित विश्व का आधारभूत गुण है सत्य, वास्तविकता की सार तत्व प्रक्रिया है मन को अवयवी के कार्य के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।
2. मानव के वर्तमान व व्यवहारिक जीवन पर बल (Emphasis on Present and Practical Life of Man)– यथार्थवादी उन आदर्शों, नियमों एवं मूल्यों को कोई महत्व नहीं देते हैं जिनका संबंध वर्तमान एवं व्यवहारिकता से नहीं है इसके साथ ही वे बौद्धिकता तथा आदर्शवादियों का विरोध करते हैं।
3. यथार्थवाद, पारलौकिकता को अस्वीकार करता है (Realism does not accept Trancedentalism)– यथार्थवाद प्रत्यक्ष जगत को ही सब कुछ मानता है इसके अनुसार इस लोक से परे कोई वस्तु नहीं है इस प्रकार यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं वस्तुनिष्ठता पर बल देता है वस्तुतः यथार्थवाद अपनी प्रक्रिया में वैज्ञानिक हैै।
4. वस्तु जगत में नियमितता (Regularity in Object World)– यथार्थवादी भौतिक जगत की नियमितता को आधार मानते हैं उनका मानना है कि भौतिक जगत में जो कुछ भी परिवर्तन होते हैं उनमें सतत नियमितता पाई जाती है अतः यही नियमितता मानव के अनुभव एवं ज्ञान प्राप्ति में होनी चाहिए तभी यथार्थ ज्ञान हो सकता है।
5. इंद्रिय ज्ञान की यथार्थता (Reality Of Sensory Knowledge)– यथार्थवाद का अन्य सिद्धांत इंद्रिय ज्ञान की यथार्थता है उनका विचार है कि वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति केवल इंद्रियों के माध्यम से ही होती है क्योंकि इंद्रियां संवेदनशील होती हैं।
6. दृश्य जगत की यथार्थता (Reality Of Phenominal World)– यथार्थवाद का प्रमुख सिद्धांत दृश्य जगत की यथार्थता है क्योंकि वह दृश्य जगत को ही सत्य प्रदार्थ मानते हैं उनके विचार में इस संसार में हम जो कुछ भी देखते हैं सुनते हैं अथवा अनुभव प्राप्त करते हैं वही सत्य है अर्थात जो प्रत्यक्ष है उसी का अस्तित्व हैै।
▶यथार्थवाद और पाठ्यक्रम (Realism and Curriculum)
यथार्थवादी ज्ञान को अपने लिए ही प्राप्त करने के आदर्श को महत्व प्रदान करते हैं। यथार्थवादी ज्ञान को मन और वस्तुओं का ऐसा संबंध मानते हैं जिसमें वस्तुओं पर ज्ञान का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, सत्य तो सत्य है चाहे मानव ने उसकी खोज की हो अथवा नहीं। सत्य को सत्यापन की कोई आवश्यकता नहीं है किंतु यदि इसका सत्यापन हो जाता है तो मानव को सत्य के संबंध में ज्ञान हो जाता है अतः यथार्थवादी ज्ञान को प्राप्त करना एक सुव्यवस्थित पाठ्यक्रम के सुव्यवस्थित अध्ययन पर केंद्रित करते हैं यथार्थवादियो ने पाठ्यक्रम के संबंध में निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किए हैं।
1. जीवन में उपयोगी– पाठ्यक्रम जीवन की आवश्यकताओं के अनुरूप व्यापक होना चाहिए इसके लिए सभी यथार्थवादी एकमत हैं उनका मानना है कि पाठ्यक्रम में जीवन से संबंधित एवं उपयोगी सभी विषयों को स्थान दिया जाना चाहििए।
2. रुचिकर– यथार्थवादी विभिन्न विषयों के उपयोगी एवं रुचिकर विषयों के चयन की स्वतंत्रता बालकों को मिलनी चाहिए जैसे की यथार्थवादी पाठ्यक्रम में 25-30 विषयों को स्थान देने के पक्षधर हैं ऐसी स्थिति में बालको को अपनी रूचि के अनुरूप उपयोगी विषयों के चयन की स्वतंत्रता दी जानी आवश्यक है।
3. मातृभाषा की अनिवार्यता– यथार्थवादियो ने पाठ्यक्रम में मातृभाषा की शिक्षा को अनिवार्यता प्रदान की है ताकि मातृभाषा द्वारा बालक अपने व्यवहारिक ज्ञान को ग्रहण कर सकेे।
4. व्यावसायिकता पर बल– यथार्थवादियों का मानना है कि पाठ्यक्रम में व्यवसायिक पाठ्यक्रम को व्यवसायिक बनाना चाहिए उनमें अनेक वेबसाइट विषयों का समावेश होना चाहिए जिसके फलस्वरूप बालक को व्यवसायिक आ सकेे।
5. वैज्ञानिकता पर आधारित– यथार्थवादियों के अनुसार जीवन की वास्तविक परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के दृष्टिगत प्रकृति, विज्ञान एवं व्यवसाय आदि विषयों को पाठ्यक्रम में प्रमुखता प्रदान की जाए जिससे बालक जीवन की आने वाली परिस्थितियों का सामना कर सके।