महिलाओं के आर्थिक तथा राजनीतिक अधिकार | Economic and Political Rights of Women in hindi

वर्तमान वैश्वीकरण के युग में महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन हो रहे हैं। वे अब अपने अधिकारों के प्रति न केवल जागरूक होती जा रही हैं बल्कि अपने अधिकारों

भूमिका (Introduction)

वर्तमान वैश्वीकरण के युग में महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन हो रहे हैं। वे अब अपने अधिकारों के प्रति न केवल जागरूक होती जा रही हैं बल्कि अपने अधिकारों को प्राप्त भी कर रही हैं। भारत में महिलाओं के आर्थिक तथा राजनैतिक अधिकारों तथा उनकी प्राप्ति का उल्लेख निम्नलिखित रूप से किया जा सकता है-

Economic and Political Rights of Women in hindi

महिलाओं के आर्थिक या सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार (Economic or Property Rights of Women)

भारतीय समाज में विभिन्न धर्मों, जनजातियों, वर्गों तथा सम्प्रदायों में सम्पत्ति के सम्बन्ध में अलग-अलग प्रावधान या नियमों का प्रचलन पाया जाता है। वर्तमान बदलते परिवेश में सम्पत्ति सम्बन्धी मूल्यों में परिवर्तन हो रहे हैं जिनका उल्लेख निम्न प्रकार से किया जा सकता है-

1. विवाहित महिला का सम्पत्ति अधिकार अधिनियम, 1834:- इस अधिनियम के पारित होने से पहले स्त्रियों को पारिवारिक सम्पत्ति पर अधिकार नहीं था, किन्तु इस अधिनियम के द्वारा महिलाओं को परिवार की सम्पत्ति पर अधिकार प्राप्त हो गया है। अब महिला को परिवार की किसी भी स्रोत से होने वाली आय पर अधिकार प्राप्त है। स्त्री को कला, बौद्धिक या साहित्यिक स्रोत से होने वाली आय, पारिवारिक बचत से होने वाली आय, महिला के बीमा पॉलिसी से होने वाली आय इत्यादि।

2. हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956:- इस अधिनियम से महिलाओं को जो आर्थिक अधिकार प्राप्त हुए हैं, उनका उल्लेख निम्नलिखित रूप से किया जा सकता है-

  1. इस अधिनियम के द्वारा दाय भाग तथा मिताक्षरा जैसे भेदभावों को समाप्त कर दिया गया है।
  2. मातृसत्तात्मक परिवारों पर भी यह अधिनियम लागू होता है।
  3. महिला धन तथा महिला के विरासत सम्बन्धी कानूनों को समाप्त कर दिया गया है।
  4. महिला को पारिवारिक सम्पत्ति पर अधिकार प्राप्त हो गया है।
  5. चल तथा अचल सभी प्रकार की सम्पत्ति पर महिलाओं को अधिकार प्राप्त हो गया है।
  6. पुरुषों तथा महिलाओं को सम्पत्ति सम्बन्धी समान अधिकार प्राप्त हो गए हैं।
  7. उत्तराधिकार का आधार पिण्डदान या रक्त सम्बन्ध के साथ-साथ स्नेह तथा प्रेम भी माना गया है।
  8. इस संविधान में दूर के सम्बन्धियों का भी उल्लेख मिलता है।
  9. यह संविधान महिला तथा पुरुष में कोई भेद नहीं करता है।
  10. रोग सम्पत्ति के उत्तराधिकार में बाधक नहीं है।
  11. यह संविधान पुत्रियों को पुत्रों के समकक्ष मानता है।
  12. इस कानून ने महिलाओं को उच्च स्थिति प्रदान की है।

3. मुस्लिम महिलाओं का सम्पत्ति पर अधिकार:- मुस्लिम समाज में स्त्रियों को तुलनात्मक रूप से अधिकार प्राप्त हैं, जैसे-

  1. मुस्लिम महिलाओं को पारिवारिक सम्पत्ति पर अधिकार प्राप्त है।
  2. मुस्लिम समाज में महिला को शरीयत या इस्लामिक कानून के अनुसार अपने पिता की सम्पत्ति में अधिकार प्राप्त है।
  3. विवाह के समय स्त्री जो धन लाती है वह अपने पति से वापस मांग सकती है।
  4. पत्नी के भरण-पोषण का उत्तरदायित्व पति का होता है।

महिलाओं के राजनैतिक अधिकार (Women's Political Rights)

भारतीय समाज में महिलाओं में जागरूकता का अभाव है। इसीलिए वह सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अधिक भागीदारी नहीं कर पाती हैं। यदि राजनैतिक क्षेत्र पर दृष्टि डाली जाए तो यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि राजनैतिक क्षेत्र में भी महिलाओं में जागरूकता का अभाव है। भारत में अनेक ऐसी कुप्रथाएं प्रचलित हैं जो महिलाओं का राजनैतिक दृष्टिकोण से जागरूक होने में बाधा उत्पन्न करती हैं। अशिक्षा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा इत्यादि के कारण महिलाएँ राजनैतिक क्षेत्र में पिछड़ी हुई हैं। अभी भी महिलाएं परिवार के पुरुष सदस्यों की इच्छा के अनुसार मतदान करती हैं। यद्यपि महिलाएं ग्राम प्रधान से लेकर राष्ट्रपति पद तक पर विराजमान हैं। यदि कुछ अपवादों को छोड़ दें तो महिलाएं अभी भी अपने परिवार के पुरुष सदस्यों के सहयोग से इन पदों पर कार्य कर रही हैं। किन्तु अब धीरे-धीरे परिस्थितियां बदल रही है और वे राजनैतिक दृष्टिकोण से न केवल जागरूक हो रही हैं वरन् सक्रिय रूप से राजनीति में भागीदारी भी कर रही हैं।

स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान गाँधीजी ने यह अनुभव किया कि महिलाएँ स्वतन्त्रता संग्राम में महती भूमिका निभा सकती हैं। अतः उन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम में महिलाओं का आह्वान किया जिसका परिणाम यह हुआ कि अनेको महिलाएं गाँधीजी के साथ स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़ी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद 1951 से लेकर 2009 तक जो लोकसभा, विधानसभा, ग्राम पंचायत, नगर पंचायत इत्यादि के जो चुनाव हुए उनमें महिलाओं ने चुनाव लड़ा और अनेक महिलाएँ चुनाव जीतकर विभिन्न राजनैतिक पदो पर आसीन हुई। यद्यपि प्रारम्भ में चुनावों में महिलाओ का प्रतिशत कम या किन्तु धीरे-धीरे चुनावों में महिला प्रत्याशियों का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है।

भारत की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री के रूप में श्रीमती इन्दिरा गांधी का चुना जाना भारतीय महिलाओं का राजनीति में सक्रिय होना ही दर्शाता है, प्रथम महिला राष्ट्रपति के रूप में श्रीमती प्रतिभा देवी पाटिल का चुना जाना भी इस ओर संकेत करता है कि भारत में महिलाएं जागरूक होती जा रही हैं। श्रीमती सोनिया गांधी, विजयराजे सिंधिया, मायावती, ममता बनर्जी, जय ललिता, शीला दीक्षित, उमा भारती, सुषमा स्वराज, नजमा हेपतुल्ला आदि महिलाओं का राजनीति में सक्रिय होना महिलाओं की राजनैतिक जागरुकता तथा सक्रियता को ही दर्शाता है।

पृथ्वी शिखर सम्मेलन के बाद भारत ने ग्राम पंचायतों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। जिससे ग्राम पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि हुई है। किन्तु विधानसभा तथा लोकसभा में महिलाओं के 33 प्रतिशत आरक्षण का बिल अभी भी अधर में लटका हुआ है।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि भारत में महिलाओं में जैसे-जैसे साक्षरता का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है। वैसे-वैसे उनकी राजनैतिक जागरुकता तथा सक्रियता बढ़ती जा रही है। भारत में जहाँ महिलाओं में 1951 में साक्षरता का प्रतिशत केवल आठ प्रतिशत था वहीं 2011 में महिलाओं की साक्षरता का प्रतिशत बढ़कर चौउवन प्रतिशत हो गया है। इस बढ़ती साक्षरता दर ने महिलाओं को राजनैतिक रूप से जागरुक तथा सक्रिय किया है।

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