Demonstration Method of Teachong in hindi

विद्यार्थियों को कक्षा में कुछ क्रिया करके दिखाने को पद्धति प्रदर्शन विधि कहलाती है। यह विधि भाषण और प्रदर्शन विधि के गुणों से युक्त होती है। इस विधि

प्रदर्शन विधि (Demonstration Method)

विद्यार्थियों को कक्षा में कुछ क्रिया करके दिखाने को पद्धति प्रदर्शन विधि कहलाती है। यह विधि भाषण और प्रदर्शन विधि के गुणों से युक्त होती है। इस विधि के अन्तर्गत शिक्षक कक्षा में प्रयोग करके दिखाता है और बीच-बीच में प्रश्न पूछता है। इसमें सभी छात्र-छात्राएँ सक्रिय होकर भाग लेते हैं। यह विधि सामाजिक अध्ययन विषय के प्रकरणों के शिक्षण के लिए बहुत सशक्त है।

Demonstration Method of Teachong in hindi

प्रदर्शन विधि में अध्यापक कक्षा में चार्ट, मॉडल का आयोजन करके संबंधित विषय वस्तु का स्पष्टीकरण करता है। उदाहरण–यदि कक्षा में शिक्षक को पोटेशियम परमैंगनेट से ऑक्सीजन बनाने की विधि का प्रयोग प्रदर्शित करना है तो वह प्रदर्शन विधि का प्रयोग कर सकता है तथा इसके साथ ही वह अन्य प्रयोग जैसे-विभिन्न प्रकार के पुष्प, विभिन्न प्रकार के बीच, जड़ों द्वारा पानी सूखना आदि।

प्रदर्शन विधि की विशेषताएँ (Features of Demonstration Method)

इसकी निम्नलिखित विशेषताएं हैं-

  1. प्रदर्शन से पहले रिहर्सल के लिए समय दिया जाता है।
  2. इस विधि में सभी छात्र-छात्राओं पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है।
  3. छात्रों द्वारा समस्या उत्पन्न करवाकर समाधान किया जाता है।
  4. प्रदर्शन सरल व धीमी गति से होता है।
  5. समय व मौसम का ध्यान रखते हुए प्रयोगों का प्रदर्शन किया जाता है।
  6. सभी सावधानियों का ध्यान रखा जाता है।
  7. यह योजनाबद्ध विधि है।
  8. प्रदर्शन के लक्ष्य एवं उद्देश्य स्पष्ट होते हैं।

प्रदर्शन पाठ की व्यवस्था से सम्बन्धित सोपान (Stages Related to Arrangement of Demonstration Lessons)

1. योजना और तैयारी:- प्रदर्शन विधि, वास्तव में अध्यापक की योग्यता की कड़ी परीक्षा है। अतः उसे इसके लिए पूर्ण रूप से तैयार होना चाहिए तैयारी करते समय उसे निम्लखित बातो की ओर ध्यान देना चाहिए-

  • (i) विषय-वस्तु
  • (ii) पाठ-संकेत: इसमें पूछे जाने वाले प्रश्न भी सम्मिलित होने चाहिए।
  • (iii) आवश्यक उपकरणों का संकलन तथा प्रबन्ध ।
  • (iv) प्रयोगों की पुनरावृत्ति

संबंधित विषय का पूर्ण परिचय होने पर भी अध्यापक को विद्यार्थियों की पाठ्य पुस्तकों में से संबंधित पृष्ठ अवश्य पढ़ने चाहिए, इससे वह संबंधित विषय पर केन्द्रित रह सकेगा। पाठ-योजना बनाना भी उतना ही आवश्यक है और इसके अन्तर्गत वे सिद्धांत सम्मिलित होने चाहिए, जिनकी व्याख्या करनी हैं, उन प्रयोगों का उल्लेख होना चाहिए, जिन्हें प्रदर्शित करना है। तथा उन प्रश्नों का ब्योरा होना चाहिए, जिन्हें क्रमानुसार विद्यार्थियों से पूछना है। इससे उसका काम विधिवत् हो जाएगा। बुरे ढंग से तैयार किए गए पाठ से ज्यादा और कोई वस्तु विद्यार्थियों को हतोत्साहित नहीं कर सकती। प्रयोगों की रिहर्सल द्वारा अध्यापक प्रदर्शन कार्य के लिए आवश्यक प्रत्येक वस्तु को प्रदर्शन मेज पर बुद्धिमत्ता के साथ उचित रूप से व्यवस्था करे, ताकि प्रदर्शन के समय कोई कठिनाई पेश न आए। संक्षेप में, अध्यापक को पाठ के लिए पूर्ण रूप से तैयारी ऐसे करनी चाहिए, जैसे एक लड़की अपने विवाह की तैयारी करती है।

2. पाठ का प्रस्तुतीकरण:- विद्यार्थियों को उचित रूप से प्रेरित तथा उनको मानसिक रूप से तैयार करने से पहले पाठ को आरम्भ करना व्यर्थ है। पाठ को समस्यात्मक ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए, ताकि विद्यार्थी संबंधित विषय के महत्त्व को समझ सके। जब अध्यापक विद्यार्थियों में उत्साह और रुचि को जगा लेता है तो उसे आधी सफलता उसी समय प्राप्त हो जाती है। पाठ को ठीक ढंग से आरम्भ करने पर ही बहुत कुछ निर्भर करता है। अध्यापक को किसी व्यक्तिगत अनुभव या घटना से पाठ आरम्भ करना चाहिए।

किसी सरल और रोचक प्रयोग या सुपरिचित घटना अथवा किसी रोचक कहानी द्वारा भी पाठ आरम्भ किया जा सकता है। अध्यापक को रोचक प्रयोग के महत्त्व को हमेशा अपने दिमाग मे रखना चाहिए। इसी प्रयोग के कारण ही विद्यार्थी विज्ञान के पाठ में देखी या की गई बातों की स्कूल के अंदर और बाहर चर्चा करते हैं। केवल प्रारम्भ में ही नहीं, बल्कि अध्यापक को चाहिए कि वह अपने निरन्तर उत्साह के द्वारा पूरे पाठ के दौरान विद्यार्थियों के उत्साह और रुचि को बनाए रखे। प्रत्येक उचित अवसर पर ऐसा प्रयोग दिखाना चाहिए, जिसके प्रभावोत्पादक फलस्वरूप विद्यार्थियो के ध्यान को आकर्षित किया जा सके।

3. विषय सामग्री का प्रस्तुतीकरण:- पाठ के अन्तर्गत केवल शिक्षण कोर्स की छूटी कड़ियाँ ही सम्मिलित होनी चाहिए, बल्कि उसको प्रस्तुत करने की व्यापकता भी बहुत आवश्यक है। वास्तविक पाठ के संबंध भले ही किसी निश्चित विषय के साथ हो, परंतु यह अध्यापक के हाथ में है कि वह चाहे तो उसे संकीर्ण रुप में प्रस्तुत करें या अपने शिक्षण के लिए अपने ज्ञान और अनुभव में व्यापक क्षेत्र में सामग्री तथा दृष्टान्त चुने।

4. प्रयोगीकरण:- प्रदर्शन मेज पर किया गया काम विद्यार्थियों के लिए आदर्श होना चाहिए। अस्वच्छ तथा गंदी प्रदर्शन मेज प्रयोग करने वाली कक्षा को बुरे काम की ओर अग्रसर करती है।

5. चाक-पट्ट कार्य:- प्रदर्शन पाठ में चाक-पट्ट बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है। मुख्य रूप से इसका दो उद्देश्यों के लिए प्रयोग किया जाता है:

  1. (क) महत्वपूर्ण परिणामों तथा सिद्धांतों को संक्षिप्त रुप में लिखना।
  2. (ख) आवश्यक रेखाचित्र और रेखा आकृतियाँ बनाना।
  • (i) स्पष्ट लेख:- जिस प्रकार चेहरा मन का दर्पण है, उसी प्रकार श्यामपट्ट कार्य अध्यापक की योग्यता का दर्पण है। श्यामपट्ट पर लिखा हुआ लेख स्पष्ट और पठनीय होना चाहिए।
  • (ii) शब्दों के बीच उचित स्थान:- शब्दों के ऊपर नहीं लिखना चाहिए और न हो घसीट भरने चाहिए। अक्षरों और शब्दों के बीच उचित स्थान छोड़ना चाहिए।
  • (iii) लिखने की विधि:- हमेशा बाएँ हाथ के कोने से लिखना आरंभ होना चाहिए और जब तक एक पंक्ति समाप्त न हो जाए दूसरी पक्ति आरंभ नहीं करनी चाहिए।
  • (iv) वाक्य खण्डों का लिखना:- जहाँ तक संभव हो सके, सभी वाक्य खण्डों और एक जैसे संकेतकों को एक-दूसरे के नीचे रखना चाहिए।
  • (v) अध्यापक की लिखावट:- विद्यार्थी प्राय: अपने अध्यापक की नकल करते हैं। ब्लैकबोर्ड पर लिखी हुई असुन्दर लिखाई को देखकर विद्यार्थी भी अपनी कापियों पर वैसा हो लिखेग
  • (vi) भाषा का प्रयोग:- चाक पट्ट पर विद्यार्थियों को अपनी भाषा का प्रयोग करना चाहिए। आवश्यकतानुसार उसमें कहीं-कहीं संशोधन किया जा सकता है।
  • (vii) चाकपट्ट का विभाजन:- चाक्-पट्ट को सुविधापूर्वक दो भागों में बाँट देना चाहिए और दाये भाग को रेखाचित्रों तथा रेखा आकृतियों के लिए सुरक्षित रखना चाहिए।
  • (viii) रेखाचित्र:- 'दोहरी रेखा से बने रेखाचित्रों की अपेक्षा 'इकहरी रेखा' से बने रेखाचित्र अच्छे लगते हैं।
  • (ix) उचित लेबल:- रेखाचित्रों के प्रत्येक भाग पर उचित लेबल लगाने चाहिए। लेबल लिखते समय सुंदर अक्षरों का प्रयोग करना चाहिए। लेबल मोटे अक्षरों में लिखे जाने चाहिए। चालू लेख में नहीं।

6. प्रतिलेखन और निरीक्षण:- जब तक विद्यार्थी चाक पट्ट के संक्षिप्त विवरण तथा रेखाचित्रों को अपनी कापियों पर लिख नहीं लेते, तब तक प्रदर्शन पाठ अधूरा होगा। चाकपट्ट के संक्षिप्त विवरण आगे चलकर बहुत ही उपयोगी सिद्ध होते हैं, क्योंकि चाक पट्ट पर प्रयुक्त भाषा विद्यार्थियों की अपनी होती है, इसलिए उन विवरणों को लिख लेने में कोई हानि नहीं। विद्यार्थियो का मस्तिष्क इतना विकसित नहीं होता कि अपने आप नोट्स और रेखाचित्र बना सके। इसलिए उन्हें चाकपट्ट से ही नकल कर लेनी चाहिए। अध्यापक को बार-बार विद्यार्थियों के पास पहुँचकर यह देखना चाहिए कि वे उचित ढंग से नकल कर रहे हैं या नहीं।

प्रदर्शन विधि के गुण (Properties of Demonstration Method)

(1) क्रियाओं पर आधारित:- यद्यपि यह विधि विद्यार्थी केन्द्रित नहीं, परंतु फिर भी इसमें विद्यार्थियों को कई प्रकार की क्रियाओं में व्यस्त रखा जा सकता है, जैसे निरीक्षण करना, टिप्पणियाँ लेना, प्रश्नों का उत्तर देना, रेखा आकृतिया बनाना आदि। कभी-कभी तो स्वयं विद्यार्थियों से भी प्रयोग कराए जा सकते हैं।

(2) कम खर्चीली:- यह विधि कम खर्चीली है। जब विद्यार्थियों के व्यक्तिगत प्रयोग के लिए पर्याप्त उपकरण न हो, तो अध्यापक संपूर्ण कक्षा के सामने प्रयोग कर सकता है। इससे समय की मी बचत होती हैं, क्योंकि थोड़े समय में कई प्रयोग किए जा सकते हैं।

(3) मनोवैज्ञानिक विधि:- यह मनोवैज्ञानिक विधि है, क्योंकि इसमें विद्यार्थियों को किसी बात की कल्पना नहीं करनी पड़ती, बल्कि उन्हें ठोस चीज़े तथा जीवित नमूने दिखाए जाते हैं। परिणामस्वरूप वे पढ़ने-लिखने की प्रक्रिया में सक्रिय भाग लेने लगते हैं। अत: इसमें विज्ञान के प्रति उनकी रुचियों को प्रेरणा मिलती है।

(4) प्रत्येक के लिए उपयोगी:- सभी प्रकार के बच्चों के लिए जैसे- मध्यवर्गीय, मन्दबुद्धि तथा बुद्धिमान, यह उपयोगी विधि है। इसके द्वारा सभी विद्यार्थियों को समान रूप तथा गति से शिक्षा दी जा सकती है।

(5) कीमती उपकरण:- तब यह बहुत ही उपयोगी सिद्ध होती है, जब उपकरण कीमती और कोमल हो, तथा विद्यार्थियों द्वारा प्रयुक्त होने पर उनके टूटने की संभावना हो।

(6) समय की बचत:- इस विधि से समय की बहुत बचत होती है। अन्वेषणात्मक योजना और प्रयोगात्मक विधियों की अपेक्षा इस विधि में बहुत कम समय लगता है।

(7) खतरनाक प्रयोगों में उपयोगी:- खतरनाक प्रयोगों में भी यह विधि उपयोगी है, जैसे- क्लोरीन तैयार करना, हाइड्रोजन का जलना आदि।

प्रदर्शन विधि के दोष (Defects of Demonstration Method)

(1) व्यक्तिगत भिन्नता का अभाव:- यह व्यक्तिगत भिन्नता के विषय को मुलभ नहीं कराती। तीव्र बुद्धि तथा मंद बुद्धि होने को एक ही गति से सोखने पर मजबूर किया जाता है।

(2) कार्य द्वारा सीखने के सिद्धांत के विपरीत:- इसमें कार्य द्वारा सीखने के लिए कोई स्थान नहीं, जबकि शिक्षा का यह एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है।

(3) विकास में बाधक:- विद्यार्थियों में प्रयोगशाला संबंधी उचित कौशल का विकास नहीं होता।

(4) विद्यार्थी केन्द्रित नहीं:- यह विद्यार्थी केन्द्रित विधि नहीं हैं। इस प्रक्रिया में विद्यार्थी सक्रिय रूप से भाग नहीं ले सकते। प्रयोग करने का अन्तिम उत्तरदायित्व अध्यापक पर ही होता है और वह जैसे चाहे उसे संपन्न कर सकता है। इसलिए कुछ सीमा तक यह प्रभुत्व अधिकार संपन्न विधि है।

(5) प्रत्यक्ष अनुभवों के विपरीत:- इसमें विद्यार्थियों को प्रत्यक्ष एवं व्यक्तिगत अनुभवों का आनन्द प्राप्त नहीं हो सकता।

(6) वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विपरीत:- इसके द्वारा अत्यन्त आवश्यक वैज्ञानिक दृष्टिकोण का निर्माण नहीं होता और न ही इससे वैज्ञानिक विधि का प्रशिक्षण मिलता है।

प्रदर्शन विधि प्रयोग करने के सुझाव (Tips for Using the Demonstration Method)

  1. शिक्षक प्रशिक्षित होना चाहिए ताकि वह प्रदर्शन के सामान का प्रयोग पूरी तरह से कर सके।
  2. छात्रों के बैठने की स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि प्रदर्शन क्रियाओं के अवलोकन में किसी को कठिनाई न आए।
  3. कक्षा में प्रदर्शन के लिए उपयुक्त स्थान होना चाहिए। कक्षा के आकार को ध्यान में रखना चाहिए।
  4. सहायक सामग्री की मात्रा अधिक होनी चाहिए ताकि खराब होने की स्थिति में कठिनाई न आए।
  5. श्यामपट्ट अवश्य होना चाहिए।
  6. छात्रों की तर्कशक्ति व चिंतन शक्ति में वृद्धि के लिए प्रश्न पूछने चाहिए।
  7. सहायक सामग्री का आकार बड़ा होना चाहिए ताकि सभी को दिखाई दे।
  8. महत्वपूर्ण बातें नोट करने का समय दिया जाना चाहिए।

निष्कर्ष (Conclusion)

माध्यमिक कक्षाओं को विज्ञान पढ़ाने के लिए यह सर्वोत्तम विधियों में से एक है। यदि अध्यापक महसूस करता है कि पूर्व अभ्यास, व्यवस्था तथा प्रदर्शन करने में एक तो समय बहुत लगता है, दूसरे उसे काम बहुत करना पड़ता है, जो पर्याप्त सीमा तक विद्यार्थियों से सहायता ली जा सकती हैं। जिस प्रकार विद्यार्थियों को चाक बोर्ड के निकट बुलाकर उनसे सवाल आदि निकलवाए जा सकते हैं, उसी प्रकार विद्यार्थियों को छोटो-छोटी टोलियां प्रदर्शन मेज के पास बुलाई जा सकती हैं। स्वयं विद्यार्थी भी प्रदर्शन कर सकते हैं। व्यवस्था, पूर्व अभ्यास आदि भी विद्यार्थियों द्वारा कराया जा सकता है, परंतु इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि अध्यापक को हो हमेशा मार्गदर्शन करना होगा। इस प्रकार इस विधि के संबंध में यह आपत्ति भी समाप्त हो जाएगी कि इसमें 'काम द्वारा सीखने की प्रक्रिया का अभाव है और कुछ सीमा तक अध्यापक को आराम भी मिल सकेगा।

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