Lecture Method of Teaching in hindi

भाषण विधि (Lecture Method)

व्याख्यान विधि को अंग्रेजी में lecture method कहते हैं। व्याख्यान विधि को प्रभुत्व वादी शिक्षण विधि की संज्ञा दी जाती है। व्याख्यान विधि शिक्षक केंद्रीय विधि है जिसमें विद्यार्थी केवल श्रोता होते हैं और इस विधि में विद्यार्थियों का ध्यान केंद्रित करने के लिए शिक्षक प्रश्न विधि कभी प्रयोग करते हैं। किसी भी विषय के अध्ययन के लिए दो मुख्य उद्देश्य होते हैं-

Lecture Method of Teaching in hindi
  1. ज्ञान और धारणाओं की प्राप्ति,
  2. कुशलताओं तथा अभिरुचियों का विकास।

भाषण विधि पहले उद्देश्य की पूर्ति करती है। शिक्षा जगत में भाषण पद्धति व्यापक रूप में प्रयोग में लाई जाती है। शिक्षार्थियों द्वारा इस विधि की कड़ी आलोचना होने पर भी इस विधि का किसी न किसी प्रकार से शैक्षिक संस्थाओं में व्यापक रूप से प्रयोग हो रहा है। शिक्षण की इस विधि से प्राचीन वातावरण के साथ समायोजन करने की शक्ति आ जाती है।

इसके अतिरिक्त यह कहा जा सकता है कि घटनाओं का वास्तविक और प्रभावशाली ज्ञान देने के लिए भाषण पद्धति सबसे प्राचीन पद्धति है। यह बात अलग है कि भाषण के साथ-साथ अध्यापक कुछ सहायक सामग्री जैसे चार्ट, रेखाकृति आदि प्रयोग करता है या नहीं। शिक्षा जगत में भाषण पद्धति व्यापक रूप में प्रयोग की जाती है। जहाँ इस पद्धति के बहुत से लाभ है वहा बहुत सो हानियां भी हैं और लगभग सभी शिक्षार्थी भाषण पद्धति की कड़ी आलोचना करते हैं, परन्तु इस पद्धति को कितनी भी आलोचना कर ली जाए फिर भी इसे समाप्त नहीं किया जा सकता।

भाषण विधि के मुख्य सिद्धान्त (Main Principles of Lecture Method)

इस विधि को निम्नांकित उद्देश्यों के लिए प्रयोग किया जा सकता है-

1. विद्यार्थियों को योजनाओं या क्रियाओं को हाथ में लेने के लिए तैयार करना:- जब भी विद्यार्थियों का समूह किसी योजना या क्रिया को हाथ में लेता है तो उचित होगा कि अध्यापक उन्हें एक अनौपचारिक भाषण दें। इससे विषय के बारे सामग्री ढूंढ़ने में उनके समय और शक्ति का अपव्यय रुक सकता है।

2. स्पष्ट करने के लिए:- किसी भी पाठ में कुछ ऐसे पहलू भी हो सकते हैं जिनको समझने में लगभग सभी छात्र कठिनाई अनुभव करते हो। इसी प्रकार पाठ में कुछ तकनीको शब्द हो सकते हैं जिनके बारे में विद्यार्थियों को कुछ नहीं पता। बहुत से सिद्धान्तों को भी विद्यार्थी अपने आप में स्पष्ट तौर पर नहीं समझ सकते। भाषण पद्धति द्वारा अध्यापक इन तकनीकी शब्दों और सिद्धांतों आदि को स्पष्ट कर सकता है। विद्यार्थियों का मूल्यवान समय अध्यापक के कुछ मिनटों के भाषण से बच सकता है।

3. प्रेरणा प्रदान करने के लिए:- जब भी कक्षा में एक नया विषय आरंभ किया जाता है वे अध्यापक भाषण द्वारा इसके कुछ मुख्य पहलुओं को प्रभावशाली ढंग से विद्यार्थियों के सम्मुख पेश कर सकता है ताकि उनकी जिज्ञासा शांत की जाए। इससे छात्रों को जब विषय-वस्तु प्रस्तुत की जाएगी तो उन्हें समझने में सुविधा होगी।

4. अतिरिक्त विषय-वस्तु प्रस्तुत करने के लिए:- यदि विद्यार्थी पाठ्य पुस्तक में लिखी हुई वस्तु के अतिरिक्त और सामग्री चाहते हैं तो भाषण पद्धति इसके लिए सबसे उत्तम साघन है। इसी प्रकार कभी-कभी पुस्तकों में किसी विषय से संबंधित जानकारी अत्यंत संक्षिप्त या गलत होती है। यहा भाषण विधि बहुत काम आ सकती है। अध्यापक के व्यक्तिगत अनुभव विद्यार्थियों के सामने यदि भाषण द्वारा प्रस्तुत किए जाते हैं तो वे उनके लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं, परन्तु शर्त यह है कि अध्यापक को उन अनुभवों को प्रस्तुत करना आता हो।

5. संक्षिप्तीकरण करने के लिए:- कई बार विषय-वस्तु की व्यापकता देखकर छात्र घबरा जाते हैं। इसलिए आवश्यकता इस बात की पड़ती है कि संपूर्ण विषय-वस्तु संक्षिप्त रूप में छात्रों के सम्मुख उपस्थित की जाए। यह कार्य भाषण विधि द्वारा सरलतापूर्वक संपन्न किया जा सकता है। भाषण को सुनने के पश्चात् जब छात्र पुस्तकें पढ़ते हैं तो उनका अध्ययन अधिक अर्थपूर्ण हो जाता है।

6. गृह कार्य देने के लिए:- अध्यापक को गृह कार्य देते समय भाषण का प्रयोग कर लेना चाहिए। जो कुछ गृह कार्य दिया जाए, उसकी उपयोगिता और उस गृह कार्य को किस प्रकार से किया जाए आदि पर एक छोटा सा भाषण देना अच्छा रहता है।

7. समय बचाने के लिए:- पाठ्य पुस्तक पद्धति की तुलना में भाषण विधि में कम समय लगता है। कई बार ऐसे अवसर आ जाते हैं कि छात्रों को समय बचाने की आवश्यकता पड़े। भाषण पद्धति के द्वारा छात्रों का समय बचाया जा सकता है। भाषण द्वारा ही समय में पर्याप्त विषय-वस्तु प्रस्तुत की जा सकती है, जिससे समय की बचत होती है।

8. पुनर्निरीक्षण के लिए:- अध्यापक भाषण द्वारा किसी अध्याय के मुख्य पहलुओं का सार बताकर विद्यार्थियों का मार्गदर्शन कर सकता है और विषय का पुनर्निरीक्षण कर सकता है।

भाषण विधि के लाभ (Advantages of Lecture Method)

1. विद्यार्थियों को ज्ञान की पूर्ति:- जो कुछ छात्र अपने यत्नों से प्राप्त करते हैं पूर्ण नहीं होता। अध्यापक अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर उनको पूरक ज्ञान प्रदान करता है। यह कार्य भाषण विधि द्वारा पूरा किया जाता है।

2. विषय को रोचक बनाने में सहायक:- भाषण द्वारा अध्यापक विषय को रोचक बना सकता है। भाषण द्वारा अध्यापक विषय-वस्तु को अपनी व्याख्या, हाव-भाव आदि के द्वारा स्पष्ट कर सकता है। छपे हुए शब्दों की तुलना में मुह से बोले हुए शब्द प्रायः अधिक प्रभावशाली होते हैं। कई बार अध्यापक भाषण देते हुए अपनी आवाज (Tone), संकेत और चेहरे के हाव-भावों से उस बात को जो वह कक्षा में बताना चाहता है अधिक प्रभावशाली तरीके से बता सकता है।

3. छात्रों के अनुभवों में वृद्धि करने में महत्त्व:- जब विद्यार्थी अध्यापक के भाषण को सुनते है तो उन्हें सुनने का ही अनुभव हो जाता है। प्रौढ़ जीवन में भाषण और बातचीत का बहुत महत्त्व होता है। विद्यार्थियों को ऐसी स्थितियों के लिए कुछ तैयारी की आवश्यकता होती है। इसलिए भाषण पद्धति विद्यार्थियों को सुनने और तेजी नोट कर लेने का अभ्यास कराती है।

4. विभिन्न विषयों के अध्ययन में सहायक:- सामाजिक विज्ञानों में बहुत सी बातें ऐसी होती हैं, जिन्हें तरल नहीं कहा जा सकता। बहुत से ऐसे पद हैं जो केवल पाठ पुस्तकों के पढ़ने में समझ में नहीं आते। जैसे: बैंकों का राष्ट्रीयकरण, मुद्रास्फूर्ति, सत्याग्रह आदि-आदि। भाषण के माध्यम से अध्यापक इन कठिन पाठों को अल्प समय में समझा सकता है। भाषण के द्वारा समझे गए पद अधिक स्पष्ट होते हैं। इसके अतिरिक्त विद्यार्थियों को किसी तथ्य की साधारण सी जानकारी के लिए खोज व अन्वेषण की लम्बी प्रक्रिया में लगने वाले समय से बचाया जा सकता है।

5. समय की बचत:- भाषण के माध्यम से अध्यापक बहुत सी जटिल बातों को अल्प समय में समझा सकता है। उदाहरण के तौर पर मुद्रास्फीति (Inflation) या अवमूल्यन ऐसे पद हैं जिन्हें भाषण के द्वारा अधिक स्पष्ट रूप से समझाया जा सकता है। दूसरी विधियों में तो किसी तथ्य को साधारण सी जानकारी के लिए खोज व अन्वेषण को लंबी प्रक्रिया में लगने से तो कथन से समय की बचत की जा सकती है।

6. योजना अथवा क्रियाशीलन के लिए तैयार करना:- विद्यार्थियों द्वारा किसी भी क्रिया या योजना को आरंभ करने से पहले उस बारे में अध्यापक द्वारा दिया गया भाषण उपयोगी रहता है।

7. इस विधि में अध्यापक कक्षा में पूरी तैयारी करके आता है:- यदि अध्यापक ने भाषण की अच्छी तैयारी की है और कक्षा में इसे प्रभावशाली तरीके से पढ़ाया है तो छात्रों का काफी समय बच जाता है। जब अध्यापक पाठ की पूरी तैयारी करता है तो बालकों पर भी इसका अच्छा प्रभाव पड़ता है। यदि अध्यापक में अपने भाषण के प्रति जोश और रोचकता है तो इसका प्रभाव विद्यार्थियों पर भी पड़ेगा, उनमें भी मेहनत करने की भावना जागृत होगी।

8. अध्यापक और छात्रों में सीधा संपर्क:- भाषण विधि में अध्यापक छात्रों के सीधे संपर्क में आता है। इसलिए भाषण देते समय विषयवस्तु को अपनी व्याख्या, हाव भाव आदि के द्वारा स्पष्ट कर सकता है। कई बार अध्यापक भाषण देते हुए अपनी आवाज, संकेत और चेहरे के हाव-भाव द्वारा कक्षा में अपनी बात को अधिक प्रभावशाली तरीके से बता सकता है। अध्यापक द्वारा बोले गए शब्दों में उनके व्यक्तित्व की गर्मी आ जाती है।

9. यह विधि कम खर्चीली है:- आधुनिक युग में कक्षाओं का आकार बढ़ा बनता जा रहा है। इसलिये अधिक छात्रों वाली कक्षाओं में निर्देशन की यही एक व्यावहारिक विधि रह गई है। भारत एक निर्धन देश है। धन की कमी और साज-सज्जा के अभाव के कारण छोटी श्रेणियां नहीं बनाई जा सकती। आज जब साक्षरता पर बहुत अधिक बल दिया जा रहा है, इस विधि के महत्त्व को कम नहीं किया जा सकता।

10. भाषण विधि विषय-वस्तु को क्रमबद्ध तरीके से प्रदान करती है:- भाषण विधि में विषय-वस्तु को क्रमबद्ध तरीके से पेश किया जाता है। कठिन और जटिल विचारों की व्याख्या और विवेचना की जाती है। यदि किसी कारण कुछ बालक इसे समझ नहीं सके तो भाषण को दोहराया भी जा सकता है।

11. समसामयिक घटनाओं के लिए लाभदायक:- सामाजिक अध्ययन में समसामयिक घटनाओं का समावेश होता है। हो सकता है कि पाठ्य-पुस्तकों में उसका जिक्र न हो। अध्यापक भाषण द्वारा इन घटनाओं पर प्रकाश डाल सकता है।

12. प्रश्नोत्तर विधि की सीमाएँ:- कुछ विषय ऐसे होते हैं जिनकी पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए अन्य विधियों जैसे प्रश्नोत्तर विधि आदि उपयोगी सिद्ध नहीं होतीं। वातावरण की सजीवता कथन द्वारा उत्पन्न की जा सकती है। अशोक के बौद्ध धर्म ग्रहण करने के कारण को समझाने के लिए कथन द्वारा जो प्रभाव उत्पन्न किया जा सकता है, वह प्रश्न पूछ कर नहीं।

13. छात्रों पर नियंत्रण:- क्योंकि अध्यापक और छात्रों में सीधा संपर्क होता है, इसलिए अध्यापक छात्रों में अपने ध्यान और देख-रेख में रख सकता है। वह विद्यार्थियों को भटकने नहीं देता। पाठ में मुख्य बिन्दुओं पर छात्रों का ध्यान लगा रहता है।

14. अधिक बुद्धि वाले छात्रों के लिए यह विधि बहुत उपयुक्त है:- अधिक बुद्धि वाले छात्रों को भाषण विधि प्रेरणा देती है। अध्यापक की तरह वह भी (Reference books) और सहायक सामग्री प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित होंगे।

15. एकाग्रता की शक्ति का विकास:- इस विधि से छात्रों में एकाग्रता की शक्ति का विकास होता है। अध्यापक विषय-वस्तु पर विचार करते हैं और अपने विचारों की अभिव्यक्ति करना सीखते हैं।

भाषण विधि के दोष, कमियाँ या अवगुण (Defects of Lecture Method)

भाषण विधि को यदि ठीक प्रयोग किया जाए तो यह एक विधि मानी जा सकती है। परन्तु विद्यालयों में इसका दुरुपयोग होने के कारण शैक्षिक प्रणाली में इसे अच्छी विधि नहीं माना जाता। इस विधि में निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं-

1. अमनोवैज्ञानिक:- क्योंकि इस विधि में 'क्रियाओं द्वारा ज्ञान' का अभाव है। इसलिए यह विधि अमनोवैज्ञानिक है। इस विधि में छात्रों को पाठ्य सामग्री को संगठित करने का भी अवसर नहीं मिलता। इसलिए उनके विकास में बाधा पड़ती है।

2. इस विधि में छात्रों को पकी पकायी तैयार सामग्री मिल जाती है:- इस विधि में छात्रों को अध्यापक द्वारा तैयार सामग्री मिलती है। उन्हें क्रियाओं द्वारा अधिगम का कोई अवसर नहीं दिया जाता है। इस प्रकार वे बनावटी अधिगम पर निर्भर रहने लग जाते हैं।

3. छात्र निष्क्रिय श्रोता बने रहते हैं:- इस विधि में प्रायः अध्यापक ही सक्रिय होता है और छात्र निष्क्रिय श्रोता बने रहते हैं। वह पाठ में सक्रिय रुप से भाग नहीं लेता। इस प्रकार शिक्षा एकतरफा प्रक्रिया बनकर रह जाती है। अधिगम को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए यह आवश्यक है कि छात्रों को बोलने, प्रश्न पूछने के अवसर प्रदान किए जाए, परन्तु विद्यार्थियों को आमतौर पर इस प्रकार के अनुभव से वंचित रखा जाता है।

4. भारतीय वातावरण में अनुकूल नहीं:- यह विधि वहीं सफल हो सकती है जहाँ अध्यापक उच्च कोटि के ज्ञान वाले, प्रशिक्षित और प्रवक्ता हो।

अध्यापक के साथ-साथ छात्र भी अनुशासित होना चाहिए। भारत के अधिकतर स्कूलों में न तो उच्चकोटि के अध्यापक उपलब्ध हैं और न ही छात्रों में अनुशासन देखने को मिलता है। इसलिए इन दशाओं में यह विधि उपयुक्त नहीं है। लगभग 45 मिनट तक अपने रोचक भाषण से अध्यापक अपनी श्रेणी को बाँध के रखे: ऐसे अध्यापक कितने मिलेंगे।

5. यह विधि स्कूल स्तर के लिए उपयुक्त नहीं:- कुछ शिक्षार्थियों का मत है कि स्कूल के बालकों में परिपक्वता कम होने के कारण इस स्तर पर यह विधि उपयुक्त नहीं है। उनका यह मत है कि विधि उनकी पहुँच से ऊपर है। कालेज और विश्वविद्यालय स्तर पर जहाँ विद्यार्थियों में परिपक्वता अधिक है वहाँ तो विधि उपयुक्त है, परन्तु स्कूल स्तर पर नहीं।

6. अध्यापक का पांडित्य प्रदर्शन करने का यत्न:- भाषण विधि में अध्यापक प्रायः स्वयं को पंडित प्रदर्शन करना चाहता है। ऐसा करके पाठ को जान-बूझ कर कठिन बना देता है। इस कारण छात्रों की बहुत कम समझ में आता है।

7. यह विधि केवल पाठ्य पुस्तक की ही विकल्प बनकर रह जाती है:- हमारे अध्यापक इस विधि के प्रयोग करने से अनुभवी नहीं हैं। केवल कुछ ऐसे अध्यापक देखने में आते हैं जो कई पुस्तकों से भाषण के लिए सामग्री इकट्ठी करते हैं। अधिकतर अध्यापक तो केवल एक हो पुस्तक को आधार बनाकर भाषण तैयार कर लेते हैं। इसलिए भाषण विधि केवल पाठ्य पुस्तक का विकल्प बनकर रह जाती है।

8. अनर्गत बातों से भाषण का अरुचिकर बन जाना:- बहुत से अध्यापक अपने भाषण के दौरान इधर-उधर की बातें हांकने में बहुत सा समय बरबाद कर देते हैं और ऐसा विशेषकर वे अध्यापक करते हैं जिनकी विषय पर पकड़ बहुत कम है। इस विधि में अध्यापक को असंगत बातें करने का बहुत अवसर मिलता है।

9. कक्षा का वातावरण नीरस बन जाता है:- यदि इस पद्धति को दूसरी पद्धतियों के साथ प्रयोग नहीं किया जाता तो वह विद्यार्थियों के लिए नीरस और बोझिल बन जाती है।

भाषण विधि के प्रयोग में ध्यान रखने योग्य बातें (Things to Keep in Mind Using Lecture Method)

इस विधि का प्रयोग करते समय निम्नांकित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

  1. अध्यापक को कक्षा-कक्ष में प्रसन्नचित्त मुद्रा में रहना चाहिए क्योंकि जब तक कक्षा-कक्ष का वातावरण आनन्दमय नहीं होगा, तब तक अधिगम प्रभावशाली नहीं बन सकता।
  2. अध्यापक को यह बात जाँचने के लिए सतर्क रहना चाहिए कि छात्र उसके भाषण के दौरान उसको ध्यानपूर्वक सुन रहे हैं और कथन में उत्सुकतापूर्वक भाग ले रहे हैं। ऐसा जानने के लिए अध्यापक भाषण के बीच प्रश्न पूछ कर जाँच कर सकता है।
  3. भाषण नियोजन होना चाहिए। अध्यापक को पूरा पता होना चाहिए कि किस विशेष समय उसने क्या बोलना है।
  4. अध्यापक को चाहिए कि अपने भाषण के दौरान छात्रों को स्वतन्त्रतापूर्वक अपनी राय प्रदर्शित करने का अवसर दें।
  5. कई अध्यापकों की बोलने की गति बहुत तेज होती है। ऐसी दशा में बालक अध्यापक द्वारा बोले गए शब्दों को समझ नहीं पाते। इसलिए अध्यापक को स्पष्ट उच्चारण के साथ धीरे-धीरे बोलना चाहिए।
  6. अध्यापक को भाषण के दौरान इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि क्या छात्र उसकी बात को समझ रहे हैं या नहीं। जहाँ अध्यापक को ऐसा आभास हो कि छात्र उसकी बात को समझ नहीं रहे हैं तो वह शब्दों की पुनरावृत्ति, भावों के स्पष्टीकरण अथवा नए तथ्यों को उपस्थित कर अपने भाषण को प्रभावशाली बना सकता है।
  7. हर भाषण के बाद कक्षा में एक लिखित परीक्षा भी होनी चाहिए,जिससे कि अध्यापक को यह पता लग सकें कि विद्यार्थी को पाठ समझ में आ रहा है या नहीं।
  8. कक्षा में जाने से पूर्व अध्यापक को पाठ का संक्षेप (Synopisis) बता लेना चाहिए ताकि भाषण के मध्य अध्यापक केवल संबंधित बातचीत ही करे।
  9. विद्यार्थियों को भाषण के नोट्स (Notes) लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
  10. अध्यापक को प्राकृतिक तरीके से बोलना चाहिए। ऐसा लगना चाहिए कि अध्यापक छात्रों से बातचीत कर रहा है। किसी स्टेज पर चढ़कर भाषण नहीं दे रहा।
  11. भाषण देते समय अध्यापक को स्पष्ट धीमी गति से प्राकृतिक ढंग से और प्रत्यक्ष रुप से बोलना चाहिए।
  12. भाषण पद्धति उचित अवसर पर ही प्रयोग में लानी चाहिए। जैसे किसी नए विषय को आरंभ करने के लिए विद्यार्थियों को अतिरिक्त (Additional) सामग्री प्रदान करने के लिए एक विस्तृत अध्याय के सार को बताने के लिए या किसी जटिल समस्या का स्पष्टीकरण करने के लिए इस विधि का प्रयोग किया जा सकता है।
  13. अध्यापक को अपने विषय का पूरा ज्ञान होना चाहिए ताकि वह किसी भी स्थिति का सामना करने की क्षमता रखता हो।
  14. भाषण देते समय अध्यापक मनोरंजन से भी भरा हुआ हो। अध्यापक ने कम से कम तीस से चालीस मिनट तक कक्षा में भाषण देना है। इतने लंबे समय में नीरसता आ जाती है। यदि अध्यापक कुछ आनन्दमय वातावरण की रचना कर सकता है तो कक्षा में नीरसता नहीं जाएगी।
  15. अध्यापक वेशक कक्षा में अपने साथ उसके द्वारा बनाए गए नोट्स (Notes) ले जाए परन्तु यदि अध्यापक बार-बार इनको देखने लगता है तो भाषण प्रभावहीन बनकर रह जाता है। इसलिए अध्यापक ने जो भाषण देने है उसे पूरी तरह से स्मरण होना चाहिए।
  16. भाषण के बाद यदि एक लिखित परीक्षा ले ली जाए तो अध्यापक को पता चल जायेगा कि उसके द्वारा दिया गया भाषण किस सीमा तक प्रभावशाली रहा है।
  17. यदि भाषण लंबा है तो इसकी रुपरेखा छोटे-छोटे प्रकरणों में बाँट देना चाहिये।

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