आर्थिक विकास में महिलाओं की भूमिका | Role of Women in Economic Development in hindi

नारियों का देश की अर्थव्यवस्था में भी प्राचीनकाल से ही किसी-न-किसी रूप में योगदान रहा है। नारियों के आर्थिक एवं उत्पादक कार्यों का निर्धारण मानव सभ्य

भूमिका (Introduction)

नारियों का देश की अर्थव्यवस्था में भी प्राचीनकाल से ही किसी-न-किसी रूप में योगदान रहा है। नारियों के आर्थिक एवं उत्पादक कार्यों का निर्धारण मानव सभ्यता के प्रारम्भिक काल से ही चला रहा है, क्योंकि 'आखेट युग' में यद्यपि नारियाँ शिकार करने नहीं जाती थीं, लेकिन उसको परिवार में ही रहकर विभिन्न कार्य जैसे अनाज साफ करना व उसे काटना छानना, पीसना आदि प्रमुख थे। जब पशुपालन युग प्रारम्भ हुआ तो उसमें भी महिलाओं को अनेक घरेलू कार्य करने पड़ते थे जिनमें पशुओं की देखभाल करना, दूध से अनेक व्यंजन बनाना, पशुओं की सेवा टहल करना आदि प्रमुख थे। इसके बाद जब कृषि युग आया तब महिलाओं को जो विभिन्न घरेलू कार्य करने पड़ते थे, उनमें घर में कपड़ा बुनना, मिट्टी के बर्तन बनाना टोकरियाँ बनाना तथा कूटना-पीसना आदि प्रमुख थे।

Role of Women in Economic Development in hindi

औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व तक महिलाएँ घर पर रहकर ही विभिन्न प्रकार से पुरुषों को सहायता करती थीं। जैसे-

1. औद्योगिक क्रान्ति का प्रभाव (Impact of Industrial Revolution)

जिस समय देश में औद्योगिक क्रान्ति हुई तो उसमें महिलाओं की आर्थिक स्थिति को भी प्रभावित किया। इसका प्रभाव यह हुआ कि महिलाओं ने पारिवारिक सीमाओं का परित्याग करके घर से बाहर भी कार्य करना प्रारम्भ कर दिया, क्योंकि औद्योगिक जगत में महिलाओं को अब श्रम करने के अधिक अवसर प्राप्त होने लगे। इसका प्रमुख कारण यह भी रहा कि मालिक, महिला श्रम सस्ती दर पर प्राप्त लेते थे। जिस समय उन्नीसवी शताब्दी का समापन हुआ तो उस समय सम्पूर्ण महिलाओं का वर्ग 'श्रमजीवी वर्ग के रूप में अपना स्थान ग्रहण कर चुका था। उस समय श्रमिक महिलाओं की स्थिति का प्रतिशत विभिन्न देशों में इस प्रकार था-अमेरिका में 33%, जर्मन में 36%, पोलैण्ड में 44.8%, रूस में 45% तथा भारत में 27% जो विभिन्न व्यवसायों में आज भी व्यापक रूप से कार्यरत हैं।

2. भारतीय महिलाओं की व्यावसायिक स्थिति (Occupational Status of Indian Women)

यद्यपि भारत में महिलाओं के घरेलू कार्यों का निर्धारण प्राचीन काल में ही हो गया था, लेकिन इन कार्यों में महिलाओं की सहभागिता में उन्नीसवी सदी के अन्तिम चरण में काफी तेजी आ गयी थी, जिसका प्रभाव समाज के प्रत्येक वर्ग की महिलाओं पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित हुआ। इसका विवरण इस प्रकार है-

(i) निम्न वर्गीय महिलाओं के प्रमुख कार्य:- जब औद्योगिक क्रान्ति का समापन हुआ तो उस समय महंगाई अपनी चरम सीमा पर थी। इस महँगाई के कारण समाज की निम्नवर्गीय महिलाओं को परिवार से निकलकर विभिन्न व्यावसायिक कार्य करने पड़े। इस वर्ग की महिलाओं के प्रमुख कार्य-खेतो का जोतना, पत्थर की खानों तथा चाय के बागानों में चाय की पत्तियां निकालना आदि था।

(ii) मध्यम वर्गीय महिलाओं के प्रमुख कार्य:- भारतीय व्यवसायों में मध्यम वर्गीय महिलाओं का प्रवेश काफी समय बाद हुआ। इस सम्बन्ध में सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री श्री पी० सेन गुप्ता ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि "महिला शिक्षा को गति प्रदान करने के लिए और महिलाओं को आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए सर्वप्रथम शिक्षक के धन्धे का द्वार खुला।" महिलाओं का दूसरा प्रमुख कार्य परिचारिका का कार्य था। इसीलिए ब्रिटिश सरकार द्वारा स्त्रियों को सन् 1875-76 ई० में 'परिचारिका' का प्रमुख रूप से प्रशिक्षण दिया गया। महिलाओं की व्यावसायिक गतिविधियाँ देश के आर्थिक विकास के साथ-साथ बढ़ती चली गई।

जैसे-जैसे शैक्षिक प्रचार होता गया वैसे ही वैसे सरकार के प्रशिक्षणयुक्त व्यवसायों में महिलाओं की सहभागिता में उत्तरोत्तर वृद्धि होने लगी। सन् 1920 में महिलाओं ने व्यावसायिक क्षेत्र में अपना एक निश्चित स्थान बना लिया था। स्वतन्त्र भारत में भी मध्यम वर्गीय महिलाओं के कार्य करने के अधिकार को मान्यता प्रदान की गयी तथा उनकी विभिन्न समस्याओं को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा विभिन्न कानून पारित किए गए। मध्यम वर्गीय महिलाओं द्वारा किए जाने वाले प्रमुख कार्यों का विवरण श्रीमति पी० सेन गुप्ता ने अपनी 'वीमेन वर्कर्स ऑफ इण्डिया' (भारत की कार्यरत महिला) में निम्न प्रकार प्रस्तुत किया है-

1. शैक्षिक कार्य:- मध्यम वर्गीय महिलाओं का सबसे प्रथम व प्रमुख कार्य शिक्षण कार्य है। इसीलिए आज महिलाएँ शिक्षिका, प्रोफेसर, इन्स्पेक्टर या मुख्य आचार्य के पद पर कार्य कर रही है।

2. स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्य:- मध्यम वर्गीय महिलाओं का द्वितीय प्रमुख कार्य स्वास्थ्य कार्य है। इसलिए आज स्वास्थ्य विभाग में दाई, परिचायिका स्वास्थ्य निरीक्षिका, सामान्य डॉक्टर या चिकित्सक के पद पर अधिकांश महिलाएं कार्य कर रही है।

3. कारखाना सम्बन्धी कार्य प्राय:- आज विभिन्न प्रकार के कारखानों में भी विभिन्न कार्यों के लिए महिलाओं को ही नियुक्त किया जाता है, जिनमें कपड़े, तम्बाकू, आटा मिले, तेल तथा काजू आदि के कारखाने प्रमुख है।

4. खान सम्बन्धी कार्य:- कोयला, इस्पात, पत्थर, अभ्रक, मैगनीज, इस्पात आदि खानों में महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है।

5. बगीचे (बागान) सम्बन्धी कार्य:- आज महिलाएँ चाय, कॉफी, रबर के बागानों में भी पर्याप्त संख्या में कार्य कर रही है।

6. कला सम्बन्धी कार्य:- प्राचीन काल में नृत्य करने वाली महिलाओं को आलोचना युक्त दृष्टिकोण से देखा जाता था क्योंकि यह कार्य बाह्य बालाओं या वेश्याओं का ही माना जाता था, लेकिन आजकल ऐसा नहीं है। आज समाज में नृत्य, संगीत तथा कला को काफी महत्त्व दिया जाने लगा है। इसीलिए इस क्षेत्र में महिलाओं का प्रवेश सम्मानीय हो गया है।

7. विधिक क्षेत्र में:- आज महिलाओं ने विधिक क्षेत्र पर भी अपना अधिकार स्थापित कर लिया है, क्योंकि आजकल वकील, बैरिस्टर या न्यायाधीशों के पद पर महिलाएँ कार्य कर रही है, विधिक क्षेत्र के अतिरिक्त कूटनीतिक क्षेत्र में भी महिलाएँ कार्य कर रही हैं।

8. ग्रामीण क्षेत्र सम्बन्धी कार्य:- आधुनिक काल में सरकार द्वारा संचालित सामुदायिक योजना के अन्तर्गत ग्राम सेविकाओं के पद पर महिलाओं को नियुक्त किया जाता है, जिनका कार्यक्षेत्र ग्रामीण क्षेत्र ही होता है। सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के रूप में भी महिलाओं को ही नियुक्त किया जाता है।

9. सार्वजनिक निर्माण विभाग के कार्य:- आज महिलाओं से सस्ती दरों पर विभिन्न प्रकार के निर्माण कार्य कराए जाते हैं, जिनमें नये रास्तों का निर्माण, भवन निर्माण कार्य तथा नदी योजनाओं में बांध निर्माण आदि का कार्य प्रमुख है।

10. लघु व्यवसाय:- महिलाएं कुछ व्यावसायिक कार्य घर पर रहकर ही करती हैं, क्योंकि इनमें मशीनो तथा बिजली की आवश्यकता नहीं होती है। इन कार्यों में मछली पकड़ना, बीड़ी बनाना, रंगाई, सिलाई-कढ़ाई, बुनाई आदि का कार्य करना, छपाई का कार्य करना, खिलौने बनाना आदि प्रमुख कार्य हैं। कुछ महिलाएँ घर पर रहकर ही पापड़, आचार भी बनाती है। घर पर कागज के थैले आदि भी तैयार करना, गत्ते के डिब्बे बनाना, चटाई व टोकरियाँ आदि बनाना भी इन्हीं कार्यों में शामिल होते हैं।

11. कुछ महिलाएं रेलवे, गोदी तथा अन्य विभागों में भी परिचारिकाओं के रूप में कार्य कर रही हैं।

12. अन्य कार्य:- उपर्युक्त कार्यों के अतिरिक्त महिलाएँ दुकानों, दफ्तरों तथा वितरण केन्द्रों पर भी कार्य कर रही हैं। महिलाएं सहायक, टाइपिस्ट, टेलीफोन ऑपरेटर आदि के पदों पर भी कार्य करती हैं। आज बहुत सी महिलाएं सिलाई-कढ़ाई की दुकानों पर कार्य ही नहीं कर रही है, अपितु बैंकों आदि से ऋण प्राप्त कर स्वयं इनके केन्द्रों का संचालन कर रही हैं।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि आज भारत की अर्थव्यवस्था में महिलाओं का योगदान पुरुषों से कम नहीं है। जिस महिला को कुछ समय पूर्व तक अबला, निम्न स्तर की स्त्री माना जाता था, आज वही महिला पुरुषों से सम्बन्धित क्षेत्रों में उनसे आगे निकल गयी है।

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