शिक्षा और राष्ट्रीय एकता का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं महत्त्व | Education and National Integration in hindi

राष्ट्रीय एकता का अर्थ, राष्ट्रीय एकता की परिभाषा, राष्ट्रीय एकता के आयाम, राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधाएं, राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता एवं महत्त्व

▶राष्ट्रीय एकता का अर्थ (Meaning of National Integration)

राष्ट्रीय एकता का अर्थ है राष्ट्र के प्रति प्रेम की भावना जिसमें जाति, संप्रदाय, धर्म, भाषा, संस्कृति आदि के अंतर को भूल कर अपने को एक समझा जाए. राष्ट्रीय एकता एक राष्ट्र के निवासियों को एकता के सूत्र में आबद्ध करती है, उनमें एकता की भावना पैदा करती है. इस भावना के विकसित होने से व्यक्ति केवल अपने हितों का ही ध्यान नहीं रखता वरन अपने समाज और राष्ट्र के हितों का भी ध्यान रखता है और राष्ट्र के आगे अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक, जातीय और धार्मिक हितों का बलिदान करने को तत्पर रहता है.

शिक्षा और राष्ट्रीय एकता (Education and National Integration)

▶राष्ट्रीय एकता की परिभाषा (Definition of National Integration)

(1). रॉस के अनुसार- "राष्ट्रीय एकता एक प्रेरणा है जिससे प्रभावित होकर एक देश के रहने वाले लोग आपस में एक दूसरे से एक राष्ट्र के नागरिक होने के नाते सद्भावना रखते हैं और मिल-जुलकर देश की उन्नति, सुरक्षा एवं कल्याण के लिए सक्रिय रहते हैं."

(2). प्रोफेसर हुमायूं कबीर के अनुसार- "राष्ट्रीय एकता वह है, जो राष्ट्र के प्रति अपनत्व की भावना पर आधारित होती है."

(3). ब्रुबेकर के अनुसार- "राष्ट्रीय एकता देश प्रेम की अपेक्षा देशभक्ति के अधिक व्यापक क्षेत्र की ओर संकेत करती है. राष्ट्रीय एकता के अंतर्गत स्थान के अतिरिक्त जाति, भाषा, इतिहास, संस्कृति एवं परंपराओं के संबंध भी आ जाते हैं."

(4). 1961 में राष्ट्रीय एकता सम्मेलन में राष्ट्रीय एकता की भावना की व्याख्या निम्नलिखित शब्दों में की गई- "राष्ट्रीय एकता एक मनोवैज्ञानिक एवं शैक्षिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा सभी व्यक्तियों के हृदय में एकत्रित संगठन और शांति की भावना को विकसित किया जाता है."

▶राष्ट्रीय एकता के आयाम (Dimension of National Integration)

राष्ट्रीय एकता का संप्रत्यय बहुआयामी है. इसके नियम निम्नलिखित हैं-

(1). सामाजिक एकता (Social Integration)- समाजिक एकता के लिए समाज के विभिन्न वर्गों और समुदायों में प्रेम, सहयोग और सहनशीलता, जनतंत्र और मानववाद में आस्था, निस्वार्थता, समायोजन, सामाजिक दायित्व, सामाजिक संवेदनशीलता और सामाजिक न्याय की भावना का होना आवश्यक है.

(2). सांस्कृतिक एकता (Cultural Integration)- सांस्कृतिक एकता का अर्थ है विभिन्न धार्मिक, भाषाई, क्षेत्रीय समुदायों की श्रेष्ठता को लेकर उनमें समरसता स्थापित करना. सभी उपसंस्कृतियों के योग से एक सामान्य राष्ट्रीय संस्कृति का विकास करने से राष्ट्र की सांस्कृतिक एकता बनी रह सकती है.

(3). भाषिक एकता (Linguistic Integration)- भाषिक एकता के लिए आवश्यक है कि लोग भाषिक उन्मुत्ता से दूर रहें, सभी भाषाओं का सम्मान करें, एक दूसरे की भाषा का अध्ययन करें और उनमें विचारों का आदान-प्रदान करें तथा एक सर्वमान्य भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दें.

(4). आर्थिक एकता (Economic Integration)- आर्थिक एकता के लिए आवश्यक है कि समाज में आर्थिक असमानता समाप्त हो. आर्थिक आधार पर वर्ग-भेद ना हो, किसी का शोषण ना हो और सामान्य लोगों के जीवन स्तर में सुधार हो.

▶राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधाएं (Obstacle in the way of National Integration)

किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा और विकास के लिए राष्ट्रीय एकता आवश्यक है. दुर्भाग्य से भारत में इसका अभाव है. भारत में राष्ट्रीय एकता के विकास के मार्ग में मुख्यतः निम्न की बाधाएं हैं-

(1). जातिवाद (Casteism)- जातिवाद राष्ट्रीय एकता के लिए अभिशाप बना हुआ है. हमारे यहां अनेक जातियां हैं. हिंदुओं में ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, शूद्र और मुसलमानों में शिया और सुन्नी अपने को अलग अलग मानते हैं. इन जातियों के लोग अपनी जाति के हितों और स्वार्थों को सर्वोपरि मानते हैं और उनकी रक्षा के लिए देश के हितों को भूल जाते हैं. हमारे देश के अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जहां जाति विशेष ने अधिपत्य स्थापित कर रखे हैं और उस क्षेत्र की संपूर्ण सुविधाएं आम लोगों को ना मिलकर उस जाति विशेष के लोगों को ही मिलती है.

देश के राजनीतिक दल जातिवाद के आधार पर संसद, विधानसभाओं और स्थानीय संस्थाओं के लिए अपने प्रत्याशी खड़े करते हैं और चुनाव लड़ते हैं. जातिवाद के आधार पर चुनाव में मतदान होता है और लोग विजयश्री प्राप्त करते हैं. इसका परिणाम यह होता है कि जीता हुआ व्यक्ति अपने क्षेत्र की संपूर्ण जनता के लिए कार्य न करके अपनी जाति विशेष के लिए ही कार्य करता है. इसलिए यह जातिवाद राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बहुत बड़ी बात है.

(2). भाषावाद (Linguistic Antagonism)- भाषाओं के नाम पर देश में विघटनकारी शक्तियों ने आंदोलन किए हैं और राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुंचाई है. आज भी संविधान की धारा 343 में हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा स्वीकार किया गया है लेकिन कतिपय भारतीय आज भी सच्चे मन से इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है जिससे राष्ट्रीय एकता को आघात पहुंचता है.

(3). धर्मवाद (Religionism)- राष्ट्रीय एकता के मार्ग में प्रमुख बाधा धर्म की है. हमारे यहां अनेक धर्म है. हिंदू, मुसलमान, ईसाई, पारसी, सिख आदि विभिन्न धर्मों को मानने वाले पाए जाते हैं. इन धर्मों के कुछ अनुयाई अपने को श्रेष्ठ समझते हैं. यह अपने धर्म को उच्च स्थान देते हैं और दूसरे धर्मों की अवहेलना करते हैं. इससे विभिन्न धर्मावलंबियों के बीच घृणा, द्वेष, कटुता की भावना पैदा होती है और कभी-कभी संघर्ष हो जाते हैं जिससे राष्ट्रीय एकता को आघात पहुंचता है.

(4). आर्थिक विषमता (Economic Frustration)- देश में व्याप्त आर्थिक विषमता भी राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है. हमारे देश में कुछ लोग तो ऐसे हैं, जिनको एक समय के लिए खाना भी नसीब नहीं है और कुछ लोग ऐसे हैं जिनके पास अपार धन और संपत्ति है. हमारे समाज में इन दोनों वर्गों धनी और निर्धन के बीच बहुत बड़ी खाई है. इस आर्थिक विषमता के कारण दोनों वर्गों में घृणा और द्वेष की भावना पैदा होती है.

(5). राजनितिक दलबंदी (Political Morass)- भारत की राष्ट्रीय एकता को नष्ट करने में कुछ राजनीतिक दल भी उत्तरदाई हैं. हमारे यहां ये राजनीतिक दल जाति, धर्म, संप्रदाय, क्षेत्र आदि के आधार पर कार्य करते हैं, जिससे सांप्रदायिक भावना उभरती है. पृथकवादी शक्तियों को बल मिलता है और राष्ट्रीय एकता खतरे में पड़ती है.

▶राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता एवं महत्त्व (Need and Importance of National Integration)

राष्ट्रीय एकता राष्ट्र की सुरक्षा, अखंडता और विकास के लिए आवश्यक है. इसकी आवश्यकता एवं महत्व के निम्नलिखित कारण हैं-

  • विदेशी शक्तियों एवं आंतरिक झगड़ों से उत्पन्न संकट का निवारण करने के लिए राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है.
  • विघटनकारी शक्तियों का दमन करके शांतिपूर्ण वातावरण तैयार करने के लिए राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है.
  • राष्ट्र की स्वाधीनता, सम्मान और हितों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है.
  • राष्ट्र की संस्कृति के संरक्षण, विकास और हस्तांतरण के लिए राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है.
  • भाषिक उन्मुक्तता से दूर रहने, भाषिक एकता स्थापित करने और राष्ट्रभाषा का विकास करने के लिए राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है.
  • सभी संस्कृतियों के सहयोग से एक सामान्य राष्ट्रीय संस्कृति के विकास के लिए राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है.
  • नागरिकों में आत्म-त्याग की भावना का विकास करके अपने राष्ट्र के लिए हर प्रकार का बलिदान करने की भावना विकसित करने के लिए राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है.
  • वर्ग-भेद को समाप्त करने, शोषण का अंत करने, आर्थिक असमानता को दूर करने तथा राष्ट्र की औद्योगिक प्रगति की राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है.

▶राष्ट्रीय एकता और शिक्षा (National Integratipn and Education)

राष्ट्रीय एकता की भावना को विकसित करने का सबसे महत्वपूर्ण साधन शिक्षा है. शिक्षा के द्वारा ही हम देश के भावी नागरिकों में आवश्यक प्रेरणाएं और गुण उत्पन्न कर सकते हैं. देश में जो विघटनकारी तत्व फैले हुए हैं, जिनसे राष्ट्रीय एकता के विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है उन विघटनकारी तत्वों का अंत केवल शिक्षा के द्वारा ही हो सकता है. शिक्षा के द्वारा लोगों को इन घातक तत्वों की बुराई से परिचित करा कर उनमें एकता स्थापित की जा सकती है.

राष्ट्रीय एकता को स्थापित करने में शिक्षा के योगदान के विषय में राष्ट्रीय एकता सम्मेलन में कहा गया था कि "राष्ट्रीय एकता का विकास करने में शिक्षा सबसे अधिक महत्वपूर्ण साधन है. विभिन्न समूहों या समाज के बड़े अंगों के दृष्टिकोण से संबंधित एकता की या राष्ट्रीय संगठन की समस्या मूलतः व्यापक अर्थ में शिक्षा को व्यक्ति के दृष्टिकोण या अभिवृत्ति के बदलने या प्रभावित करने का शक्तिशाली साधन माना गया है, इसलिए सम्मेलन के विचार से शिक्षा की प्रक्रिया और उसके शोधित रूप को जहां तक आवश्यक हो, प्रथम महत्व दिया जाना चाहिए."

शिक्षा प्रणाली मुख्यतः देश की आवश्यकताओं के आधार पर निश्चित की जाती है, और आज की हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता देशवासियों में राष्ट्रीय भावना का विकास करने की है. राष्ट्रीय आदर्शशों को पूरा करने में शिक्षा संस्थाओं का विशेष योगदान होना चाहिए. शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो देश के नव युवकों में यह भावना कूट-कूट कर भर दे वे एक सच्चे राष्ट्रीय हैं और राष्ट्र की उन्नति तथा अवनति में ही उनकी उन्नति तथा उन्नति है. उन्हें अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम हो, भक्ति हो, इस पर गर्व हो और उसकी सेवा करना ही उनका मुख्य कर्तव्य हो.

▶राष्ट्रीय एकता और शिक्षा के उद्देश्य (Aims of National Integartion and Education)

राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास करने के लिए शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किए जा सकते हैं-

  • छात्र में विभिन्न संस्कृतियों के प्रति आदर की भावना का जागृत करना.
  • छात्रों में वांछनीय व्यवहार का विकास करना.
  • छात्रों में देश प्रेम की भावना का विकास करना
  • छात्रों में व्यवसाय कुशलता का विकास करना.
  • छात्रों में प्रजातांत्रिक नागरिकों का विकास करना.
  • छात्रों में मानवीय संबंधों के प्रति आस्था पैदा करना.
  • छात्रों में अपनी योग्यता अनुसार राष्ट्र की सर्वोत्तम सेवा करने की भावना का विकास करना.

▶राष्ट्रीय एकता के विकास में शिक्षक की भूमिका (Role of Teacher in the Development of National Integration)

शिक्षा की सफलता शिक्षक पर निर्भर करती है. शिक्षा के माध्यम से राष्ट्रीय एकता की प्राप्ति तभी संभव हो सकती है, जब शिक्षक योग्य हो, अपने विषय का विशेषज्ञ हो, उसे राष्ट्र की गौरवमई सभ्यता और संस्कृति का पूर्ण प्रज्ञान हो, वह राष्ट्र की ऐतिहासिक, भौगोलिक, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और औद्योगिक समस्याओं से पूरी तरह अवगत हो. वह अपने विचारों को सशक्त ढंग से दूसरों के सामने रखने की क्षमता रखता हो और उदारवादी हो, व्यापक दृष्टिकोण वाला हो, अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो, उसकी कथनी और करनी में अंतर ना हो, जो समाज सेवा को अपना धर्म मानता हो, जो देश प्रेम की भावना से ओत-प्रोत हो और संकट के समय राष्ट्र के बलिवेदी पर अपने प्राणों का उत्सर्ग करने की इच्छा रखता हो.

छात्र शिक्षक को अपना आदर्श मानते हैं और उसका अनुसरण करते हैं. अतः यदि हम अपने छात्रों में देश प्रेम और राष्ट्रीयता की भावना का विकास करना चाहते हैं तो शिक्षक को देश प्रेम और राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण होना होगा, उसे तन मन धन से राष्ट्र हित के लिए समर्पित होना होगा, उसे राष्ट्रहित के आगे अपने व्यक्तिगत और पारिवारिक हितों का त्याग करना होगा, उसे अपने मन में राष्ट्र ध्वज, राष्ट्रगान और राष्ट्रभाषा के प्रति श्रद्धा और सम्मान पैदा करना होगा, उसे छात्रों के प्रति अपने व्यवहार को निष्पक्ष रखना होगा और उसे जाने अनजाने में ना कोई ऐसी बात कहनी होगी और ना ही कोई ऐसी बात करनी होगी जो राष्ट्रहित के विरोध में हो और जिसे पृथकवादी प्रकृति को बल मिले. ऐसा शिक्षक ही छात्रों में राष्ट्रीयता की भावना पैदा कर सकेगा.

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